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बुधवार, 17 अगस्त 2016

देश भगती री जगमगती जोतःक्रांति रा जोरावर

(महान क्रांतिकारी केशरीसिंहजी बारठ री पुण्यतिथि माथै विशेष)

देश भगती री जगमगती जोतःक्रांति रा जोरावर-गिरधरदान रतनू दासोड़ी
राजस्थानी भाषा रै साहित्यिक विगसाव सारु पद्य सिरजण सूं बती जरूरत गद्य रो गजरो गूंथण री है।आ बात आजरी युवा पीढी सूं घणी आपांरी पुराणी पीढी रा विद्वान सावल़सर जाणै।बै जाणै कै जितै तक आपांरी भाषा रो गद्य लेखन समृद्ध नीं होवैला जितै तक आपां भारतीय साहित्य रै समकालीन लेखन री समवड़ता नीं कर सकांला।इणी बात नैं दीठगत राखर कई विद्वानां कहाणी,निबंध अर उपन्यास लेखन कानी आपरी मेधा रो उपयोग करण अर गद्य भंडार भरण सारु ठावको काम कियो अर कर रैया है।हालांकि आ बात कैवण में कोई संकोच नीं है कै दूजी गद्य विधावां री बात छोड ई दां तो ई  उपन्यास अर नाटक ई अजै तक मुठ्ठी क भर अर आंगल़ियां माथै गिणावै जिताक ई है।ओ ई कारण है कै राजस्थानी रा कई वरिष्ठ विद्वान गद्य सिरजण रै सीगै आपरी साख साहित्यिक जगत में थापी है।ऐड़ो ई एक सिरै नाम है डॉ गिरजाशंकर शर्मा ऱो।
डॉ गिरजाश़करजी मूलतः तो इतिहासकार है पण साहित्य रै क्षेत्र में शोध,संपादन,कविता,कहाणी अर निबंध रै पेटै आपरी कलम रो कमाल बतावता रैया है।'इतिहास रो साच' इणां री चावी अर चर्चित पोथी है।इणी कड़ी मे इणां रो पैलो उपन्यास आयो है 'क्रांति रा जोरावर'।
देश री आजादी री अलख जगावणियां अर भसम रमावणियां री श्रृंखला में जिण राजस्थान रै रांघड़ां आपरै तन- मन -धन, वतन रै नामै करर कांधै खांफण घाल राटक बजाई उणां मांय सूं केई दाटकां रो देश भगती सूं दीपतै इतिहास नैं बिनां लूण मिर्च रै आम पाठक रै साम्हीं राखण री सफल कोशिश करी है।
उपन्यास री कथावस्तु राजस्थान रै क्रांतिकारियां यथा दामोदरदास राठी,केशरीसिंह बारठ,गोपालसिंह खरवा,जोरावरसिंह बारठ,प्रतापसिंह बारठ अर विजयसिंह सैति केई सपूतां रै अंजसजोग त्याग अर मातृभोम सूं अनुराग रै आसै -पासै बैवै।उपन्यास री कथा मौलिकता सूं मंडित है।इण में नीं तो कल्पना सारु कल़ाप है अर संभावना री जुगत।नीं रोचकता री रचना है नीं रंजकता री भांजघड़।कथा ऐतिहासिक तथ्यां अर प्रमाणिक संदर्भां रै सारै आपरो विस्तार लेती सपाट चालै।कथा नैं लेखक सहज भाव सूं लिखतो निगै आवै न कि किणी दोघड़ चिंता में।ओ ई कारण है कै कथा में रंजकता कै रोचकता रो लावलेस ई नीं है।आ कथा तो देश भगती री आभा सूं आलोकित है,जिणमें ऐतिहासिकता अर प्रमाणिकता रो ई कथानक है। लेखक प्रमाणिक तथ्यां माथै आ सिद्ध करी है कै जोधपुर रै धूर्त रामस्नेही महंत प्यारैराम, जिकै आपरी चालाकियां अर छागटाई रै पाण कई धर्म भीरु भगतां नैं ठगर मोकल़ी मता भेल़ी कर राखी ही,जिणरै विषय में क्रांतिकारियां नैं सावखरी जाणकारी ही।ओ ई कारण हो कै क्रांतिकारियां उणनैं पोटाय कोटै बुलायो अर मार नाखियो।