Translate

शुक्रवार, 4 अगस्त 2017

महामंदिर - जोधपुर का सबसे बड़ा मंदिर

महामंदिर - जोधपुर का सबसे बड़ा मंदिर
अगर आप जोधपुर में महामंदिर का पता पूछेंगे तो जोधपुर में  रहने वाला कोई भी निवासी आपको बता देगा ,मगर जब आप उससे मंदिर के बारे में पूछेंगे तो वो अपना सर खुजाने लग जाएगा|ये बड़ी विडंबना है की प्रत्येक शहर के  कुछ प्राचीन स्थल के आस पास की बसावट उस स्थल से इतनी प्रसिद्द हो जाती है की मूल स्थल नेपथ्य में चला जाता है बस कुछ इक्का दुक्का पुराने लोग ही जानते है| मै भी जोधपुर का निवासी होने के बावजूद जब उसे देखने गया तो मुझे भी मशक्कत करनी पड़ी| जोधपुर में भी अनेक ऐसे एतिहासिक स्थान है जो समय के साथ भुलाए जा चुके है |
कहते है की जब जोधपुर के महाराजा विजय सिंह जी का स्वर्गवास हुवा तो उनके स्थान पर उनका पौत्र भीम सिंह राजगद्दी पर बैठ गया और उसने अपनी गद्दी सुरक्षित करने के लिए राजगद्दी के सभी संभावित दावेदारों को मरवाना आरम्भ कर दिया| विजय सिंह के अन्य पौत्र मान सिंह ने भाग कर जालोर दुर्ग में शरण ली और अपनी जान बचाई और जालोर पर अधिकार कर स्वयं को मारवाड़ का शासक घोषित कर दिया| भीम सिंह ने अपने सेनापति अखेराज सिंघवी को दुर्ग पर घेरा डालने के लिए भेजा बाद में उसे सफलता प्राप्त न करते देख कर उसकी जगह इन्द्राज सिंघवी को सेनापति बना कर भेजा|भीम सिंह की सेना ने लगातार दस वर्षो तक दुर्ग के चारो तरफ सेना का घेरा डाले रखा|कहते है के जब आखिरकार सेना से बचने का कोई रास्ता न देख कर मान सिंह ने दुर्ग को छोड़ने का विचार किया तो जालंधर नाथ  पीठ के योगी आयास देवनाथ ने उसे संदेसा भेजा की चार पांच दिन तक और रुक गए तो मारवाड़ के शासक बन जाओगे| मान सिंह जी ने आयास देवनाथ की बात मानकर चार दिन और भीम सिंह की सेना का प्रतिरोध किया| चार दिन बाद ही २१ अक्टूबर १८०३ को भीम सिंह की म्रत्यु हो गई और सेनापति इन्द्रराज सिंघवी मान सिंह जी को ससम्मान जोधपुर लाया और उसे मारवाड़ का महाराजा घोषित कर दिया| कृतज्ञ महाराजा मान सिंह जी ने अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हुवे मेडती दरवाजे से थोडा आगे अपने गुरु आयास देवनाथ के लिए भव्य और विशाल मंदिर का निर्माण करवाया जो की अपनी भव्यता के कारण महामंदिर कहलाया|
इस मंदिर का निर्माण ९ अप्रेल १८०४ को प्रारम्भ हुवा और ४ फरवरी १८०५ को पूर्ण हुवा | इसके निर्माण में १० लाख रुपयों का व्यय हुवा था| मंदिर परिसर  चारो और प्राचीर तथा  चार विशाल दरवाजो का निर्माण किया गया था जो इसे एक दुर्ग का स्वरुप देता था| परिसर के  मध्य मुख्य मंदिर, दो महल और एक बावड़ी और एक तालाब मानसागर का तथा नाथ योगियों के शमशान का  निर्माण किया गया है| मुख्य मंदिर का विशाल दरवाजा और उसके ऊपर बने झरोखे के कारीगिरी देखते ही बनती है|मुख्य मंदिर के चारो तरफ विशाल कलात्मक छतरियो का निर्माण किया गया है जिनके गुम्बद पर नक्काशी का सुन्दर काम किया गया है और मुख्य द्वार के ऊपर बने झरोखों के अलावा तीनो तरफ झरोखों का निर्माण किया गया है| मुख्य मंदिर के सामने संगमरमर का