एक शिक्षक.....
हूँ लड़्यो घणो हूँ सह्यो घणो,
शाला रो मान बचावण नै।
हूँ पाछ नहीं राखी कुछ भी,
शाला परिणाम बढ़ावण नै।
जद स्टाफ पैटरण याद करुं,
पद खाली आज नजर आवै।
कक्षावां ठाली बैठी है,
बिन शिक्षक कौन पढ़ा पावै।
पड़ग्या सूना कान मेरा,
कमरा मा आती सीटी से।
शिक्षक रो धर्म कियां निभसी,
सब चौपट होग्या नीति से।
एकीकरण आदर्शीकरण,
मूंडा में ज्यूँ रोटी ताती।
कलमां री स्याही चीख पड़ी,
मत लिख कौन पढ़ै पाती।
पण शिक्षक रो हिवड़ो बोल उठ्यो,
शाला री पाग पगां में है।
सारे जग रो हूँ कर्ता धर्ता,
ब्रह्मा रो खून रगा में है।
हूँ नेट भरुं , अपलोड करुं,
डाकां ई मेल आबाद रहै।
हूँ घोर अभावां में भटकूँ,
पर शाला दरपण याद रहै।
शिक्षक री कीमत क्षीण भई,
इक हाथ बजातां ताली नै।
शिक्षक री हाथल टूट गई,
अब बाग हँसे खुद माली नै।
अब बाग हँसे खुद माली नै
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