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शनिवार, 20 अगस्त 2016

राखड़ी रो नेग !

राखड़ी रो नेग ! गिरधरदान रतनू दासोड़ी
राखड़ी
बांधणियै
जद जद ई
किणी रै बांधी है!
तो एक सुखद अहसास
होयो मन में !
पनपियो है भाव द्रढता रो
एक अदीठ डर सूं
भिड़ण री ,बचण री
दीसी है जुगत
फगत राखड़ी रै धागै रै पाण
पनपियो है आपाण
इण हाण फाण जिंदगी री-
गंदगी सूं ऊबरण रा
दीस्या है ऐनाण -
राखड़ी रै आसै पासै-
जुगां- जुगां सूं सुणता
रैया हां कै
करी है रुखाल़ी है
राखड़ियै बंधावणियै
आपरी औकात नै
ताक माथै राख बांधणियै री!!
दे दियो बदल़ै में
आपरो सो कीं
तन -मन-धन!
आपां तो फगत सुणी है!
दीठो नीं है ऐड़ो कोई दाखलो!
कै कोई राखड़ी बंधावणियो
मरियो होवै
राखड़ी बांधणियै रै बदल़ै मे!
जे ऐड़ो होवतो
कोई दाखलो ?
तो महाभारत अवस
देवतो साख!
कै किसन
द्रोपदी री राखी ही लाज!
उण बगत भाभड़ाभूत होय
राखणनै उठायो हो सुदरसन!
दीधा हा घाव दुसासण रै
कै खुद खाया हा घाव
द्रोपदी रै बचाव में!
पण नीं मिल़ै ऐड़ो दाखलो!
द्रोपदी!
कूकती
करल़ावती
कलझल़ती
बुलावती रैयी
अपरबली किसन नै
आपरा वसन उतरती वेला!
बा अडीकती रैयी
सुदरसन रै सूंसाड़ नै!
पण नीं आयो सुदरसन
डरतो दुसासण सूं!
आयो तो फगत आयो
द्रोपदी री लाज गमियां पछै
चंद्रावल़ चीर
राखी रै सीर रै मिस!
द्रोपदी नीसासो नाख
आंख जल़जल़ी कर
ओढ लियो
राखड़ी रो नेग!!!
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

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