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बुधवार, 9 अगस्त 2017

महान_वीर_स्वामिभक्त_ दुर्गादास_ राठौड़

अगर भारत के  इतिहास की बात बात करे तो राजपूतों के बिना खाली है भारत का इतिहास हमे केवल महाराणा प्रताप और पृथ्वी राज चौहान याद है लेकिन मै आपके  भारत के 40 राजपूत महापुरूषो के बारे मै बताऊंगा जो आप ने कभी पहले  नही   सुना होगा   होगा इनका नाम  जिनका इतिहास हम लोग भूला चुके है या याद नही करना चाहते ।

#महान_वीर_स्वामिभक्त_दुर्गादास_राठौड़

दुर्गादास राठौड़ इतिहास का नाम इतिहास के उन योद्धाओं में शामिल है, जो कभी मुगलो से पराजित नही हुआ ! दिल्ली से ना केवल इन्होंने टक्कर ली, बल्कि दिल्ली के दांत भी खट्टे कर दिए !!

महाराज जसवंत सिंह की मृत्यु के पश्चात मारवाड़ को इस्लाम के काले बादलों ने घेर लिया ! महाराज जसवंत सिंहः अपने पीछे 2 विधवा  गर्भवती रानीया छोड़  गए थे । सरदारों को उत्तराधिकारी चाहिए था, इसलिए उन रानियों को सती नही होने दिया !!  दुस्ट पापी ओरेंगजेब के पास यह समाचार जब पहुंचा , तो उसने इन दोनों उत्तराधिकारियो को मुसलमान बनाने का सोचा, जो अभी गर्भ में ही थे ! इसका तातपर्य यह है, की वह पापी मायावी मुसलमान उन दोनों विधवाओं को भी अपने हरम में घसीटना चाहता था । लेकिन यह हो ना सका ! क्यो की उन उत्तराधिकारियों की रक्षा कर रहा था --- दुर्गादास राठौड़

दुर्गादास राठौड़ का जन्म 1638 ईसवी में हुआ !  उनके पिता जसवंत सिंहः के राज में मंत्री थे ! पारिवारिक झगड़ो के कारण दुर्गादास की माता का उनके पिता ने त्याग कर दिया !!  लेकिन उस क्षत्राणी ने कभी अपना क्षात्र धर्म नही भुला ! उन्होंने दुर्गादास के मन मे देशभक्ति , धर्मभक्ति की भावना कूट कूट कर भर दी ! जैसे शिवाजी को उनकी माता जीजाबाई ने बनाया था, वैसे ही दुर्गादास को वीर बनाने का श्रेय उनकी माता को जाता है ।

दुर्गादास अब किशोर अवस्था मे दुसरो के खेतों की निगरानी करते, अपना ओर अपनी माता का भरण पोषण करते । एक दिन उसके खेतो में किसी एक मुस्लिम ने ऊंट छोड़ दिये ! मुसलमान हिन्दुओ को किसी ना किसी तरीके से अपमानित या परेशान करने का कोई मौका नही छोड़ते थे ! जब दुर्गादास ने ऊँटो को बाहर निकाला, तो उस मुस्लिम ने उन्हें बुरा भला कहा, यहां तक तो ठीक था, लेकिन वह मलेच्छ अपनी सीमा को लांघते हुए, जसवंत सिंहः के अपमान तक पहुंच गया, की तुम्हारे राजा के पास तो अपनी छपरी तक नही है !

यह दुर्गादास सुन नही पाया ! और वही उस मुसलमान को मार डाला ! क्यो की अपने राजा के लिए दुर्गादास के मन मे बहुत सम्मान था। उस कबीले के सारे मुसलमान जसवंत सिंहः के पास न्याय मांगने पहुंच गए ! जसवंत सिंह ने जब कारण जाना तो,  जसवंत सिंहः अपनी हंसी ओर प्रशन्नता नही रोक पाए !  जसवंत सिंहः के मुख से अवाक ही निकल गया ! यह बालक एक दिन मारवाड़ की रक्षा करेगा ! यह कोई साधारण बालक नही है ! ओर राजा ने अपने दरबार मे ही उन्हें रख लिया ! इस उपकार का बदला दुर्गादास ने उनके पुत्र अजितसिंहः के प्राणों की रक्षा और मारवाड़ की रक्षा करके चुकाया !!

