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मंगलवार, 12 सितंबर 2017

Confidence of a Rajasthani

Confidence of a Rajasthani.

राजस्थान के कुछ लोगों   की मीटिंग हुई।
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मुद्दा था स्वतंत्रता संग्राम !!
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समस्या ये थी कि राजस्थान  को भारत से आज़ाद कैसे कराया जाए ।
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1 राजस्थानी  : आज़ाद कराणा कुणसा,
  मुसकिल काम हैं ?

पर हम राजस्थान  का विकास कियां कराला?
सोचबां आली बात आ हैं?
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2राजस्थानी: एक काम करां आपां तो,आपां सगळां जणा  मिलर अमरीका पर हमला कर देवांला!!
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3 राजस्थानी: हां रे भाया ?

अमरीका पर हमलो
करबां सूं काईं होवेलो ??
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: रै भाई  !! जियाँ ही आपां  हमलो कराला,
अमरिका आपां ने  हरा दे लो।
और आपणा राज्य पर कब्ज़ा कर ले लो?

फ़ेर कायदा सूं आपां लोग अमरिका का ही नागरिक बण जावेला।
बो   खुदको विकास तो  करतो ही रहवे है.. !!
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.आपणो भी सागे-सागे हो जावेलो?

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4 राजस्थानी :वाह भाया
फ़ेर तो न  वीजा न पासपोर्ट !

आपणा सब रुपैया डालर बण जावेला।
छोरा अंग्रेजी बोलेला।

खुणा में बेठो नाथयो  चुपचाप हो? "

हां रे!!--- नाथया तु काईं नी बोले रे?"
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नाथयो : "रै! भाया  मै यूं सोचू  सू कि,

हमला में जो गलती सूं आपां  जीतग्या तो अमरिका को काईं होवेलो?"

जोधपुर माते भरोसो

*सोनू सोनू थने जोधपुर माते भरोसो कुनि कई ?*

*मिश्रीमल री लस्सी है माखनिया, मिल ने पिवे सखी - साथणीया ।*
*लषन रो कोफ़्तों है गोल गो ल, जालोरी गेट तू मारे सुं मिठो बोल ।।*

*सूर्या रो मिर्चीबड़ो है तीखो, चतुर्भुज रो मावो है फीको ।*
*राम रो डोसो है गोल गोल, नावचोकीये री हथाई में तू* *मीठो बोल ।।*

*त्रिपोलिया री भीड़ है तगड़ी, जोधपुर री शान है पगड़ी*
*चतुर्भुज रो गुलाब जामुन है गोल गोल, टुरिया तू मारे सुं* *मीठो बोल ।।*

*शास्त्री नगर रा घर है मोटा , जोधपुर रा ट्राफिक है खोटा*
*भवानी रा दाल बाटा है गोल गोल , आशाराम बापू तू मारे* *सुं मीठो बोल*

*जोधपुर रो किलो है उँचों, रजवाड़ों री तगड़ी है मूंछों*
*नैवेद्यम रो चक्कर बड़ो है गोल गोल, शानदार तू मारे सुं* *मीठो बोल*

*सोनू थने जोधपुर माते भरोसो कुनि कई **

गल़ी -गल़ी गल़गल़ी क्यूं छै!-

गल़ी -गल़ी गल़गल़ी क्यूं छै!-

गिरधरदान रतनू दासोड़ी

आ गल़ी -गल़ी गल़गल़ी क्यूं छै!
तीसरी पीढी खल़ी क्यूं छै!!

ऊपर  सूं शालीन  उणियारो!
लागर्यो हर मिनख छल़ी क्यूं छै!!

काल तक गल़बाथियां बैती।
वे टोलियां आज टल़ी क्यूं छै!!
रीस ही आ रूंखड़ां माथै!
तो मसल़ीजगी जद कल़ी क्यूं छै!!

नीं देवणो सहारो तो छौ!
पण तोड़दी आ नल़ी क्यूं छै!!

काम  काढणो तो निजोरो छै!
कढ्यां उर आपरै  आ सिल़ी क्यूं छै!!

धरम री ओट में  आ खोट पसरी!
धूरतां री जमातां इम पल़ी क्यूं छै!!

बाढणा पींपल़ अर नींबड़ां नै!
तो बांबल़ां री झंगी आ फल़ी क्यूं छै!!

कदै आ आप सोचोला !कै
भांग यूं कुए में भिल़ी क्यूं छै!!