सुन्दर सा तोरण द्वार बना हुवा है जो आपको मंदिर में ले जाता है| मंदिर एक ऊँची चोकी पर बना हुवा है जिस पर एक विशाल गुम्बद और गर्भ गृह का निर्माण किया गया है गर्भ गृह के चारो तरफ गुम्बद के नीचे उसे आधार देने के लिए ८४ खम्बे निर्मित है जिन पर बेहद सुन्दर कलाकारी की गई है| गर्भ गृह के अन्दर संगमरमर की चोकी पर लकड़ी के सुन्दर से सिहासन पर जालंधर नाथ जी की मूर्ति राखी गई है | जिसके चारो तरफ दीवार पर  हैरत अंगेज सोने के पानी का कार्य किया गया है और दीवार पर ८४ योगासनों तथा प्रसिद्द नाथ सम्प्रदाय के योगियों के अद्भुत चित्र उकेरे गए है| गुम्बद के अन्दर चांदी का काम हुवा है|गर्भ गृह के बाहर भी दीवारों पर कलात्मक भित्ति चित्रों का निर्माण किया गया है जिनकी सुन्दरता सदिया  बीत जाने के बाद भी अक्षुण्ण बनी हुई है|मंदिर परिसर में दो महलो का निर्माण किया गया था जिसमे से एक में नाथ महाराज स्वयं रहते थे और दूसरा नाथ योगियों की दिव्य आत्माओं के निवास के लिए बनाया गया था जिसमे आज भी एक भव्य सुसज्जित पलंग रखा हुवा है जिसके बारे में ये कहा जाता है की यह नाथ योगियों की आत्माए विश्राम करती है | मंदिर के अन्दर एक कुआ है जिसके बारे में कहा जाता है की उसका जल कभी नहीं सुखा और मारवाड़ के प्रसिद्द छप्पनिया अकाल में भी उसका जल नहीं सुखा था|  मंदिर परिसर में महाराजा मानसिंह जी ने शिलालेख लगवाया था जिसमे लिखवाया गया था की जो भी इस मंदिर की शरण में आ जाता है  उसके प्राणों की रक्षा करना मंदिर का कर्तव्य बन जाता है| कहते है की जिस भी व्यक्ति को मान सिंह जी प्राण दंड नहीं देना चाहते थे उसे इस मंदिर में भेज देते थे और जब अंग्रेज पदाधिकारी उस आदमी को पकड़ते तो उन्हें ये शीला लेख दिखा दिया जाता था और उनसे कहा जाता था की ये मंदिर की परंपरा है और अंग्रेज मन मसोस कर रह जाते थे|
महल के उपर एक विशेष छतरी का निर्माण भी किया गया था जिसमे खड़े होकर गुरु आयास देवनाथ महाराजा को प्रात काल में दर्शन देते थे और महाराजा अपने दुर्ग से उनके दर्शन लाभ करके ही अन्न जल ग्रहण किया करता था |महलो के खर्चे के लिए मंदिर को जागीर भी प्रदान की गई थी| मंदिर परिसर में नाथ योगियों के लिए बने शमशान में नाथ योगियों की छतरिया भी बनी हुई है|मंदिर के पास मान सागर तालाब बना हुवा है जिसमे महाराजा और आयास देवनाथ नौका विहार करते थे|
वर्तमान में मुख्य मंदिर में सरकारी विधालय संचालित होता है| समय के साथ मंदिर परिसर में और मुख्य मंदिर के चारो तरफ होने वाले बेतरतीब कब्जो के कारण और घनीभूत होती जनसंख्या के कारण मंदिर का स्वरूप ही बदल गया है और आज मुख्य मंदिर का मुख्य दरवाजा भी एक संकरी गली में स्थित है और मुख्य मंदिर के चारो कोनो में बनी छत्रिया जीर्ण शीर्ण अवस्था में पहुच गई है|मंदिर के पास बनी बावड़ी कचरे के कूड़ेदान में तद्बील हो चुकी है| मंदिर परिसर में बने महलों में कब्जो और किरायेदारो के कारण उनका मुख्य स्वरुप पूर्णत विलुप्त हो चूका है| ये मंदिर पूरी तरह से काल के गाल में समां जाए उससे पहले आप भी एक बार मंदिर तो हो आइये|