अजीतसिंह को मुसलमान बनाने के लिए सर्वप्रथम ओरेंगजेब ने जोधपुर में अपनी विशाल सेना भेजी ! जोधपुर को पूरी तरह कुचल दिया गया ! कई मंदिर तोड़े, कई अबलाओं का बलात्कार हुआ ! पूरा जोधपुर त्राहिमाम त्राहिमाम कर उठा ! अब जोधपुर पर मुगलो का अधिकार था । जोधपुर तो क्या उसके आसपास के सारे मंदिर तोड़ उन्हें मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया! जिनका उद्धार हिन्दू आज तक नही कर पाए है । जोधपुर के राजपूत जो किसी भी कीमत पर इस्लाम कबूल नही कर सकते थे, वह किशनगढ़ जाकर रहने लगे !  इतिहासकार लिखते है कि जोधपुर की रानिया किले से मर्दाना लिबास पहनकर निकली ।  जब शाही सेना अजितसिंहः को दूसरे स्थान पर ले जा रही थी, तब मुसलमान उनपर टूट पड़े ! किन्तु उस समय अजितसिंहः दुर्गादास  के पास थे,  एक हाथ मे तलवार और एक हाथ मे अजीतसिंह, मुँह से घोड़े की लगाम पकड़कर युद्ध करते बुरे दुर्गादास वहां से अजीतसिंह को ले उड़े !

इस लड़ाई के बाद राठोड़ो ने दुर्गादास के नेतृत्व में एक योजना बनाई !  अब छापामार युद्ध करना राजपूतो का दैनिक कर्म बन गया था । मुसलमानो को उन्ही की भाषा मे जवाब देते हुए उन्होंने उनकी रसद लूटनी, उनकी हत्या करनी , यातायात के साधनों ओर मार्गो को बर्बाद करना शुरू कर दिया !  लगातार इससे परेशान हो ओरेंगजेब ने राजपूतो का ओर ज़्यादा दमन करना शुरू कर दिया ! वह आम जनता पर अत्याचार करने लगा ! तब दुर्गादास ने समझा कि बिना कूटनीति के इन मल्लेचों से पार पाना संभव नही है । अतः कई सालों के प्रयासों के बाद उन्होंने मेवाड़ से संधि कर ली । अब मेवाड़ ओर मारवाड़ दोनो ने मिलकर शहजादे अकबर को परेशान करना शुरू कर दिया, जिसको जोधपुर का सुल्तान ओरेंगजेब ने ही बनाया था । इन सब ने शहजादा अकबर परेशान हो गया !  और मारे राजपूतो के डर से उसने मारवाड़ ओर मेवाड़ की अधीनता स्वीकार कर ली । राजपूतो ने अकबर को यह भी वचन दे दिया, की तुम्हारी रक्षा करना भी अब हमारा कर्तव्य है ।  कुछ समय के लिए ही सही, मारवाड़ का संघर्ष अब खत्म हो गया ! इस मौके के फायदा उठाकर दुर्गादास ओर मेवाड़ ने अपनी सैनिक शक्ति को बढ़ाना शुरू कर दिया !

अब समय आ गया था कि अजितसिंहः की पहचान सार्वजनिक की जाए ! अतः 23 मार्च 1687 को पातड़ी गांव में महाराज अजित सिंहः का विधिवत  राज्याभिषेक हुआ ! कुछ बातों को लेकर बाद में महाराज अजीतसिंह ओर दुर्गादास के मध्य लगातार मनमुटाव होने लगा, अजितसिंहः मुसलमानो से खुले मैदान में जंग चाहते थे, लेकिन दुर्गादास अपनी वही छापामार नीति से युद्ध करना चाहते थे । चूंकि मारवाड़ ओर मेवाड़ दोनो ही सैनिक शक्ति से इतने सबल नही थे, की दिल्ली की विशाल सेना का सामना कर सके । ओर इन दिनों तो ओरेंगजेब राजपूतो के सर्वनाश में ही लगा हुआ था ।