मंगलवार, 5 सितंबर 2017

प्रीतम घरां पधार ....

प्रीतम घरां पधार ....

Ratan singh champawat:

चटक चंचला चाँदनी  धवल रूप रस धार
कंत उडीकै कामणी   प्रीतम घरां पधार

कंचन वरणी कामिनी   रो़य रोय रतनार
विरह रोग विपदा विविध  प्रीतम घरां पधार

सेजां नीं है सायबो   सूनो सब सँसार
आप बिना हूँ अेकली  प्रीतम घरां पधार

जड़ चेतन जंगम जबर.  जीवा जूण जुग सार
सायब बिन सूना सकल   प्रीतम घरां पधार

आप तणों अवलम्ब है   आतम रूप आधार
निज रूप निराकार व्है   प्रीतम घरां  पधार

प्रीतम प्रीत प्रभाव प्रण   प्रीत प्रबल प्रहार
प्रीत रीत पहचान पुनि   प्रीतम घरां  पधार

दैवरूप दुनियांण दर   दरस देय दातार
प्रीत पुरातन पाळ पण.  प्रीतम घरां पधार

अवल अलख आराधना  अमित अनंत अपार
आखर आखर अवतरों   प्रीतम आप पधार

©®@ रतन सिंह चाँपावत रणसी गांव कृत

गुरुवार, 31 अगस्त 2017

लोकदेवता तेजाजी

आइये जाने की कौन थे तेजाजी..???—

तेजाजी राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात प्रान्तों में लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं। किसान वर्ग अपनी खेती की खुशहाली के लिये तेजाजी को पूजता है। तेजाजी के वंशज मध्यभारत के खिलचीपुर से आकर मारवाड़ मे बसे थे। नागवंश के धवलराव अर्थात धौलाराव के नाम पर धौल्या गौत्र शुरू हुआ। तेजाजी के बुजुर्ग उदयराज ने खड़नाल पर कब्जा कर अपनी राजधानी बनाया। खड़नाल परगने में 24 गांव थे।
तेजाजी ने ग्यारवीं शदी में गायों की डाकुओं से रक्षा करने में अपने प्राण दांव पर लगा दिये थे। वे खड़नाल गाँव के निवासी थे। भादो शुक्ला दशमी को तेजाजी का पूजन होता है। तेजाजी का भारत के जाटों में महत्वपूर्ण स्थान है।

तेजाजी सत्यवादी और दिये हुये वचन पर अटल थे। उन्होंने अपने आत्म – बलिदान तथा सदाचारी जीवन से अमरत्व प्राप्त किया था। उन्होंने अपने धार्मिक विचारों से जनसाधारण को सद्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया और जनसेवा के कारण निष्ठा अर्जित की। जात –प पांत की बुराइयों पर रोक लगाई। शुद्रों को मंदिरों में प्रवेश दिलाया। पुरोहितों के आडंबरों का विरोध किया। तेजाजी के मंदिरों में निम्न वर्गों के लोग पुजारी का काम करते हैं। समाज सुधार का इतना पुराना कोई और उदाहरण नहीं है। उन्होंने जनसाधारण के हृदय में हिन्दू धर्म के प्रति लुप्त विश्वास को पुन: जागृत किया। इस प्रकार तेजाजी ने अपने सद्कार्यों एवं प्रवचनों से जन – साधारण में नवचेतना जागृत की, लोगों की जात – पांत में आस्था कम हो गई।

*लोक देवता तेजाजी का जन्म एवं परिचय–*

लोक देवता तेजाजी का जन्म नागौर जिले में खड़नाल गाँव में ताहरजी (थिरराज) और रामकुंवरी के घर माघ शुक्ला, चौदस संवत 1130 यथा 29 जनवरी 1074 को जाट परिवार में हुआ था। उनके पिता गाँव के मुखिया थे। 

तेजाजी का जन्म धौलिया या धौल्या गौत्र के जाट परिवार में हुआ।

*धौल्या शासकों की वंशावली इस प्रकार है:-*

1.महारावल 2.भौमसेन 3.पीलपंजर 4.सारंगदेव 5.शक्तिपाल 6.रायपाल 7.धवलपाल 8.नयनपाल 9.घर्षणपाल 10.तक्कपाल 11.मूलसेन 12.रतनसेन 13.शुण्डल 14.कुण्डल 15.पिप्पल 16.उदयराज 17.नरपाल 18.कामराज 19.बोहितराव 20.ताहड़देव 21.तेजाजी