उणरै रामद्वारै सूं मिल़ियो धन पंजाब रै क्रांतिकारी बाबा गुरदीन्तसिंह नै दे दियो गयो- "क्रांतिकारियां महंत रै खजानै सूं धन निकाल़ चुक्या हा। ओ धन बांनै पंजाब रै क्रांतिकारी बाबा गुरदीन्तसिंह नैं कामागातामारू योजना नै सफल़ करण सारु देवणो हो,जिको उणनै दे दियो गयो।" जैड़ो कै आपां सगल़ां जाणां कै उपन्यास री कथा वस्तु विन्यास सूं बतो महताऊ तत्व है पात्र अर चरित्र चित्रण ।क्यूंकै पात्रां रै क्रिया कल़ापां सूं ई कथा वस्तु विस्तार पावै पण लेखक ऐड़ी किणी औपचारिकता में नीं पड़र या किणी पात्र विशेष रै जंजाल़ में नीं अल़ूझर सहज भाव सूं सगल़ै पात्रां नैं विशेष मानर उणां रै जथाजोग चरित्र री चंद्रिका चमकावण रा जाझा जतन करिया है ।पण म्हनैं लागै कै लेखक जोरावरसिंह बारठ रै अदम्य साहस,कड़पाण,अडरता,जुगती अर काम रै प्रति कर्मठता सूं शायद ज्यादा प्रभावित है तो साथै ई दामोदर दास राठी रै त्याग,समर्पण,देश भगती री अनुरक्ति सूं सश्रद्ध है तो इणीगत गोपाल़सिंह खरवा री वीरता,राजपूतीपणो,निडरता ,ज्ञान गरिमा मातृभोम अर कोम रै कल्याण सारु कीं करण रै जज्बे सूं प्रभावित।ओ  ई कारण है कै सगल़ै क्रांतिकारियां नैं करामाती बतावतां थकां ई इण तीनां नैं अजेय बताया है -"क्रांतिकारी जोरावरसिंह  बारठ भारत री अंगरेज सरकार नैं जीवन भर छकावतो सहादत प्राप्त करण में सफल़ रैयो।"।उपन्यास रा कथोपकथन जे पात्रानुकूल नीं होवै तो गुड़ -गोबर एक हो जावै।इण पेटै लेखक पूरै रूप सूं सजग है ।संवादां में सरलता,सहजता,अर स्पष्टता होवणी  चाहीजै जिकी पूरसल रूप सूं देखी जा सकै-"दीवान पोनास्कर खरवा ठाकुर नै पूछ्यो  "रावजी ,कांई इच्छा है?" तो ठाकुर उणनै उथल़ो दियो, "जिण प्रतिष्ठा वास्तै टॉडगढ छोडर जंगल़ां में भटक रैयो ह़ूं ,उणरी रक्षा मरतै दम तक करसूं।"
उपन्यास पूरो तत्कालीन वातावरण सूं सराबोर लागै।लेखक नै उण बगत रो सावखरो सम्यक ज्ञान है ।कोई मनघड़त कै हाथपाई कै खुद उपाई बात रो भेल़ नीं है।उपन्यास री भाषा ठेठ,ठोस अर ठिमरता वाल़ी है, जिणमें  कहावतां री कोरणी अर मुहावरां रो मेल़ ठावको है तो साथै ई सहजता ,संप्रेषणीयता,स्पष्टता,अर सुबोधता है।लेखक रो भाषायी ज्ञान सरावणजोग है ओ ई कारण है कै पूरी कथा में भाषा भावानुसरण है।
लेखक रो उपन्यास लिखण रो उद्देश्य तो आपांनैं सहज ई समझ में आवै ।आजरा मोटियार समष्ठिवाद कानी नीं खंचर व्यष्ठिवाद कानी आकर्षित होयर त्याग,सहयोग ,समर्पण,आदर्श अर आपांरै बडेरां रै थापित जीवन मूल्यां सूं विमुखता धारण करर एकलखोरड़ा अर सुविधाभोगी होय रैया है,उणांमें त्याग सहनशीलता ,संवेदनशीलता अर देशभगती रा कीं कणूका ऊगै,पनपै अर पांगरै।ओ ईज लेखक रो केवल अर केवल उद्देश्य है।इण उद्देश्य री प्राप्ति में लेखक पूरो सफल रैयो है।
उपन्यास में महान क्रांतिकारियां नैं साचै अर सहज भाव सूं सबदांजल़ि दिरीजी है।उपन्यास पढणजोग ई नीं संग्रैजोग ई है।आशा है पाठक इण उपन्यास नै पूरो आवकारो देतां थकां क्रांतिकारियां सूं संबंधित सही तथ्यां सूं ई परिचित होवैला।
पोथी रो नाम -क्रा़ति रा जोरावर
लेखक-डॉ गिरजाशंकर शर्मा
मोल-150
प्रकाशक -पुस्तक मंदिर ,जुबली नागरी भंडार ,बीकानेर
गिरधरदान रतनू दासोड़ी
प्रा.रा.सा.सं.सं.दासोड़ी,बीकानेर।