यहां अब दुर्गादास ने नीति से काम लिया !  उसने ओरेंगजेब की बेटी और बेगम को बंदी बना लिया !  ओर घोषणा कर दी, की अगर मारवाड़ पर आक्रमण हुआ, तो इनका वही हस्र होगा, जो तुम्हारे हरम में हिन्दू महिलाओ का तुम करते आये हो । इन दोनों को आजाद करवाने के लिए ओरेंगजेब को 30000 राजपूत सैनिक मुक्त करने पड़े, जो कि अपने राजा के युद्ध मे हार जाने के कारण ओरेंगजेब के गुलाम हो गए थे !  एक हजार रत्नजड़ित कटार ओर मोतियों की माला,  ओर 2 लाख रुपया दुर्गादास को दिया गया, तब जाकर उन्होंने  बेगम ओर उसकी बेटी को मुक्त किया !
1707 में जब ओरेंगजेब की दुस्ट आत्मा धरती को छोड़कर नर्कवासी हुई, तो  दुर्गादास नद जोधपुर पर आक्रमण कर उसपर भी अपना अधिकार कर लिया !

इसप्रकार मुसलमानो ने यह लड़ाई 1678 में शुरू तो की, लेकिन 1707 में दुर्गादास राठौड़ ने उन्हें बुरी तरह हराकर खत्म की । उसके बाद ओरेंगजेब के बेटे बहादुरशाह की हिम्मत नही हुई कि वो  राजपूतो से टकराये, अतः उसने मारवाड़ को स्वतंत्र राज्य के रूप में स्वीकार कर लिया !

लेकिन अजितसिंहः ओर दुर्गादास के सम्बनध लगातार खराब ही होते जा रहे थे,  कारण यह था कि पूरी प्रजा महाराज से ज़्यादा दुर्गादास का सम्मान करती ! यह बात अजितसिंहः को कहां गंवारा थी !  आखिर उसका भी अपना महाराज वाला अहंकार था !

लेकिन दुर्गादास ने कहा, अब में अपना आखिरी युद्ध कर रहा हूँ, अजितसिंहः ने इसका विरोध नही किया, दुर्गादास ने अजमेर के मुस्लिम सुल्तान पर आक्रमण कर उसे वहां बुरी तरह से रौंद डाला ! अजमेर भी अब  मारवाड़ में शामिल हो गया !!

अजमेर विजय के बाद दुर्गादास ने अजीतसिंह ने विदाई मांग ली !!

" महाराज , जो कार्य मुझे मेरे स्वामी जसवंत सिंहः ने सौंपा था, वह अब पूर्ण हुआ, आप मुझे आज्ञा दे ! अजितसिंहः ने दुर्गादास को रोका तक नही "

दुर्गादास के जाने के बाद चारो तरफ अजितसिंहः की थू थू होने लगी ! यह बात मेवाड़ के अमरसिंह को जब पता चली, तो शाही  रथ लेकर वो खुद दुर्गादास को लेने पहुँच गए , ओर तमाम याचना, विनती कर मेवाड़ ले गए ! वहां उनकी खूब सेवा हुई ! उन्हें 500 रुपया दैनिक भत्ते के रूप में मिलता था !

1778 को लगभग 80 साल की उम्र में कभी पराजित ना होने वाले इस यौद्धा ने स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया !!
!!जय भवानी! !



कैसे हमारे पूर्वज बरसात के अनुमान लगाते थे..


कैसे हमारे पूर्वज बरसात के अनुमान लगाते थे..जरूर पढ़ें.......
राजस्थानी में वर्षा पूर्वानुमान के शगुन के दोहे ।

आगम सूझे सांढणी, दौड़े थला अपार !
पग पटकै बैसे नहीं, जद मेह आवणहार !!

