Translate

मंगलवार, 6 सितंबर 2016

दर्द गोडा रो..एक राजस्थानी हास्य कविता

*एक राजस्थानी हास्य कविता*

दर्द गोडा रो..
संग मोडा रो..
स्कुटर होन्डा रो...
*छानो कोनी रेवै....*

खायडो खिचड...
चिपेडो चिँचड...
आदत को लिचड...
*छानो कोनी रेवै...*

घराँ बाजेडा सोट...
छिटकायडा होठ...
जाटणी रो रोट...
*छानो कोनी रेवै...*

माँगेडा बूँट...
खायडी सूँठ...
पावलो ऊँट...
*छानो कोनी रेवै...*

फौजी की फीँत...
भोपी रो गीत...
झुठी प्रीत...
*छानी कोनी रेवै....*

आँधी आती..
गाँव का बराती..
मतलब को साथी...
*छानो कोनी रेवै....*

भाँग खायडो...
दारू पीयेडो..
अर माँ को बिगाडेडो...
*छानो कोनी रेवै....*

सोमवार, 5 सितंबर 2016

गण तो फायो

गण तो फायो-फीटो फिरर्यो!
नायक बैठो मौजां करर्यो!!
गणनायक नैं कीकर जाणां?
ध्यान नहीं  गण कानी धरर्यो!!
कण-कण नैं जण -जण ऐ रींकै!
ओ तो लाट तिजुर्यां भरर्यो!!
दीन-दुखी कितरो ई सेवो!
मेहर इणी कज  मोटां  सरर्यो!!
गणतंत्र कैवण रो भाई!
गण तो गोण बापड़ो डरर्यो!!
माणै माल मसकरा चौड़ै
हाड गाल़तो गण ओ मरर्यो!!
बाई फसलां बलदां पच-पच!
पुल़छां  देख  गधेड़ो  चरर्यो!!
गण  रो पग कुंडाल़ै आयो!
नायक झाड़ा मंत्र करर्यो!!
भेद गरीबी छीना झपटी!
फूट फैंटोड़ो सगल़ै पसर्यो!!
लोकराज रो नायक लांठो!
गिरै-गोचर रो सह कीं जरर्यो!!
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

पैला वाल़ा भाव कठै छै!

पैला वाल़ा भाव कठै छै!
सबरी बोरां साव कठै छै!!1
राम आपरो स्वारथ भाल़ै!
नेह परखणा चाव कठै छै!!2
रोप्या हा तो रोप जाणिया!
अंगद वाल़ा पाव कठै छै!!3
तूंकारै आंख्यां झट तणती!
मूंछां वाल़ा ताव कठै छै!!4
कागा बैठा करै कारोल़्यो!
हंसां वाल़ा राव कठै छै!!5
नीर -खीर रो भेद नितारै!
इसड़ोड़ा उमराव कठै छै!!6
घातां में रातां व्है काल़ी!
वैरी वाल़ा घाव कठै छै!!7
सैण देखियां मन सरसातो!
बो तो अब उछाव कठै छै!!8
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

रविवार, 4 सितंबर 2016

हे रुनिचे रा धणिया

हे रुनिचे रा धणिया, अजमल जी रा कँवरामाता मेनांदे रा लाल, राणी नेतल रा भरथारम्हारो हेलो सुणोजी राम पीर जीहो म्हारो हेलो सुणोजी राम पीर जी

हे रुनिचे रा धणिया, अजमल जी रा कँवरामाता मेनांदे रा लाल
राणी नेतल रा भरथारम्हारो हेलो सुणोजी राम पीर जीहोजी म्हारो हेलो सुणोजी राम पीर जी

घर घर होवे पुजा थारी गाँव गाँव यश गावे जी।
रुनिचे रा रामदेवजी सुता हो तो आवो जी।।

मेडी में ज्योत जगावा, मनडे रा फूल चढावाहे रुनिचे रा धणिया, अजमल जी रा कँवरामाता मेनांदे रा लाल
राणी नेतल रा भरथारम्हारो हेलो सुणोजी राम पीर जीहो म्हारो हेलो सुणोजी राम पीर जी

दास करे अरदास पीरजी डंस गयो काळो नाग जी।।
मरतोडा ने जीवदान दो, जीता ने वरदान जी।।

धन्य धन्य भाग विधाता, थने घनी खम्मा अन्नदाताहे रुनिचे रा धणिया, अजमल जी रा कँवरामाता मेनांदे रा लाल
राणी नेतल रा भरथारम्हारो हेलो सुणोजी राम पीर जीहो म्हारो हेलो सुणोजी राम पीर जी 

हे रुनिचे रा धणिया.........

शुक्रवार, 2 सितंबर 2016

राजस्थानियों की एक आदत

राजस्थानियों की एक आदत है..











कोई अच्छा भला सो रहा हो तो भी,
उसको जगाकर पूछेंगे,
"कई रे, हुतो है कई..!!!''

और वो नींद से उठेगा तो भी कहेगा ...                        

यूं ही आडो वियो थको हूं ... नींद कठै आवै बलै ..

गुरुवार, 1 सितंबर 2016

राजपुताना के रीति  रिवाज

राजपुताना के रीति  रिवाज जिनकी जानकारी हमारे लिए  आवश्यक है।       
         
1.) अगर आप के पिता जी /दादोसा बिराज रहे है तो कोई भी शादी ,फंक्शन, मंदिर आदि में आप के कभी भी लम्बा तिलक और चावल नहीं लगेगा, सिर्फ एक छोटी टीकी लगेगी !!

2.) जब सिर पर साफा बंधा होता है तो तिलक करते समय पीछे हाथ नही रखा जाता,सर के पीछे हाथ रखने से ऐश्वर्य का प्रतिक( साफे) का पर्याय कभी हाथ नहीं हो सकता है, यदि सिर पर साफा नहीं हो, तो बिना सिर पर हाथ रखे ही तिलक करवाए ।

3.) पिता का पहना हुआ साफा , आप नहीं पहन सकते

4.) मटिया, गहरा हरा, नीला, सफेद ये शोक के साफे है

5.) खम्मा घणी  का असली मतलब है "माफ़ करना में आप के सामने बोलने की जुरत कर रहा हूं,  जिस का आज के युग में कोई मायने नहीं रहा गया है !!

6.) असल में खम्माघणी , चारण, भाट, ढोली - ढुम ठिकानेदार / राजा /महाराजा के सामने कुछ बोलने की आज्ञा मांगने के लिए use करते थे.

7.) ये सरासर गलत बात है की घणी खम्मा, खम्मा-घणी का उत्तर है, असल में दोनों का मतलब एक ही है !!

8.) हर राज के, ठिकाने के, यहाँ clan/subclan के इस्थ देवता होते थे, जो की जायदातर कृष्ण या विष्णु के अनेक रूपों में से होते थे, और उनके नाम से ही गाँववाले या नाते-रिश्तेदार आप का greet करते थे, जैसे की जय रघुनाथ जी की , जय चारभुजाजी की...जय गोपीनाथ जी की ।

9.) पैर में कड़ा-लंगर, हाथी पर तोरण, नंगारा, निशान, ठिकाने का मोनो ये सब जागीरी का हिस्सा थे, हर कोई जागीरदार नहीं कर सकता था, स्टेट की तरफ से इनायत होते थे..!!

10.) मनवार का अनादर नहीं करना चाहिए, अगर आप नहीं भी पीते है तो भी  शिष्टाचार पूर्वक उनका अभिवादन करें ।

11.) अमल घोलना, चिलम, हुक्का या दारू की मनवार यह सामाजिक दुराचार हैं ना कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर ।

12.)ढोली के ढोल को "अब बंद करो या ले जायो" नहीं कहा जाता है "पधराओ " कहते हैं।

13.) आज भी कई घरों में तलवार को म्यान से निकालने नहीं देते, क्योंकि तलवार की एक परंपरा है - अगर वो म्यान से बाहर आई तो या तो उनके खून लगेगा, या लोहे पर बजेगी, इसलिए आज भी कभी अगर तलवार म्यान से निकलते भी है तो उसको लोहे पर बजा कर ही फिर से म्यान में डालते है !!

14.) तोरण मारना इसलिए कहते है क्योकि तोरण एक राक्षस था, जिसने शिवजी के विवाह में बाधा डालने की कोशिश की थी और उसका शिवजी ने वध किया था

15.) ये कहना गलत है की माताजी के बलि चढाई जाती हैं , माताजी तो पूरे जगत की (जननी) माँ है वो भला कैसे किसी प्राणी की बलि ले सकती है? विचार करें कि क्या वह प्राणी इस जगत में नहीं आता हैं?
माता बलि लेती हैं हमारे दुर्गुणों(काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार आदि) की।
पशु बलि इन पण्ड़ावादी पाखंड पुराणो में तांत्रिक उपासकोंकी देन है, नाकि क्षत्रियों द्वारा लिखित सात्विक क्षत्रिय ग्रथों(वेद, उपनिषद, वाल्मीकि रामायण, महाभारत व गीता) की देन है ।

बुधवार, 31 अगस्त 2016

तूं ई है भरम में

तूं ई है भरम में म्है ई हूं भरम में!
नहीं तूं धरम में नहीं मैं धरम में!!
मिनखपण बेचियो रात रै अंधारै!
विहसियो भलांई उजाल़ै बेशरम मे!
चोर तो धणी रो तुंही है म्है ई हूं!
सोचियां दोनूं ई मरांला शरम में !!
चोट रो दरद तो दुखै सब दिलां में!
लगां तो निकल़सी रगत हर चरम में!!
तुंही सिरमोड़ नैं म्है ई सिरमोड़ कह!
धकेलै झोड़ नैं नाखियो परम में!!
बाद बकवाद मे त्याग मरजाद नै!
खावां नित जूतियां आंपणै करम में!!

गिरधरदान रतनू दासोड़ी

HISTORY OF JODHPUR : मारवाड़ का संक्षिप्त इतिहास

  Introduction- The history of Jodhpur, a city in the Indian state of Rajasthan, is rich and vibrant, spanning several centuries. From its o...

MEGA SALE!!! RUSH TO AMAZON