साभार फैसबुक वॉल सूं

*परम श्रद्धेय ठाकुर नाहरसिंह जी री अमोलख टीप म्हारी किताब माथै ।साभार इणांरी फैसबुक वॉल सूं*
*अंतस सूं आभार महेंद्रसिंह जी खिड़िया रो*

श्रद्धेय श्रीमांन गिरधरदानसा रतनू ;

आज आईदांनसिंहजी भाटी ,अर महेन्दरसिंहजी खिड़िया मिलण तांई पधारिया ।

साथै हीरा माेतीयां सूं जड़ी आपरै भेजायाेड़ी एक पाेथी  "ढळगी रातां;बहगी बातां  " म्हनै बक्शाई  ।माथै चढाई ।

आप याद करायो इण वास्तै आभार ।वांरै पधारियां पछै पाेथी पढी ।आणंद आय गयाै ।आप आ पाेथी लिख घणाै उपकार रो कांम करियो ।जूनी बातां सजीवत व्हेगी अर आण वाली पीढी तांई सीखण सारूं अलेखां बातां आप वां  वास्तै उपहार रै रूप में दे दिराई ।यां बातां री इण बदलता समय में नुई पीढी नै घणी जरूरत है ।

वे लखीणा मिनख गया परा ;बातां लारै रैह गई :--

नांम रहंदा ठाकरां ,नांणा न्ह रहित ,
कीरत हंदा काेटड़ा,पड़्या न्ह पडंत !!

की बत्थां घण जाेड़ियां,ना चल्लै सत्थांह ,
एतां री बातां अमर, जुगां रहसी कत्थांह,!!

आपने एकर फेर अंतस सूं आभार ।एकर पढणी शरू कर पूरी बांच नै नैछाै करियाै ।बहुतहीज फूटराे उपहार आप समाज नै दिरायाै जिण
री लख लख बधाई ।बस आपताै एहड़ी अमाेलक बातां लिखताईज रैहवाड़ाै ।

घणै मांन ,जय मा करणी।

------

परम श्रद्धेय ठाकर साहब!
सादर
आप इण बातां रा प्रेरक पुरस हो। आप ई आदेश दियो कै म्है लिखतो रैवूं अर आ ई प्रेरणा पुस्तकाकार में आपरै हाथां में।
आपरी मेहरबानी सदैव री गत म्हारै माथै बणी रैसी।

कठु लावणा

जब मुंबई में बारिश हो तो लोग पूछते है- खंडाला या लोनावला?

वही जोधपुर में पानी रो दो छांटा ही पड़ जावे तो एक ही बात पूछे- कठु लावणा, अरोड़ा, सुर्या के पचे चौधरी ।।

नारायणदानजी बांधेवा री हिंदी कविता रो राजस्थानी उथल़ो-

नारायणदानजी बांधेवा री हिंदी कविता रो राजस्थानी उथल़ो-
*कविता*

कोरी मोहरा मेल़ कै
तुकां रा भेटा करावण ई
नीं है कविता!
मात्रावां री गिणत कै
मात्रावां  रो सही माप जाणणो
ई नीं है कविता!
अलंकारां री छटा
कै चोकड़िया,तिकड़िया ,दुकड़िया
अनुप्रासां रो उपयोग रो आंटो
आ जावणो ई नीं है कविता!
कविता पढण री जुगत
उटीपी बाण  कै
कविता जोड़णी
आ जावणी ई नीं है कविता!!
अर नीं इण आंटै रै पाण
कवि बणण रा
कांटा घालणा मनमें! 
!इण तजबीज सूं ई
कोई नीं हो सकै कवि !!
इणसूं पैला ओ ई जाणणो
जरूरी है कै
है  कांई कविता!!
कविता वा हुवै है
जिकी  पाठक कै श्रोता रै
मर्म नै  भेद देवै !
कांई आप मानो कै
कविता फखत आपरै
अंतस में कै आपरै
इण कागजां रै चिमठियै में
लिपटियोड़ी ईज है!
नीं !
ओ कोरो- मोरो
आपरो भ्रम है!
कविता रो  विगसाव
अनंत तक हुवै है।
आ आपरै ,म्हारै कनै कै
गांव गल़ी गवाड़ रै
ओल़ै.दोल़ै नी रैयर
  देश काल री सीमावां सूं
परिया हुवै है !
कविता रो काम
भांगै -तोड़ै
कै सांग बिगाड़ै रो नीं.है!
कविता संघठन कारक हुवै है!
कविता रो काम किणी नै
डाफाचूक कै
चितबगनो करण रो नीं है!
कविता तो सूंई राह बतावै
भूल्यै नै मारग लावै!
हां ,आ बात आपरी
सोल़ै आना सही है कै
कविता कवि मनरंजणी हुवै है!
आ ई सही है
कै मरियै में प्राण
अर डरियै में जोश
भरण रो काम करै है कविता!!
हां ,आ ई सही है कै
बिछड़ियां रो मिल़ाप
अर लड़ियां रो जुड़ाव ई
करावै है कविता!!
   कांई आप कविता नै
फखत हरिकीर्तन ई मानो हो?
नीं, आ मत मानजो!
आ आपरी भोल़प है
हरिकीर्तन नीं है कविता!!
कविता तो मोटै मन री
ओल़खाण है!
मन रो कालास
धोवण री खल़कती गंगा
अर अभिमान रै थोथै बादल़ा नै
छांटण रो एक झीणै वायरै रो अहसास है कविता!
मत घड़ो कविता री
आप नवी नवी.
मनकथी परिभाषावां!!

उथल़ो -गिरधरदान रतनू दासोड़ी

अरजी

अरजी

आमर उलट्यो आज बादला बरसे है बेथाग धरा पे पाणी नई मावे
देखो बरस्यो ओ दिन रात बिगड़ी सारी बात राज काई कर पावे

चढ़ी घटा चहुँ और सिरोही अर जालोर डुबिया पानी रे माहि
मरे है डांगर ढोर जिनावर तड़फ च्यारूं और जोर चालतो नाही

बूढ़ा टाबर अर जवान किया बचावे जान सोच यो मन में है भारी
बैरन बणगी काली रात कद होसी प्रभात आगता होगा नर नारी

परले होवे जाणक आज सांवरा तू ही राखे लाज बचायो ब्रज ने गिरधारी
अब तो तू ही कर साय दुसरो दिखे म्हाने नाय आज आजा बनवारी

देखो पथमेड़ा रे माय डूबन लागी गाय हाल बेहाल हुयो भारी
टुट्या सरवर अर तलाब बचादे म्हारी तू आब बिनती आ ही है म्हारी

विनती करूँ छू कर जोड़ आजा बेगो मोहन दौड़ नहीं भगता रे ताणी
एकर बरखा ने तू ढाब क्यूँ करे फसल ख़राब होवे घण हाणी
राजावत श्रवण सी कृत

हीरो

किसी कार्यक्रम में जोधपुरी बासा से पूछा गया - "बासा , आपका फेवरेट हीरो कौन सा है ?"

बासा - "एडो है सा
यूँ तो हेंग रा हेंग हीरा बढ़िया है पर म्हारो फेवरेट हीरो है
               'मुँग री दाल रो हीरो' ।"

एक क्षत्रिय

जो लोग क्षत्रियों को अत्याचारी ठाकुर और निर्दयी सामन्त के रूप में प्रचारित कर रहे है वो जरा इन पंक्तियों को पढ़कर जबाब देवे।

हूँ रण लड्यो हूँ अडिग खड्यो, लोगां री लाज बचावण न।
मानस र खातर हाजिर रहतो, मौत सूं आँख मिलावण न।।

लोग काह्व ठुकराई करतो, हूँ सोतो नागां रा बाड़ा म।
कुटम्ब कबीलो खोयो सारो, रण खून टपकतो नाड़ा म।।

तलवारों रो वार झेलतो, थारा ही घर बसावण न।
चौसठ फोर मौत नाचती, मौत री सजा सुणावण न।।

कुण सामन्ती कयाँ रा ठाकर, म्हे तो चौकीदार रह्या।
खुद न छोटा बता हमेशा, थे गढ़ रा गदार रह्या।।

सौ सौ घावां धड़ झेल्या, पूत सागेड़ा रण मेल्या।
थारा घर रा दिवला ताणी, म्हे तो रातां रण खेल्या।।

छोड्या पूत पालण सोता,  छोड़्या म्हे दरबारां न।
रोती छोड़ मरवण न म्हे तो, धारी ही तरवारां न।।

कदे भेष में साँगा र तो, कदे मैं पिरथिराज बण्यो।
कदे प्रताप भेक बणा र, मेवाड़ी री कुख जण्यो।।

मैं ही तो बो शेखों जिण न धर्म रो पाठ पढ़ायो हो।
धर्म धरा अर धेनु ताणी, खुद रो शीश चढायो हो।।

कियां भूलग्या हठ हाडा रो, क्यों भुल्या बाँ रणधीरां न।
थारी खातर रण मं कटता, कियाँ भुल्या थे बाँ वीरां न।।

न ब धर्म जात में बंटता, ना ही कुटम कबिलां में।
पिढ्यां खुद री रण में मेली, राखण खुशियां थारा कबीला मे।।

बण राणोजी महल म्हे छोड़्या, थारो मान बचावण न।
फण थे के बाकी छोड़ी, दोख्यां रो साथ निभावण न।।

रुगा चुग्गा दे दे पाळया, ब ही फण फैलायो है।
ना जोगा फुँकार है मारी, विष ओ घोळ पिलाय...
   "शेयर करे क्षत्रिय हित में "

HISTORY OF JODHPUR : मारवाड़ का संक्षिप्त इतिहास

  Introduction- The history of Jodhpur, a city in the Indian state of Rajasthan, is rich and vibrant, spanning several centuries. From its o...

MEGA SALE!!! RUSH TO AMAZON