..सांढनी  (ऊंटनी) को वर्षा का पूर्वाभास हो जाता है. सांढणी जब इधर-उधर भागने लगे, अपने पैर जमीन पर पटकने लगे और बैठे नहीं तब समझना चाहिए कि बरसात आयेगी !
---☔☔

मावां पोवां धोधूंकार, फागण मास उडावै छार|
चैत मॉस बीज ल्ह्कोवै, भर बैसाखां केसू धोवै ||

.... माघ और पोष में कोहरा दिखाई पड़े, फाल्गुन में धुल उड़े, चैत्र में बिजली न दिखाई दे तो बैशाख में वर्षा हो|
----☃☃

अक्खा रोहण बायरी, राखी सरबन न होय|
पो ही मूल न होय तो, म्ही डूलंती जोय ||

.....अक्षय तृतीया पर रोहणी नक्षत्र न हो, रक्षा बंधन पर श्रवण नक्षत्र न हो और पौष की पूर्णिमा पर मूल नक्षत्र न हो तो संसार में विपत्ति आवे|
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अत तरणावै तीतरी, लक्खारी कुरलेह|
सारस डूंगर भमै, जदअत जोरे मेह ||

.... तीतरी जोर से बोलने लगे, लक्खारी कुरलाने लगे, सारस पहाड़ों की चोटियों पर चढ़ने लगे तो ये सब जोरदार वर्षा आने के सूचक है !!
----☃☃

आगम सूझै सांढणी, तोड़ै थलां अपार।
पग पटकै, बैसे नहीं, जद मेहां अणपार।

....यदि चलती ऊँटनी को रात के समय ऊँघ आने लगे, तब भी बरसात का होना माना जाता है।
------☔☔

तीतर पंखी बादली, विधवा काजळ रेख
बा बरसै बा घर करै, ई में मीन न मेख ||

....यदि तीतर पंखी बादली हो (तीतर के पंखों जैसा बादलों का रंग हो) तो वह जरुर बरसेगी| विधवा स्त्री की आँख में काजल की रेखा दिखाई दे तो समझना चाहिए कि अवश्य ही नया घर बसायेगी, इसमें कुछ भी संदेह नहीं !!
----☔

अगस्त ऊगा मेह पूगा|

....अगस्त्य तारा उदय होने पर वर्षा का अंत समझना चाहिए
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अगस्त ऊगा मेह न मंडे,
जो मंडे तो धार न खंडे ||

....अगस्त तारा उदय होने पर प्राय: वर्षा नहीं होती, लेकिन कभी हो तो फिर खूब जोरों से होती है ।
----⛈

अम्मर पीलो
मेह सीलो |

....वर्षा ऋतू में आसमान का रंग पीलापन लिए दिखाई पड़े तो वर्षा मंद पड़ जाती है|

अम्बर रातो|
मेह मातो||

....वर्षा ऋतू में यदि आसमान लाल दिखाई पड़े, लालिमा छाई हो तो अत्यधिक वर्षा होती है|

अम्बर हरियौ, चुवै टपरियौ |

...आकाश का हरापन सामान्य वर्षा का धोतक है|
-----⛅

काळ कसुमै ना मरै, बामण बकरी ऊंट|
वो मांगै वा फिर चरै, वो सूका चाबै ठूंठ||

...ब्राह्मण, बकरी और ऊंट दुर्भिक्ष के समय भी भूख के मारे नहीं मरते क्योंकि ब्राह्मण मांग कर खा लेता है, बकरी इधर उधर गुजारा कर लेती है और ऊंट सूखे ठूंठ चबा कर जीवित रह सकता है|
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धुर बरसालै लूंकड़ी, ऊँची घुरी खिणन्त|
भेली होय ज खेल करै, तो जळधर अति बरसन्त|

