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रविवार, 21 अगस्त 2016

कसलै कमर

कसलै कमर-गिरधरदान रतनू दासोड़ी
आ ठंडोड़ी शीतल लहर त्याग,
हालण दे पग अग रज ताती पर।
ओ प्रखर तावड़ो संकट रो,
नित झाल उगाड़ी छाती पर।
जे खांची तैं पाछी छाती नै,
तो सुख नींद सपन में आवैली।
अजूं उण पा'ड़ां रै पार उतरणो है,
बिखम्यां री घाट्यां आवैली।
पण राख्यो हिरदै में धीर वीर तैं,
पीड़ पवन ज्यूं जावैली।।
ऐ सगल़ा है सीरी संपत रा,
खोटै दिन पड़सी तोय खबर।
ऐ सनमुख स्नेह दिखावणिया,
घालेला छाती घाव जबर।
उगड़ेला नैण ,सैण जिण दिन,
आ दुनिया रूप दिखावैली।
अजूं उण पा'ड़ां.....
कर कर्म शर्म नै छोड परो,
क्यूं भागवाद रै लार पड़ै।
तूं देख बगत री चाल जगत में,
एकल घोड़ो फेर खड़ै।
आंख मूंद विश्वास करेलो,
चैन नींद उड जावैली।
अजूं उण पा'ड़ां.....
इण जगरै जुलमां री झाल़ झाल तूं,
हूंस हिंयै री राख सधर।
पग पग पर पैणा पीवणिया,
मारण नै कसलै आज कमर।
जे आज भ्रमग्यो भूलै में,
आ भूल तनै ई खावैली।
अजूं उण पा'ड़ां...
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

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