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सोमवार, 22 अगस्त 2016

बातचीत री डोर

बातचीत री डोर

बांधै इक परवार नै,बातचीत री डोर।
मन मुटाव अळगो रहे, संपत राखै जोर।।1।।

जणो जणो राजी रहे,रिदै न आणै रीस।
काम करै सो प्रेम सूं,ऊजळ लै आसीस।।2।।

मन मुटाव मेटै सदा,बातचीत री डोर।
तूटा जोड़ै तारड़ा, कसर छोड़ै न कोर।।3।।

पापो काटै राड़ रौ,बातचीत री डोर।
सैणां नै राजी करै,बंदो हुवै न बोर ।।4।।

रंग रचावै प्रेम सूं ,बातचीत री डोर।
घावां मेंटै मांयला,दमखम हंदो दोर।।5।।

धेजो देवै धीज नै ,बातचीत री डोर।
पासो झालै न्याव रौ,हिवड़ै उठै हिलोर।।6।।

उतम कबीलो आपणो,भलो राख बरताव।
सुंदर घटक समाज रौ ,सदा भरो सदभाव।।7।।

@संग्रामसिंह सोढा सचियापुरा

तीज पर्व पर छन्द

आभै देखूं बादळा, हिवड़ै उपजै नेह ।
साजन होवै साथ मेँ, भळ बरसो थे मेह ।।

चंदै लिपटी बादळी, आभै देखूं भाज ।
घरां पधारो सायबा, काया छोडूं आज ।।

रविवार, 21 अगस्त 2016

तरस मिटाणी तीज!

तरस मिटाणी तीज!

गिरधरदान रतनू दासोड़ी
भलो थल़ी में भादवो, रमूं सहेली रीझ।
हड़हड़ती हँसती हरस,तरस मिटाणी तीज।
हरदिस में हरयाल़ियां,भोम गई सह भीज।
भल तूं लायो भादवा, तरस मिटाणी तीज।।
भैंसड़ियां सुरभ्यां भली,पसमां घिरी पतीज।
मह थल़ बैवै मछरती,तकड़ी भादव तीज।।
सदा सुहागण सरस मन,धन उर राखै धीज।
भाई!लायो भादवा,तरस मिटाणी तीज।।
मही घमोड़ै माटलां,रे थल़ रमणी रीझ।
भल सुखदायक भादवा,तो सँग खुशियां तीज।।
सदन हींड तणियां सबल़,पह मन बै पोमीज।
जुड़ जुड़ साथण झूलती,तण तण भादव तीज।।
साहिब ज्यांरा सदन नीं,खरी हेली गी खीझ।
म्हैं तो मनभर मांणसूं,तकड़ी भादव तीज।।

कसलै कमर

कसलै कमर-गिरधरदान रतनू दासोड़ी
आ ठंडोड़ी शीतल लहर त्याग,
हालण दे पग अग रज ताती पर।
ओ प्रखर तावड़ो संकट रो,
नित झाल उगाड़ी छाती पर।
जे खांची तैं पाछी छाती नै,
तो सुख नींद सपन में आवैली।
अजूं उण पा'ड़ां रै पार उतरणो है,
बिखम्यां री घाट्यां आवैली।
पण राख्यो हिरदै में धीर वीर तैं,
पीड़ पवन ज्यूं जावैली।।
ऐ सगल़ा है सीरी संपत रा,
खोटै दिन पड़सी तोय खबर।
ऐ सनमुख स्नेह दिखावणिया,
घालेला छाती घाव जबर।
उगड़ेला नैण ,सैण जिण दिन,
आ दुनिया रूप दिखावैली।
अजूं उण पा'ड़ां.....
कर कर्म शर्म नै छोड परो,
क्यूं भागवाद रै लार पड़ै।
तूं देख बगत री चाल जगत में,
एकल घोड़ो फेर खड़ै।
आंख मूंद विश्वास करेलो,
चैन नींद उड जावैली।
अजूं उण पा'ड़ां.....
इण जगरै जुलमां री झाल़ झाल तूं,
हूंस हिंयै री राख सधर।
पग पग पर पैणा पीवणिया,
मारण नै कसलै आज कमर।
जे आज भ्रमग्यो भूलै में,
आ भूल तनै ई खावैली।
अजूं उण पा'ड़ां...
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