....यदि वर्षा ऋतू के आरम्भ में लोमड़िया अपनी “घुरी” उंचाई पर खोदे एवं परस्पर मिल कर क्रीड़ा करें तो जानो वर्षा भरपूर  होगी।
ये दोहे हमारी संस्कृति की पहचान है लिखित रूप में  कही नही मिलते केवल स्मृति  (याददास्त) के आधार पर पीढ़ी दर पीढ़ी  चलते आ रहे हैं अतः हम भी याद रखे व भावी पीढ़ी को  भी सुनाएँ ताकि  यह प्रवाह  चलता रहें

शुक्रवार, 4 अगस्त 2017

महामंदिर - जोधपुर का सबसे बड़ा मंदिर

महामंदिर - जोधपुर का सबसे बड़ा मंदिर
अगर आप जोधपुर में महामंदिर का पता पूछेंगे तो जोधपुर में  रहने वाला कोई भी निवासी आपको बता देगा ,मगर जब आप उससे मंदिर के बारे में पूछेंगे तो वो अपना सर खुजाने लग जाएगा|ये बड़ी विडंबना है की प्रत्येक शहर के  कुछ प्राचीन स्थल के आस पास की बसावट उस स्थल से इतनी प्रसिद्द हो जाती है की मूल स्थल नेपथ्य में चला जाता है बस कुछ इक्का दुक्का पुराने लोग ही जानते है| मै भी जोधपुर का निवासी होने के बावजूद जब उसे देखने गया तो मुझे भी मशक्कत करनी पड़ी| जोधपुर में भी अनेक ऐसे एतिहासिक स्थान है जो समय के साथ भुलाए जा चुके है |
कहते है की जब जोधपुर के महाराजा विजय सिंह जी का स्वर्गवास हुवा तो उनके स्थान पर उनका पौत्र भीम सिंह राजगद्दी पर बैठ गया और उसने अपनी गद्दी सुरक्षित करने के लिए राजगद्दी के सभी संभावित दावेदारों को मरवाना आरम्भ कर दिया| विजय सिंह के अन्य पौत्र मान सिंह ने भाग कर जालोर दुर्ग में शरण ली और अपनी जान बचाई और जालोर पर अधिकार कर स्वयं को मारवाड़ का शासक घोषित कर दिया| भीम सिंह ने अपने सेनापति अखेराज सिंघवी को दुर्ग पर घेरा डालने के लिए भेजा बाद में उसे सफलता प्राप्त न करते देख कर उसकी जगह इन्द्राज सिंघवी को सेनापति बना कर भेजा|भीम सिंह की सेना ने लगातार दस वर्षो तक दुर्ग के चारो तरफ सेना का घेरा डाले रखा|कहते है के जब आखिरकार सेना से बचने का कोई रास्ता न देख कर मान सिंह ने दुर्ग को छोड़ने का विचार किया तो जालंधर नाथ  पीठ के योगी आयास देवनाथ ने उसे संदेसा भेजा की चार पांच दिन तक और रुक गए तो मारवाड़ के शासक बन जाओगे| मान सिंह जी ने आयास देवनाथ की बात मानकर चार दिन और भीम सिंह की सेना का प्रतिरोध किया| चार दिन बाद ही २१ अक्टूबर १८०३ को भीम सिंह की म्रत्यु हो गई और सेनापति इन्द्रराज सिंघवी मान सिंह जी को ससम्मान जोधपुर लाया और उसे मारवाड़ का महाराजा घोषित कर दिया| कृतज्ञ महाराजा मान सिंह जी ने अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हुवे मेडती दरवाजे से थोडा आगे अपने गुरु आयास देवनाथ के लिए भव्य और विशाल मंदिर का निर्माण करवाया जो की अपनी भव्यता के कारण महामंदिर कहलाया|
इस मंदिर का निर्माण ९ अप्रेल १८०४ को प्रारम्भ हुवा और ४ फरवरी १८०५ को पूर्ण हुवा | इसके निर्माण में १० लाख रुपयों का व्यय हुवा था| मंदिर परिसर  चारो और प्राचीर तथा  चार विशाल दरवाजो का निर्माण किया गया था जो इसे एक दुर्ग का स्वरुप देता था| परिसर के  मध्य मुख्य मंदिर, दो महल और एक बावड़ी और एक तालाब मानसागर का तथा नाथ योगियों के शमशान का  निर्माण किया गया है| मुख्य मंदिर का विशाल दरवाजा और उसके ऊपर बने झरोखे के कारीगिरी देखते ही बनती है|मुख्य मंदिर के चारो तरफ विशाल कलात्मक छतरियो का निर्माण किया गया है जिनके