चूडीया

एक बार लडका अपनी घर वाली को लाने गया ।

तो उसे अपने ससूर के पास सोना पडा ।

उसको रात को चूडीया बजने की अवाज सुनाइ पडी ।

उसे लगा की मेरी घर वाली आ रही है ।

तो उसने उचक कर देखा तो कोई  नही था,,
तो वो वापस सो गया ।

दोबारा कुछ देर बाद वही अवाज आइ
फिर उचक के देखा ,,,पर कोई नी था

दो तीन बार ऐसा हुवा
तो उसके पास सोये ससूर ने कहा :-

सोजा  गडुरा

भैस की सांकल बाज री है।।।।

शनिवार, 13 अगस्त 2016

एक शिक्षक....

एक शिक्षक.....
हूँ लड़्यो घणो हूँ सह्यो घणो,
शाला रो मान बचावण नै।
हूँ पाछ नहीं राखी कुछ भी,
शाला परिणाम बढ़ावण नै।

जद स्टाफ पैटरण याद करुं,
पद खाली आज नजर आवै।
कक्षावां ठाली बैठी है,
बिन शिक्षक कौन पढ़ा पावै।

पड़ग्या सूना कान मेरा,
कमरा मा आती सीटी से।
शिक्षक रो धर्म कियां निभसी,
सब चौपट होग्या नीति से।

एकीकरण  आदर्शीकरण,
मूंडा में ज्यूँ रोटी ताती।
कलमां री स्याही चीख पड़ी,
मत लिख कौन पढ़ै पाती।

पण शिक्षक रो हिवड़ो बोल उठ्यो,
शाला री पाग पगां में है।
सारे जग रो हूँ  कर्ता धर्ता,
ब्रह्मा रो खून रगा  में  है।

हूँ  नेट भरुं , अपलोड करुं,
डाकां ई मेल आबाद रहै।
हूँ घोर अभावां में भटकूँ,
पर शाला दरपण याद रहै।

शिक्षक री कीमत क्षीण भई,
इक हाथ बजातां ताली नै।
शिक्षक री हाथल टूट गई,
अब बाग हँसे खुद माली नै।
अब बाग हँसे खुद माली नै