यह कथा है कि तेजाजी का विवाह बचपन में ही पनेर गाँव में रायमल्जी की पुत्री पेमल के साथ हो गया था किन्तु शादी के कुछ ही समय बाद उनके पिता और पेमल के मामा में कहासुनी हो गयी और तलवार चल गई जिसमें पेमल के मामा की मौत हो गई। इस कारण उनके विवाह की बात को उन्हें बताया नहीं गया था। एक बार तेजाजी को उनकी भाभी ने तानों के रूप में यह बात उनसे कह दी तब तानो से त्रस्त होकर अपनी पत्नी पेमल को लेने के लिए घोड़ी ‘लीलण’ पर सवार होकर अपनी ससुराल पनेर गए।

रास्ते में तेजाजी को एक साँप आग में जलता हुआ मिला तो उन्होंने उस साँप को बचा लिया किन्तु वह साँप जोड़े के बिछुड़ जाने कारण अत्यधिक क्रोधित हुआ और उन्हें डसने लगा तब उन्होंने साँप को लौटते समय डस लेने का वचन दिया और ससुराल की ओर आगे बढ़े। वहाँ किसी अज्ञानता के कारण ससुराल पक्ष से उनकी अवज्ञा हो गई। नाराज तेजाजी वहाँ से वापस लौटने लगे तब पेमल से उनकी प्रथम भेंट उसकी सहेली लाछा गूजरी के यहाँ हुई। उसी रात लाछा गूजरी की गाएं मेर के मीणा चुरा ले गए। लाछा की प्रार्थना पर वचनबद्ध हो कर तेजाजी ने मीणा लुटेरों से संघर्ष कर गाएं छुड़ाई। 

 
इस गौरक्षा युद्ध में तेजाजी अत्यधिक घायल हो गए। वापस आने पर वचन की पालना में साँप के बिल पर आए तथा पूरे शरीर पर घाव होने के कारण जीभ पर साँप से कटवाया। किशनगढ़ के पास सुरसरा में सर्पदंश से उनकी मृत्यु भाद्रपद शुक्ल 10 संवत 1160, तदनुसार 28 अगस्त 1103 हो गई तथा पेमल ने भी उनके साथ जान दे दी। उस साँप ने उनकी वचनबद्धता से प्रसन्न हो कर उन्हें वरदान दिया। इसी वरदान के कारण गोगाजी की तरह तेजाजी भी साँपों के देवता के रूप में पूज्य हुए। गाँव गाँव में तेजाजी के देवरे या थान में उनकी तलवारधारी अश्वारोही मूर्ति के साथ नाग देवता की मूर्ति भी होती है। इन देवरो में साँप के काटने पर जहर चूस कर निकाला जाता है तथा तेजाजी की तांत बाँधी जाती है। 
 

तेजाजी के निर्वाण दिवस भाद्रपद शुक्ल दशमी को प्रतिवर्ष तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है। लोग व्रत रखते हैं। नागौर जिले के परबतसर में प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल 10 (तेजा दशमी) से पूर्णिमा तक तेजाजी के विशाल पशु मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें लाखों लोग भाग लेते हैं। वीर तेजाजी को “काला और बाला” का देवता तथा कृषि कार्यों का उपकारक देवता माना जाता है। उनके बहुसंख्यक भक्त जाट जाति के लोग होते हैं। तेजाजी की गौ रक्षक एवं वचनबद्धता की गाथा लोक गीतों एवं लोक नाट्य में राजस्थान के ग्रामीण अंचल में श्रद्धाभाव से गाई व सुनाई जाती है।

तेजाजी के बुजुर्ग उदयराज ने खड़नाल पर कब्जा कर अपनी राजधानी बनाया। खड़नाल परगने में 24 गांव थे। तेजाजी का जन्म खड़नाल के धौल्या गौत्र के जाट कुलपति ताहड़देव के घर में चौदस वार गुरु, शुक्ल माघ सत्रह सौ तीस को हुआ।

*तेजाजी के जन्म के बारे में मत है-*

जाट वीर धौलिया वंश गांव खरनाल के मांय।
आज दिन सुभस भंसे बस्ती फूलां छाय।।
शुभ दिन चौदस वार गुरु, शुक्ल माघ पहचान।
सहस्र एक सौ तीस में प्रकटे अवतारी ज्ञान ।।

देख सके तो आज देख ले

*देख सके तो आज देख ले*!!!!!!

आ आजादी आज देख ले !
तकदीरां का ताज देख ले !!

