सावण आयो सायबा, हियो हिलोरा खाय।
जोड़ायत जोवै बाटड़ी, बैठ झरोखां मांय।।
जौबन छळकै जोररो र सावण सु़रंगो मास।
हीण्डो ऊंचो मांडियो, पिया मिलण री आस।।
धकधक धड़कै काळजो बीजळ जद चमकै।
गहरो गाजत बादळा तूं! कीड़्यां क्यूं छमकै।।
घरां पधारो पीवजी म्हारि रातां नींद उड़ी।
सीरो जिमास्यूं परेम रो र आछी साग पुड़ी।।
गुरबत करस्यां रात में र सगळी मन री बात।
अणमोलो छीज्यां जौबणोआवैलो नी हाथ।।
खेती करस्यां गांव में र गायां दुहस्यां च्यार।
रळमिळ टाबर पाळस्यां भली करै करतार।।
शुक्रवार, 26 अगस्त 2016
सावण आयो सायबा, हियो हिलोरा खाय।
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