अक्षर धाम मंदिर गांधी नगर के प्रमुख संत स्वामी जी के देवलोक गमन पर उनके शिष्य व मेरे साहित्य मित्र नरपत दान जी चारण ने उनकी मृत्यु के 6घंटे बाद ही ऐसी कालजयी स्रद्धांजलि रचना लिखी की उसको सुनकर गुजरात के वरिष्ठ गायक हेमंत चौहन ने अपना स्वर दे दिया अपने गुरू के अन्तिम दर्शन को आ रहे श्रद्धालु रचना को सुनकर अपने आंसु नहीं रोक पा रहे हैं
अपने पूज्य गुरू के अवसान पर इससे बडी स्रद्धांजलि क्या होगी
आप भी अवश्य सुने
हंसा!इती उतावल़ कांई
हंसा! इती उतावल़ कांई।
गुरुसा !इती उतावल़ कांई।।
बैठौ सतसंग करां दुय घडी,लेजो पछै विदाई।
उडता उडता थकिया व्होला, राजहंस सुखदाई।
जाजम ढाल़ी नेह नगर में, माणों राज! मिताई।।१
मोती मुकता चरो भजन रा, मनोसरोवर मांई
पांख पसारे, बैठो पाल़े, तोडो मत अपणाई।२
नीर-खीर रा आप विवेकी, इण जग कह्या सदाई।
सोगन है लूंठा ठाकर री, आज रुको गुरूराई ।।३
धूप दीप नैवेध धरूंला, चंदन तिलक लगाई।
आप रीझावण करूं आरती,नित मन मंदिर मांई।४
अनहद (थोंरो) थें अनहद रा, इण में भेद न कांई ।
तो पण हंसा !करो उतावल़, ठीक नहीं ओ सांई।५
हंसा (थोंरे) लारे हालूं , पंख नहीं पण पाई।
"नरपत" सूं तोडो मत प्रीति, रखो चरण शरणाई।।६
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें