राजपुताना के रीति रिवाज जिनकी जानकारी हमारे लिए आवश्यक है।
1.) अगर आप के पिता जी /दादोसा बिराज रहे है तो कोई भी शादी ,फंक्शन, मंदिर आदि में आप के कभी भी लम्बा तिलक और चावल नहीं लगेगा, सिर्फ एक छोटी टीकी लगेगी !!
2.) जब सिर पर साफा बंधा होता है तो तिलक करते समय पीछे हाथ नही रखा जाता,सर के पीछे हाथ रखने से ऐश्वर्य का प्रतिक( साफे) का पर्याय कभी हाथ नहीं हो सकता है, यदि सिर पर साफा नहीं हो, तो बिना सिर पर हाथ रखे ही तिलक करवाए ।
3.) पिता का पहना हुआ साफा , आप नहीं पहन सकते
4.) मटिया, गहरा हरा, नीला, सफेद ये शोक के साफे है
5.) खम्मा घणी का असली मतलब है "माफ़ करना में आप के सामने बोलने की जुरत कर रहा हूं, जिस का आज के युग में कोई मायने नहीं रहा गया है !!
6.) असल में खम्माघणी , चारण, भाट, ढोली - ढुम ठिकानेदार / राजा /महाराजा के सामने कुछ बोलने की आज्ञा मांगने के लिए use करते थे.
7.) ये सरासर गलत बात है की घणी खम्मा, खम्मा-घणी का उत्तर है, असल में दोनों का मतलब एक ही है !!
8.) हर राज के, ठिकाने के, यहाँ clan/subclan के इस्थ देवता होते थे, जो की जायदातर कृष्ण या विष्णु के अनेक रूपों में से होते थे, और उनके नाम से ही गाँववाले या नाते-रिश्तेदार आप का greet करते थे, जैसे की जय रघुनाथ जी की , जय चारभुजाजी की...जय गोपीनाथ जी की ।
9.) पैर में कड़ा-लंगर, हाथी पर तोरण, नंगारा, निशान, ठिकाने का मोनो ये सब जागीरी का हिस्सा थे, हर कोई जागीरदार नहीं कर सकता था, स्टेट की तरफ से इनायत होते थे..!!
10.) मनवार का अनादर नहीं करना चाहिए, अगर आप नहीं भी पीते है तो भी शिष्टाचार पूर्वक उनका अभिवादन करें ।
11.) अमल घोलना, चिलम, हुक्का या दारू की मनवार यह सामाजिक दुराचार हैं ना कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर ।
12.)ढोली के ढोल को "अब बंद करो या ले जायो" नहीं कहा जाता है "पधराओ " कहते हैं।
13.) आज भी कई घरों में तलवार को म्यान से निकालने नहीं देते, क्योंकि तलवार की एक परंपरा है - अगर वो म्यान से बाहर आई तो या तो उनके खून लगेगा, या लोहे पर बजेगी, इसलिए आज भी कभी अगर तलवार म्यान से निकलते भी है तो उसको लोहे पर बजा कर ही फिर से म्यान में डालते है !!
14.) तोरण मारना इसलिए कहते है क्योकि तोरण एक राक्षस था, जिसने शिवजी के विवाह में बाधा डालने की कोशिश की थी और उसका शिवजी ने वध किया था
15.) ये कहना गलत है की माताजी के बलि चढाई जाती हैं , माताजी तो पूरे जगत की (जननी) माँ है वो भला कैसे किसी प्राणी की बलि ले सकती है? विचार करें कि क्या वह प्राणी इस जगत में नहीं आता हैं?
माता बलि लेती हैं हमारे दुर्गुणों(काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार आदि) की।
पशु बलि इन पण्ड़ावादी पाखंड पुराणो में तांत्रिक उपासकोंकी देन है, नाकि क्षत्रियों द्वारा लिखित सात्विक क्षत्रिय ग्रथों(वेद, उपनिषद, वाल्मीकि रामायण, महाभारत व गीता) की देन है ।