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रविवार, 7 अगस्त 2016

नीं लागै अठै कोई तीज!

नीं लागै अठै कोई तीज!

गिरधरदान रतनू दासोड़ी

अजै तो नीं आई
आधुनिकता री आंधी!
ओ तो फगत दोटो है
आधुनिकता रो!
जिणमें ई आपांरी जड़ां
जोखमीजर उखड़गी!
तो पछै कीकर झालांला?
अरड़ाट देती वा आकरी आंधी!
आपांनैं तो इण दोटै ई
चाढ दिया टोरै!
भमा दिया भोगना!
नाख दी आंख्यां में धूड़
अर
कर दिया चितबगना
चेताकूक
साव गावल़ा!
आपां तो पांतर ई ग्या
आपांरी रीत -प्रीत
मेल़ा -मगरिया
मन री उमंग तो
मार ई नाखी!
विसर ई ग्या!
सतरंगां री सोहणी सांझ
दिन तो विदऱंगो सो
राखै है ओढ्योड़ो बांझपण!
अतंस इलोल़ तो लागै है अमूझ्योड़ो!
किल्लोल़ तो सूतो है
कमाड़ी जड़
जड़ीजंत होयोड़ो!
इण दोटै रै गोट में
पाल़ लिया कितरा भरम?
पांतरग्या धरम मिनख रो!
फगत एक मसीन रै उनमान
कर रैयां हां वरताव!
हंसणो-रमणो!
तो लागै है सदियां  जूनो
कोई ऐड़ो खिलको
जिकै काला मिनख ई
करिया करता हा!
आपां तो काला नीं हां
नीं है कालो आपांरो बगत!
हंसणो -रमणो -गावणो!
कोई आपांरो काम थोड़ो ई है?
आपां तो आजरा मिनख हां!
आधुनिकता दोटै चढियोड़ा!
आपांरो तो काम ई फगत ओ है
कै
कोई कीकर पांतर सकै हंसी?
किंया हो सकै है डाफाचूक?
कीकर आ सकै है हींयाबूझी?
कोई कीकर हो सकै है
चितभमियो?
ओ काम तो
इण अंधल़गोटै रै खेल में
आपां कर ई सकां हां!
कर ई सकां हां !कांई ?
आपां तो कर ई चूका!
जद ई तो नीं दीसै
रमझमती तीजणियां रा झूलरा
नीं सुणीजै हंसी रा हबोल़ा
गीतां रा गरणाट
तो सरणाट में पसरग्या!
अर
रात रात जागणिया गाम!
आधाक तो काम रै भरम में
सहर में गमग्या
अर आधांक में
देखो जणै ई
पसर्योड़ो रैवै है सोपो!
अठै नीं सावण सुरंगो लागै
अर नीं भादवो विरंगो!
नीं लागै अठै
कै कोई तीज
रीझनै आई होवै तिंवारां रै सागै
रंगरल़ी कै मनरल़ी करती!
अर नीं लागै कै
कोई गणगौर
आपरै घेर घुमेर गागरै रै फटकै सूं
डूबा दिया होवै तिंवार!

गिरधरदान रतनू दासोड़ी

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