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बुधवार, 10 अगस्त 2016

मत देख मिनख री रीत पंछीड़ा

मत देख मिनख री रीत पंछीड़ा-गिरधरदान रतनू दासोड़ी
मत देख मिनख री नीत पंछीड़ा,
गीत रीत रा गायां जा!
आयां जा मन मेल़ू तूं,
साचोड़ी देख सुणायां जा!!
आवै है ग्रहण आजादी पर,
ऊंगाणा बैठा गादी पर।
गांधी री काती हाथां.सूं,
ऐ कलंक लगावै खादी पर।
वोटां पर जाल़ बिछायोड़ा,
थिरचक है कुड़का ठायोड़ा।
इसड़ो ऐ नांखै देख चुग्गो,
फस ज्यावै मानव डायोड़ा।
नुगरा बल़ -छल़ में नामी है,
हरमेस लूट रा हामी है।
कुर्सी री राखै देख निगै,
ज्यूं -त्यूं ई राखै थामी है।
विध-विध रा न्यारा वेस देख,
आदत रा सगल़ा है ज एक है।
तूं आवै क्यूं झांसां आ़रां में?
ऐ देवै अंगूठो गल़ै टेक।
तूं छोड आस सागै री,
आगै री डांडी जायां जा।
साचोड़ी सदा सुणायां जा!
मिनख हुवो घर पर अणमातो,
खोल रैयो फल़सो.संकुचातो।
घट गई मिनख री जग कीमत!
जद समर समर मनड़ै पछतातो।
मिनखां री माया रा भाग देख,
मनरो नीं लाधै थाग देख।
गिंडक रो मानव रै नेणां,
मानव सूं बधतो आघ देख।
हालत ऐ देख बण्या है कैड़ा,
नीं आवै नेही तो नैड़ा!
मानव सूं मानव चमक रैयो है,
माल चरै है देख गघेड़ा!
मानै तूं जितरा ई मोटा!
जाणै तूं उतरा ई खोटा!!
इण में नीं झूठ रति भर है,
अपणायत राखै दिल छोटा।
तूं अणभै आभै रो वासी!
वनवासी साच बतायां जा।
साचोड़ी सदा सुणायां जा।।2
घर-घर में बैठा दुरजोधन,
औरत किम शील रुखाल़ै धन!
पूगै नीं हाथ वंसीधर रो जद,
कुण ढकै उघड़तो द्रोपद तन?
ऐ कुरवंस्यां रा रचिया जाल़ जठै,
धारै कुण भीखम नैं आज उठै।
जठै धरम धीठाई धारै जद
बल़हीणा बणज्या वीर बठै।।
बेबस सांवरियो थाक गयो,
माठै मन ओछी ताक गयो।
खुस गयो पीताबंर ई उणरो,
लाजा़ं मर रथड़ो हाक गयो।
तोड़ै है कानूड़ो दीह जठी,!
आवै कुण पूरण चीर उठी?
आंधो कानून राज ई आंधो
जावै कर फरियाद कठी?
ललचाया लालच में बैठा,
चांच खोल चेतायां जा।
साचोड़ी देख सुणायां जा।।3
चोरां री जाजम बिछी जठै!
उणपर तो साचो नाय खटै।
जठै लूट खसोटां जारी है,
कुण करै त्याग रो मोल उठै?
मांटीपण रो अब मोल नहीं!
अंतस में देख इलोल़ नहीं!
पाल़ण सारु पैला ज्यूं, ऐ
मरद  कहै अब बोल नहीं!!
नैणां में ज्यांरै लाज नहीं,
ठगपण सूं आवै बाज नहीं।
मर गयो मिनखपण उर आंरै,
धूरतपण आडी पाज नहीं।
निस दिवस राम रो नाम रटै!
उण ओट गरीबां मार गिटै!!
स्वारथ में रंगिया स्याल़ देख,
ऐ भैंस काटलै सल़ू सटै!
इण देख दुरंगी दुनिया नैं,
सतवाल़ो माग दिखायां जा!
साचोड़ी देख सुणायां जा।।4
अणसैंधी हुयगी गांम गल़ी हर,
फल़सा जरू होयगा घर-घर।
अणजाण्या लागै उणियारा,
अब भटक भलांई भोदू दर- दर।
विश्वास डोर आ टूट गई है,
प्रीत आंख्यां री खूट गई है।
कल़ियोड़ो गाडो काढण री,
आ बांण अबै तो छूट गई है।
ओ हाथ -हाथ रो बणियो वैरी,
इमरत ई अब सुणियो जैरी!
किण पर तूं विश्वास करेलो!
सिंघां री खाल गधेड़ां पैरी!!
बदल़ गई रंगत आ सारी ,
आय गई आफत आ भारी!
आहेड़ी पग-पग रै छेड़ै,
तूं रखवाल़ काया अब थारी!!
थिर जात्री अणथक रहजै,
वाणी सुर सरसायां जा!
साचोड़ी देख सुणायां जा।।5
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

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