साला 25 साल इंतजार करणो

जज - आखिरी बार किससे मिलना
चाहोगे?
. . .
अपराधी - जी मारी लुगाई सु सा .. . . .
जज-क्यों मां-बाप से नहीं मिलोगे? . .
.
अपराधी- जी मां-बाप तो दूजो जन्म लेता ही मिल जाय सा ..
पर इ लुगाई के लिए . . .
साला 25 साल इंतजार करणों
पहले खूब पढ़णो
फिर नोकरी लागणो
फिर सेट वेणो
फिर लडकी देखबा जाणो .. . .
फिर लडकी के माँ बाप के समज म आणो .. . . .
फीर सगाई करणों...
फिर लगन झेलणा
फिर कंकूपत्री छपाणी
फिर छोकला म बाट्णी
फिर वन्दोरा जीमणा
फिर रोज पिटि कराणि
फिर बंदोली काड़णी
फिर रोड़ी नूतणी
फिर भेरू पूजणो
फिर जिमणो करणों
फिर सब न जिमाणा
फिर मंदर धोकणो
फिर बीरा बदावणा
फिर मोसारा वदाणा
फिर वरात ल॓ जाणी
फिर तोरण मारणो
फिर फेरा खावणा
फिर डाइजो लेर घर आणो
फिर जुझार को रातीजगो
फिर राखी दोड़ा खोलना
फिर सारी बेन बेट्या न सीख देणी
घणा लफड़ा वे जदी आ जगदम्बा घर आवे हे सा ।।
खोपड़ी घूम जावे अंदाता

जज कोमा में

शनिवार, 20 अगस्त 2016

राखड़ी रो नेग !

राखड़ी रो नेग ! गिरधरदान रतनू दासोड़ी
राखड़ी
बांधणियै
जद जद ई
किणी रै बांधी है!
तो एक सुखद अहसास
होयो मन में !
पनपियो है भाव द्रढता रो
एक अदीठ डर सूं
भिड़ण री ,बचण री
दीसी है जुगत
फगत राखड़ी रै धागै रै पाण
पनपियो है आपाण
इण हाण फाण जिंदगी री-
गंदगी सूं ऊबरण रा
दीस्या है ऐनाण -
राखड़ी रै आसै पासै-
जुगां- जुगां सूं सुणता
रैया हां कै
करी है रुखाल़ी है
राखड़ियै बंधावणियै
आपरी औकात नै
ताक माथै राख बांधणियै री!!
दे दियो बदल़ै में
आपरो सो कीं
तन -मन-धन!
आपां तो फगत सुणी है!
दीठो नीं है ऐड़ो कोई दाखलो!
कै कोई राखड़ी बंधावणियो
मरियो होवै
राखड़ी बांधणियै रै बदल़ै मे!
जे ऐड़ो होवतो
कोई दाखलो ?
तो महाभारत अवस
देवतो साख!
कै किसन
द्रोपदी री राखी ही लाज!
उण बगत भाभड़ाभूत होय
राखणनै उठायो हो सुदरसन!
दीधा हा घाव दुसासण रै
कै खुद खाया हा घाव
द्रोपदी रै बचाव में!
पण नीं मिल़ै ऐड़ो दाखलो!
द्रोपदी!
कूकती
करल़ावती
कलझल़ती
बुलावती रैयी
अपरबली किसन नै
आपरा वसन उतरती वेला!
बा अडीकती रैयी
सुदरसन रै सूंसाड़ नै!
पण नीं आयो सुदरसन
डरतो दुसासण सूं!
आयो तो फगत आयो
द्रोपदी री लाज गमियां पछै
चंद्रावल़ चीर
राखी रै सीर रै मिस!
द्रोपदी नीसासो नाख
आंख जल़जल़ी कर
ओढ लियो
राखड़ी रो नेग!!!
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

खोपड़ी घूम जावे अंदाता

जज - आखिरी बार किससे मिलना
चाहोगे?
. . .
अपराधी - जी मारी लुगाई सु सा .. . . .
जज-क्यों मां-बाप से नहीं मिलोगे? . .
.
अपराधी- जी मां-बाप तो दूजो जन्म लेता ही मिल जाय सा ..
पर इ लुगाई के लिए . . .
साला 25 साल इंतजार करणों
पहले खूब पढ़णो
फिर नोकरी लागणो
फिर सेट वेणो
फिर लडकी देखबा जाणो .. . .
फिर लडकी के माँ बाप के समज म आणो .. . . .
फीर सगाई करणों...
फिर लगन झेलणा
फिर कंकूपत्री छपाणी
फिर छोकला म बाट्णी
फिर वन्दोरा जीमणा
फिर रोज पिटि कराणि
फिर बंदोली काड़णी
फिर रोड़ी नूतणी
फिर भेरू पूजणो
फिर जिमणो करणों
फिर सब न जिमाणा
फिर मंदर धोकणो
फिर बीरा बदावणा
फिर मोसारा वदाणा
फिर वरात ल॓ जाणी
फिर तोरण मारणो
फिर फेरा खावणा
फिर डाइजो लेर घर आणो
फिर जुझार को रातीजगो
फिर राखी दोड़ा खोलना
फिर सारी बेन बेट्या न सीख देणी
घणा लफड़ा वे जदी आ जगदम्बा घर आवे हे सा ।।
खोपड़ी घूम जावे अंदाता

जज कोमा में

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