करमां आडी लीकां काडी,
आरक्षण आगाज देख ले !
रुजगारां रो रोळो मचियौ ,
रोळ दपट्ट ऐ राज देख ले !!

ठावा ठरका ठसक ठाकरी,
अफसरिया अंदाज देखलेे !
लहरां बिच में लाय लागगी ,
जळ बिन डूू़बी जाज देख ले!!

धरम धजा धारै धणियापौ ,
दुष्टि  दंगाबाज  देख  ले !
नेताजी रा नखरा न्यारा ,
खिणे कोढ में खाज देख ले !!

लाडेसर लखणां रा लाडा ,
लुटतां लिछमी लाज देख ले!
भ्रष्टाचारी गुणिया भणिया ,
करोड़ां का काज देख ले !!

चोरी  ज़ारी  बारी  बारी ,
रोज करे रियाज देख ले !
लुकती लुळती लाचारी रा ,
सूना पड़िया साज देख ले!!

निबंळां ऊपर निरभै नाचै ,
सबळां रो समाज देख ले !
अंत हो जासी आंख अंधेरों ,
देख सके तो आज देख ले !!

*रतन सिंह चंपावत रणसी गांव* ©©©©©©

बाबा रामदेव जी द्वारा भैरव राक्षस वध कथा

*बाबा रामदेव जी द्वारा भैरव राक्षस वध कथा*

इन्ही बाबा रामदेवजी के अवतार की एक वजह भैरव नाम के दैत्य के बढ़ते अपराध भी था. भैरव पोकरण के आस-पास किसी भी व्यक्ति अथवा जानवर को देखते ही खा जाता था. इस क्रूर दैत्य से आमजन बेहद त्रस्त थे. रामदेव जी की कथा के अनुसार बचपन में एक दिन गेद खेलते हुए, मुनि बालिनाथ जी की कुटिया तक पहुच जाते हैं. तभी वहाँ भैरव दैत्य भी आ जाता हैं, मुनिवर बालक रामदेव को गुदड़ी से ओढ़कर बालक को छुपा देते हैं. दैत्य को इसका पता चल जाता हैं. वह गुदड़ी खीचने लगता हैं. द्रोपदी के चीर की तरह वह बढती जाती हैं.

अत: भैरव हारकर भागने लगता हैं. तभी ईश्वरीय शक्ति पुरुष बाबा रामदेव जी घोड़े पर चढ़कर इसका पीछा करते हैं. लोगों की किवदन्ती की माने तो उन्हें एक पहाड़ पर मारकर वही दफन कर देते हैं. जबकि मुह्नौत नैणसी की मारवाड़ रा परगना री विगत के अनुसार इसे जीवनदान देकर आज से कुकर्म न करने व मारवाड़ छोड़ चले जाने पर बाबा रामदेव जी भैरव को माफ़ कर देते हैं. और वह चला जाता हैं. इस प्रकार एक मायावी राक्षसी शक्ति से जैसलमेर के लोगों को रामसा पीर ने पीछा छुड़वाया.

*बाबा रामदेव जी का विवाह*

संवत सन 1426 में बाबा रामदेव जी का विवाह अमरकोट जो वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित हैं. यहाँ के दलपत जी सोढा की पुत्री नैतलदे के साथ श्री बाबा रामदेवजी का विवाह हुआ. नैतलदे जन्म से विकलाग थी, जो चल फिर नही सकती थी, मगर अवतारी पुरुष (कृष्ण अवतार) ने पूर्व जन्म में रुखमनी (नैतलदे) को वचन दिया था. कि वे अगले जन्म में आपके साथ ही विवाह करेगे.

विवाह प्रसंग में नैतलदे को फेरे दिलवाने के लिए बैशाखिया लाई गयीं, मगर चमत्कारी श्री रामदेवजी ने नैतलदे का हाथ पकड़कर खड़ा किया और वे अपने पैरो पर चलने लगी. इस तरह बाबा रामदेवजी का विवाह बड़े हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ. दुल्हन नैतलदे ने साथ अपने ग्राम रामदेवरा पहुचने पर उनकी बहिन सुगना बाई (चचेरी बहिन) उन्हें तिलक नही लगाने आई. जब इसका कारण पूछा गया तो पता चला उसके पुत्र यानि रामदेवजी के भांजे को सर्प ने डस लिया था. तब बाबा स्वय गये और अपने भानजे को उठाकर साथ लाए तो लोग हक्के बक्के से रह गये.