गुम्बद पर नक्काशी का सुन्दर काम किया गया है और मुख्य द्वार के ऊपर बने झरोखों के अलावा तीनो तरफ झरोखों का निर्माण किया गया है| मुख्य मंदिर के सामने संगमरमर का सुन्दर सा तोरण द्वार बना हुवा है जो आपको मंदिर में ले जाता है| मंदिर एक ऊँची चोकी पर बना हुवा है जिस पर एक विशाल गुम्बद और गर्भ गृह का निर्माण किया गया है गर्भ गृह के चारो तरफ गुम्बद के नीचे उसे आधार देने के लिए ८४ खम्बे निर्मित है जिन पर बेहद सुन्दर कलाकारी की गई है| गर्भ गृह के अन्दर संगमरमर की चोकी पर लकड़ी के सुन्दर से सिहासन पर जालंधर नाथ जी की मूर्ति राखी गई है | जिसके चारो तरफ दीवार पर  हैरत अंगेज सोने के पानी का कार्य किया गया है और दीवार पर ८४ योगासनों तथा प्रसिद्द नाथ सम्प्रदाय के योगियों के अद्भुत चित्र उकेरे गए है| गुम्बद के अन्दर चांदी का काम हुवा है|गर्भ गृह के बाहर भी दीवारों पर कलात्मक भित्ति चित्रों का निर्माण किया गया है जिनकी सुन्दरता सदिया  बीत जाने के बाद भी अक्षुण्ण बनी हुई है|मंदिर परिसर में दो महलो का निर्माण किया गया था जिसमे से एक में नाथ महाराज स्वयं रहते थे और दूसरा नाथ योगियों की दिव्य आत्माओं के निवास के लिए बनाया गया था जिसमे आज भी एक भव्य सुसज्जित पलंग रखा हुवा है जिसके बारे में ये कहा जाता है की यह नाथ योगियों की आत्माए विश्राम करती है | मंदिर के अन्दर एक कुआ है जिसके बारे में कहा जाता है की उसका जल कभी नहीं सुखा और मारवाड़ के प्रसिद्द छप्पनिया अकाल में भी उसका जल नहीं सुखा था|  मंदिर परिसर में महाराजा मानसिंह जी ने शिलालेख लगवाया था जिसमे लिखवाया गया था की जो भी इस मंदिर की शरण में आ जाता है  उसके प्राणों की रक्षा करना मंदिर का कर्तव्य बन जाता है| कहते है की जिस भी व्यक्ति को मान सिंह जी प्राण दंड नहीं देना चाहते थे उसे इस मंदिर में भेज देते थे और जब अंग्रेज पदाधिकारी उस आदमी को पकड़ते तो उन्हें ये शीला लेख दिखा दिया जाता था और उनसे कहा जाता था की ये मंदिर की परंपरा है और अंग्रेज मन मसोस कर रह जाते थे|
महल के उपर एक विशेष छतरी का निर्माण भी किया गया था जिसमे खड़े होकर गुरु आयास देवनाथ महाराजा को प्रात काल में दर्शन देते थे और महाराजा अपने दुर्ग से उनके दर्शन लाभ करके ही अन्न जल ग्रहण किया करता था |महलो के खर्चे के लिए मंदिर को जागीर भी प्रदान की गई थी| मंदिर परिसर में नाथ योगियों के लिए बने शमशान में नाथ योगियों की छतरिया भी बनी हुई है|मंदिर के पास मान सागर तालाब बना हुवा है जिसमे महाराजा और आयास देवनाथ नौका विहार करते थे|
वर्तमान में मुख्य मंदिर में सरकारी विधालय संचालित होता है| समय के साथ मंदिर परिसर में और मुख्य मंदिर के चारो तरफ होने वाले बेतरतीब कब्जो के कारण और घनीभूत होती जनसंख्या के कारण मंदिर का स्वरूप ही बदल गया है और आज मुख्य मंदिर का मुख्य दरवाजा भी एक संकरी गली में स्थित है और मुख्य मंदिर के चारो कोनो में बनी छत्रिया जीर्ण शीर्ण अवस्था में पहुच गई है|मंदिर के पास बनी बावड़ी कचरे के कूड़ेदान में तद्बील हो चुकी है| मंदिर परिसर में बने महलों में कब्जो और किरायेदारो के कारण उनका मुख्य स्वरुप पूर्णत विलुप्त हो चूका है| ये मंदिर पूरी तरह से काल के गाल में समां जाए उससे पहले आप भी एक बार मंदिर तो हो आइये|

साभार फैसबुक वॉल सूं

*परम श्रद्धेय ठाकुर नाहरसिंह जी री अमोलख टीप म्हारी किताब माथै ।साभार इणांरी फैसबुक वॉल सूं*
*अंतस सूं आभार महेंद्रसिंह जी खिड़िया रो*

श्रद्धेय श्रीमांन गिरधरदानसा रतनू ;

आज आईदांनसिंहजी भाटी ,अर महेन्दरसिंहजी खिड़िया मिलण तांई पधारिया ।

साथै हीरा माेतीयां सूं जड़ी आपरै भेजायाेड़ी एक पाेथी  "ढळगी रातां;बहगी बातां  " म्हनै बक्शाई  ।माथै चढाई ।

आप याद करायो इण वास्तै आभार ।वांरै पधारियां पछै पाेथी पढी ।आणंद आय गयाै ।आप आ पाेथी लिख घणाै उपकार रो कांम करियो ।जूनी बातां सजीवत व्हेगी अर आण वाली पीढी तांई सीखण सारूं अलेखां बातां आप वां  वास्तै उपहार रै रूप में दे दिराई ।यां बातां री इण बदलता समय में नुई पीढी नै घणी जरूरत है ।

वे लखीणा मिनख गया परा ;बातां लारै रैह गई :--

नांम रहंदा ठाकरां ,नांणा न्ह रहित ,
कीरत हंदा काेटड़ा,पड़्या न्ह पडंत !!

की बत्थां घण जाेड़ियां,ना चल्लै सत्थांह ,
एतां री बातां अमर, जुगां रहसी कत्थांह,!!

आपने एकर फेर अंतस सूं आभार ।एकर पढणी शरू कर पूरी बांच नै नैछाै करियाै ।बहुतहीज फूटराे उपहार आप समाज नै दिरायाै जिण
री लख लख बधाई ।बस आपताै एहड़ी अमाेलक बातां लिखताईज रैहवाड़ाै ।

घणै मांन ,जय मा करणी।

------

परम श्रद्धेय ठाकर साहब!
सादर
आप इण बातां रा प्रेरक पुरस हो। आप ई आदेश दियो कै म्है लिखतो रैवूं अर आ ई प्रेरणा पुस्तकाकार में आपरै हाथां में।
आपरी मेहरबानी सदैव री गत म्हारै माथै बणी रैसी।

कठु लावणा

जब मुंबई में बारिश हो तो लोग पूछते है- खंडाला या लोनावला?

वही जोधपुर में पानी रो दो छांटा ही पड़ जावे तो एक ही बात पूछे- कठु लावणा, अरोड़ा, सुर्या के पचे चौधरी ।।