कलमां री ताकत रै आगै

अबार रै कवियां री कलम में कितरी ताकत है ?इणरै अनुमान रो दाखलो अजै सुणण में नीं आयो पण आपांरी आगली अर इणां सूं पैलड़ी पीढी रै कवियां री कलम में कितरी ताकत ही इणरा फगत तीन दाखला आपनै देय रैयो.हूं। 1 महाकवि पृथ्वीराजजी राठौड 'पीथल' 2कवि भूषण सूर्यमल्लजी मीसण 3,कवि पुंगव केशरीसिंहजी बारठ री वाणी रै पाणी सूं आप परिचित हो -
कलमां री ताकत रै आगै-गिरधरदान रतनू दासोड़ी
कलमां री ताकत रै आगै,
पड़गी ही तरवारां काची।
इतियास बदल़ियो आखरियां,
भरर्यो है हामल़ जग साची!
वनखंडां थकग्यो नाहर बो,
बगतर जद.ढीलो पड़गयो।
आडावल़ अडर रुखाल़णियो,
खावणियो भाला लड़थड़ग्यो।
सुखवाल़ी रातां रै सपनां ,
लागा जद पातल नैं आवण!
भूरड़ै भाखर री भुरजां,
लागी जद बांठां री ताटी अल़खावण!
काकरिया कामण रै गडता,
फूलां रै कांटां बै चुबता।
जद मेवाड़ी राण़ डगमगियो,
दुखड़ा बै अंतस में चुबता।
स्याल़ां रै हाथां आजादी,
नाहर जद बेचण री धारी!
दिल्ली नै मेलण परवानो,
लीनी उण कलमां मन भारी!!
पीथल उण जांगल़ में सुणियो,
थाहर में नाहर लुक जासी!
माथो इकलिंग रै पायक रो,
अकबर रै आगै झुक जासी!!
आखर जद पीथल रा पूगा,
पाखर उण घोड़ां पर घाती।
भाखरियां सारु बो लड़ियो,
सुणियां ई फूलै.है छाती।
पीथल नै पातल अमर है,
वाणी बा अंतस में राची।
कलमां री ताकत.....1
मतवाल़ा भूल्या गौरव नैं,
घट -घट सूं रजवट रीत गयो।
हाथां में प्याला दारू रा,
बातां में जोबन बीत गयो।
छापल़िया सूरा धरती रा,
दापल़िया हेठा बैठ गया।
टोपी रा मालक बै आया,
जोपी नै आसण बैठ गया!!
लाठी री ताकत सूं लाटां तो,
लांठां नैं छेकड़ फोर लिया।
मरणै री हाटां बंद होई,
टाटां जिम गोरां टोर लिया।
घर-घर में लुकिया मूंछाल़ा,
धर रा जो रखवाल़ा होता!
दर -दर रा होयग्या घण दाटक,
झुरझुरियै महलां नैं जोता!!
जामणियां देती फिटकारा,
कसमसती कामणियां ज्यांरी।
हीणप सूं बैठ्या हार्योड़ा,
उठती नीं आंखड़ियां वांरी!
बुझतोड़ै दीपक घी घालण,
रीत्योड़ो जोस जगावण नैं।
सूरजमल रचिया आखरिया,
अंतस सूं बीह भगावण नैं।
वीरां रो भूसण बिन दूसण,
मीसण री सतसईया साची।
कलमां री ताकत....2
फतमल नैं पूगो संदेसो,
दिल्ली में भूपत सह जुड़सी!
दरबार लगैलो करजन ऱो,
आणो तो राणै नैं पड़सी!!
गोरां रै हाथां राणै नैं,
कूरब बो तारै रो मिलसी!
भूरां रै रचियै इण तोतक,
कुर्सी बा दिल्ली री खिलसी।
पुरखां री मेटण मरजादा,
करजन सूं भेटण राण बुवो!
गफलत में गाहड़ रो गाडो,
दिल्ली में हाजर आण हुवो!
केहर रै कानां भणक पड़ी,
मरजादा मिलसी माटी में!
हिंदवाणी सूरज साचाणी,
आथमसी हल़्दीघाटी में!!
रीतां बै लुपसी रजवट री,
लागोड़ो काजल़ नीं लुकसी!
धुपसी बा कीरत मेवाड़ी,
फिरंग्यां नैं फतमल यूं झुकसी!!
चूंगटिया लिखबा चेतण रा,
गूंजी जद वाणी बारठ री!
भणकार पड़ी जद राणै नैं,
खुलगी बै आंख्यां झट भट री!!
चाली जद कलमां केहर री,
हल़वल़ बा करजन रै माची!
कलमां री ताकत..3
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

शुक्रवार, 12 अगस्त 2016

छोरो दांतलो

चुहिया सहेली से- यार कल हाथी के घर से रिश्ता आया !
सहेली- तूने हाँ कर दी??
चुहिया- नहीँ
सहेली- क्यूँ
चुहिया- यार छोरो दांतलो हे