*बाबा रामदेव जी के 24 पर्चे (चमत्कार)*

लोक देवता बाबा रामदेव जी ने जन्म से लेकर अपने जीवन में 24 ऐसे चमत्कार दिखाए, जिन्हें आज भी बाबा रामदेव जी के भजनों में याद किया था. माँ मैनादे को इन्होने पहला चमत्कार दिखाया, दरजी को चिथड़े का घोड़ा बनाने पर चमत्कार, भैरव राक्षस को बाबा रामदेव जी का चम्त्कार सेठ बोहितराज की डूबती नाव उभारकर उनको पर्चा, लक्खी बिनजारा को पर्चा, रानी नेतल्दे को पर्चा, बहिन सुगना को पर्चा, पांच पीरों को पर्चा सहित बाबा रामदेव जी ने कुल 24 परचे दिए.

*बाबा रामदेव जी की समाधि*

मात्र तैतीस वर्ष की अवस्था में चमत्कारी पुरुष श्री बाबा रामदेव जी ने समाधि लेने का निश्चय किया. समाधि लेने से पूर्व अपने मुताबिक स्थान बताकर समाधि को बनाने का आदेश दिया. उसी वक्त उनकी धर्म बहिन डालीबाई आ पहुचती हैं. वो भाई से पहले इसे अपनी समाधि बताकर समाधि में से आटी डोरा आरसी के निकलने पर अपनी समाधि बताकर समाधि ले ली. डालीबाई के पास ही बाबा रामदेव जी की समाधि खुदवाई गईं. हाथ में श्रीफल लेकर सभी ग्रामीण लोगों के पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त कर उस समाधि में बैठ गये और बाबा रामदेव के जयकारे के साथ सदा अपने भक्तो के साथ रहने का वादा करके अंतर्ध्यान हो गये.

*बाबा रामदेव जी का रामदेवरा मेला & जन्म स्थान*

आज बाबा रामदेव जी राजस्थान के प्रसिद्ध लोकदेवता हैं. उनके द्वारा बसाए गये. रामदेवरा गाँव में वर्ष भर मेले का हुजूम बना रहता हैं. भक्त वर्ष भर बाबा के दर्शन करने आते हैं.बाबा रामदेव जी के जन्म दिन भादवा सुदी बीज को रामदेवरा में विशाल मेला भरता हैं. लाखों की संख्या में भक्त दर्शन की खातिर पहुचते हैं. पुरे राजस्थान में बाबा रामदेव जी के भक्तो द्वारा दर्शनार्थियों के लिए जगह-जगह पर भंडारे और रहने की व्यवस्था हैं.

लगभग तीन महीने तक चलने वाले इस रामदेवरा मेले में सभी धर्मो के लोग अपनी मुराद लेकर पहुचते हैं. बाबा रामदेव जी की समाधि के दर्शन मात्र से व्यक्ति की सभी इच्छाए और दुःख दर्द स्वत: दूर हो जाते हैं. बाबा रामदेवजी का जन्म स्थान उन्डू काश्मीर हैं, जो बाड़मेर जिले में स्थित हैं. वहां पर बाबा रामदेव जी का विशाल मन्दिर हैं. समाधि के दर्शन करने वाले सभी भक्त गन जन्म स्थान को देखे बिना घर लौटने का मन ही नही करते.

*रामदेवरा जाने का रास्ता*

यदि आप भी कभी बाबा रामदेव जी के दर्शन करना चाहे तो शिक्षा विभाग समाचार टीम भी आपकों न्यौता देती हैं. आपकी यात्रा के लिए अच्छा समय सावन, भाद्रपद यानि जुलाई अगस्त महीने में आप राजस्थान के जैसलमेर जिले के पोकरण तहसील में स्थित रामदेवरा पहुच सकते हैं. यदि आप गुजरात के रास्ते सफर करते हैं.

रेल बस, अथवा पैदल यात्रा के लिए जोधपुर,बाड़मेर से होते हुए पोकरण के रास्ते रामदेवरा जा सकते हैं. पहली बार यात्रा करने का सोच रहे पाठको को बताना चाहेगे रामदेवरा गाँव तक आप ट्रेन से भी यात्रा कर सकते हैं |

HISTORY OF JODHPUR : मारवाड़ का संक्षिप्त इतिहास

  Introduction- The history of Jodhpur, a city in the Indian state of Rajasthan, is rich and vibrant, spanning several centuries. From its o...

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