नारायणदानजी बांधेवा री हिंदी कविता रो राजस्थानी उथल़ो-

नारायणदानजी बांधेवा री हिंदी कविता रो राजस्थानी उथल़ो-
*कविता*

कोरी मोहरा मेल़ कै
तुकां रा भेटा करावण ई
नीं है कविता!
मात्रावां री गिणत कै
मात्रावां  रो सही माप जाणणो
ई नीं है कविता!
अलंकारां री छटा
कै चोकड़िया,तिकड़िया ,दुकड़िया
अनुप्रासां रो उपयोग रो आंटो
आ जावणो ई नीं है कविता!
कविता पढण री जुगत
उटीपी बाण  कै
कविता जोड़णी
आ जावणी ई नीं है कविता!!
अर नीं इण आंटै रै पाण
कवि बणण रा
कांटा घालणा मनमें! 
!इण तजबीज सूं ई
कोई नीं हो सकै कवि !!
इणसूं पैला ओ ई जाणणो
जरूरी है कै
है  कांई कविता!!
कविता वा हुवै है
जिकी  पाठक कै श्रोता रै
मर्म नै  भेद देवै !
कांई आप मानो कै
कविता फखत आपरै
अंतस में कै आपरै
इण कागजां रै चिमठियै में
लिपटियोड़ी ईज है!
नीं !
ओ कोरो- मोरो
आपरो भ्रम है!
कविता रो  विगसाव
अनंत तक हुवै है।
आ आपरै ,म्हारै कनै कै
गांव गल़ी गवाड़ रै
ओल़ै.दोल़ै नी रैयर
  देश काल री सीमावां सूं
परिया हुवै है !
कविता रो काम
भांगै -तोड़ै
कै सांग बिगाड़ै रो नीं.है!
कविता संघठन कारक हुवै है!
कविता रो काम किणी नै
डाफाचूक कै
चितबगनो करण रो नीं है!
कविता तो सूंई राह बतावै
भूल्यै नै मारग लावै!
हां ,आ बात आपरी
सोल़ै आना सही है कै
कविता कवि मनरंजणी हुवै है!
आ ई सही है
कै मरियै में प्राण
अर डरियै में जोश
भरण रो काम करै है कविता!!
हां ,आ ई सही है कै
बिछड़ियां रो मिल़ाप
अर लड़ियां रो जुड़ाव ई
करावै है कविता!!
   कांई आप कविता नै
फखत हरिकीर्तन ई मानो हो?
नीं, आ मत मानजो!
आ आपरी भोल़प है
हरिकीर्तन नीं है कविता!!
कविता तो मोटै मन री
ओल़खाण है!
मन रो कालास
धोवण री खल़कती गंगा
अर अभिमान रै थोथै बादल़ा नै
छांटण रो एक झीणै वायरै रो अहसास है कविता!
मत घड़ो कविता री
आप नवी नवी.
मनकथी परिभाषावां!!

उथल़ो -गिरधरदान रतनू दासोड़ी

अरजी

अरजी

आमर उलट्यो आज बादला बरसे है बेथाग धरा पे पाणी नई मावे
देखो बरस्यो ओ दिन रात बिगड़ी सारी बात राज काई कर पावे

चढ़ी घटा चहुँ और सिरोही अर जालोर डुबिया पानी रे माहि
मरे है डांगर ढोर जिनावर तड़फ च्यारूं और जोर चालतो नाही

बूढ़ा टाबर अर जवान किया बचावे जान सोच यो मन में है भारी
बैरन बणगी काली रात कद होसी प्रभात आगता होगा नर नारी

परले होवे जाणक आज सांवरा तू ही राखे लाज बचायो ब्रज ने गिरधारी
अब तो तू ही कर साय दुसरो दिखे म्हाने नाय आज आजा बनवारी

देखो पथमेड़ा रे माय डूबन लागी गाय हाल बेहाल हुयो भारी
टुट्या सरवर अर तलाब बचादे म्हारी तू आब बिनती आ ही है म्हारी

विनती करूँ छू कर जोड़ आजा बेगो मोहन दौड़ नहीं भगता रे ताणी
एकर बरखा ने तू ढाब क्यूँ करे फसल ख़राब होवे घण हाणी
राजावत श्रवण सी कृत

HISTORY OF JODHPUR : मारवाड़ का संक्षिप्त इतिहास

  Introduction- The history of Jodhpur, a city in the Indian state of Rajasthan, is rich and vibrant, spanning several centuries. From its o...

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