बुधवार, 10 अगस्त 2016

मत देख मिनख री रीत पंछीड़ा

मत देख मिनख री रीत पंछीड़ा-गिरधरदान रतनू दासोड़ी
मत देख मिनख री नीत पंछीड़ा,
गीत रीत रा गायां जा!
आयां जा मन मेल़ू तूं,
साचोड़ी देख सुणायां जा!!
आवै है ग्रहण आजादी पर,
ऊंगाणा बैठा गादी पर।
गांधी री काती हाथां.सूं,
ऐ कलंक लगावै खादी पर।
वोटां पर जाल़ बिछायोड़ा,
थिरचक है कुड़का ठायोड़ा।
इसड़ो ऐ नांखै देख चुग्गो,
फस ज्यावै मानव डायोड़ा।
नुगरा बल़ -छल़ में नामी है,
हरमेस लूट रा हामी है।
कुर्सी री राखै देख निगै,
ज्यूं -त्यूं ई राखै थामी है।
विध-विध रा न्यारा वेस देख,
आदत रा सगल़ा है ज एक है।
तूं आवै क्यूं झांसां आ़रां में?
ऐ देवै अंगूठो गल़ै टेक।
तूं छोड आस सागै री,
आगै री डांडी जायां जा।
साचोड़ी सदा सुणायां जा!
मिनख हुवो घर पर अणमातो,
खोल रैयो फल़सो.संकुचातो।
घट गई मिनख री जग कीमत!
जद समर समर मनड़ै पछतातो।
मिनखां री माया रा भाग देख,
मनरो नीं लाधै थाग देख।
गिंडक रो मानव रै नेणां,
मानव सूं बधतो आघ देख।
हालत ऐ देख बण्या है कैड़ा,
नीं आवै नेही तो नैड़ा!
मानव सूं मानव चमक रैयो है,
माल चरै है देख गघेड़ा!
मानै तूं जितरा ई मोटा!
जाणै तूं उतरा ई खोटा!!
इण में नीं झूठ रति भर है,
अपणायत राखै दिल छोटा।
तूं अणभै आभै रो वासी!
वनवासी साच बतायां जा।
साचोड़ी सदा सुणायां जा।।2
घर-घर में बैठा दुरजोधन,
औरत किम शील रुखाल़ै धन!
पूगै नीं हाथ वंसीधर रो जद,
कुण ढकै उघड़तो द्रोपद तन?
ऐ कुरवंस्यां रा रचिया जाल़ जठै,
धारै कुण भीखम नैं आज उठै।
जठै धरम धीठाई धारै जद
बल़हीणा बणज्या वीर बठै।।
बेबस सांवरियो थाक गयो,
माठै मन ओछी ताक गयो।
खुस गयो पीताबंर ई उणरो,
लाजा़ं मर रथड़ो हाक गयो।
तोड़ै है कानूड़ो दीह जठी,!
आवै कुण पूरण चीर उठी?
आंधो कानून राज ई आंधो
जावै कर फरियाद कठी?
ललचाया लालच में बैठा,
चांच खोल चेतायां जा।
साचोड़ी देख सुणायां जा।।3
चोरां री जाजम बिछी जठै!
उणपर तो साचो नाय खटै।
जठै लूट खसोटां जारी है,
कुण करै त्याग रो मोल उठै?
मांटीपण रो अब मोल नहीं!
अंतस में देख इलोल़ नहीं!
पाल़ण सारु पैला ज्यूं, ऐ
मरद  कहै अब बोल नहीं!!
नैणां में ज्यांरै लाज नहीं,
ठगपण सूं आवै बाज नहीं।
मर गयो मिनखपण उर आंरै,
धूरतपण आडी पाज नहीं।
निस दिवस राम रो नाम रटै!
उण ओट गरीबां मार गिटै!!
स्वारथ में रंगिया स्याल़ देख,
ऐ भैंस काटलै सल़ू सटै!
इण देख दुरंगी दुनिया नैं,
सतवाल़ो माग दिखायां जा!
साचोड़ी देख सुणायां जा।।4
अणसैंधी हुयगी गांम गल़ी हर,
फल़सा जरू होयगा घर-घर।
अणजाण्या लागै उणियारा,
अब भटक भलांई भोदू दर- दर।
विश्वास डोर आ टूट गई है,
प्रीत आंख्यां री खूट गई है।
कल़ियोड़ो गाडो काढण री,
आ बांण अबै तो छूट गई है।
ओ हाथ -हाथ रो बणियो वैरी,
इमरत ई अब सुणियो जैरी!
किण पर तूं विश्वास करेलो!
सिंघां री खाल गधेड़ां पैरी!!
बदल़ गई रंगत आ सारी ,
आय गई आफत आ भारी!
आहेड़ी पग-पग रै छेड़ै,
तूं रखवाल़ काया अब थारी!!
थिर जात्री अणथक रहजै,
वाणी सुर सरसायां जा!
साचोड़ी देख सुणायां जा।।5
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

मंगलवार, 9 अगस्त 2016

म्हारै देखतां -देखतां गमग्यो गांम!

म्हारै देखतां -देखतां गमग्यो गांम!-

गिरधरदान रतनू दासोड़ी
नीं चंवरां में जाजम
नीं घेर घुमेर वड़लो!
नीं मन!
नीं मन री बातां!
करण री कोई ठावी ठौड़
फगत निगै आवै है-
झोड़ ई झोड़!
जिणरो नीं कोई निचोड़!
नीं निचोड़ काढणियो
तो पछै तोड़ कठै है?
जठै नीं मिल़ै -
किणी री आंख आपस में
उठै पांख विहूणो मन
तूटोड़ै तन में ढिरड़ीजै है
बिनां कमाया
धन जोड़ण री जुगत में
पचै है सगल़ा बिनां विसराम!
म्हारै देखतां-देखतां गमग्यो गांम।।
जठै नीं बाजै अबै
चैन री वंशी
नीं आवै किणी नैं
घोर खांच
सुखरी नींद!
नीं उछरै वाघेलो
नीं बाजै रुणझुणता टोकरिया
छोकरिया तो भूलग्या मस्ती
अर मस्ती में रमणो!
डोकरिया तो नीं जाणै!
कठै  होयग्या गायब?
कठै मोटियार!
अर कठै मोटियार गाल़ो?
कठै मालो!अनै कठै मल्ल?
ऐ बातां तो पड़गी है पांतरै!
अबै तो फगत
चर -भर रमणिया
आवै है निगै
जोड़ता दुभरिया अठजाम!
म्हारै देखतां -देखतां गमग्यो गांम!
नीं कोई दूध री अथाणी!
नीं मथाणी घूमती महि री!
नीं घट्टी !नीं घट्टी वेल़ा!
नीं प्रभात नीं प्रभाती!
नीं कोई मीठास
नीं कोई मीठी मा!
नीं कोई भाभो नी कोई भाभू!
अबै तो फगत
चैप्योड़ा लागै है गन्ना!
माल़ीपानां में पल़पल़ाता
साव भाठै रै उनमान।
नीं नेह री निर्झणी
नीं अपणास रो इमरत!
नीं दिल में दरद
नीं दरद समझण री समझ!
नीं लड़थड़तै नैं कोई थामै
आगै बधर हाथ थाम!
म्हारै देखतां-देखतां गमग्यो गांम।।
ज्यूं -ज्यूं बदल़ियो समै
त्यूं-त्यूं इकरंगो गांम
किरड़ै ज्यूं बदल़तो गयो!
छोडतो गयो लाज
उतारतो गयो कांचल़ी शरम री
त्यागतो रैयो धरम मिनखापणै रो!
भरम में भमीज्योड़ो
बोल री कीमत ई विसरग्यो!
सीखग्यो छल -छदम
कदम-कदम माथै करणी-
छागटाई!
कर लीनो धारण
वानो  हुसनाकपणै रो!
गल़ी -गल़ी गल़गल़ी कर
गिटग्यो गवाड़ ,गोचर
देखतां-देखतां !
नीं छोडी नाडी
नीं निवाण नीं ताडो!
जारग्यो जीवती माखी
बिनां मिचलाण रै
नीं मानी हलाल
अर  नीं गिणी हराम!
म्हारै देखतां-देखतां गमग्यो गांम!!
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

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