पैला वाल़ा भाव कठै छै!
सबरी बोरां साव कठै छै!!1
राम आपरो स्वारथ भाल़ै!
नेह परखणा चाव कठै छै!!2
रोप्या हा तो रोप जाणिया!
अंगद वाल़ा पाव कठै छै!!3
तूंकारै आंख्यां झट तणती!
मूंछां वाल़ा ताव कठै छै!!4
कागा बैठा करै कारोल़्यो!
हंसां वाल़ा राव कठै छै!!5
नीर -खीर रो भेद नितारै!
इसड़ोड़ा उमराव कठै छै!!6
घातां में रातां व्है काल़ी!
वैरी वाल़ा घाव कठै छै!!7
सैण देखियां मन सरसातो!
बो तो अब उछाव कठै छै!!8
गिरधरदान रतनू दासोड़ी
सोमवार, 5 सितंबर 2016
पैला वाल़ा भाव कठै छै!
रविवार, 4 सितंबर 2016
हे रुनिचे रा धणिया
हे रुनिचे रा धणिया, अजमल जी रा कँवरामाता मेनांदे रा लाल, राणी नेतल रा भरथारम्हारो हेलो सुणोजी राम पीर जीहो म्हारो हेलो सुणोजी राम पीर जी
हे रुनिचे रा धणिया, अजमल जी रा कँवरामाता मेनांदे रा लाल
राणी नेतल रा भरथारम्हारो हेलो सुणोजी राम पीर जीहोजी म्हारो हेलो सुणोजी राम पीर जी
घर घर होवे पुजा थारी गाँव गाँव यश गावे जी।
रुनिचे रा रामदेवजी सुता हो तो आवो जी।।
मेडी में ज्योत जगावा, मनडे रा फूल चढावाहे रुनिचे रा धणिया, अजमल जी रा कँवरामाता मेनांदे रा लाल
राणी नेतल रा भरथारम्हारो हेलो सुणोजी राम पीर जीहो म्हारो हेलो सुणोजी राम पीर जी
दास करे अरदास पीरजी डंस गयो काळो नाग जी।।
मरतोडा ने जीवदान दो, जीता ने वरदान जी।।
धन्य धन्य भाग विधाता, थने घनी खम्मा अन्नदाताहे रुनिचे रा धणिया, अजमल जी रा कँवरामाता मेनांदे रा लाल
राणी नेतल रा भरथारम्हारो हेलो सुणोजी राम पीर जीहो म्हारो हेलो सुणोजी राम पीर जी
हे रुनिचे रा धणिया.........
शुक्रवार, 2 सितंबर 2016
राजस्थानियों की एक आदत
राजस्थानियों की एक आदत है..
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कोई अच्छा भला सो रहा हो तो भी,
उसको जगाकर पूछेंगे,
"कई रे, हुतो है कई..!!!''
और वो नींद से उठेगा तो भी कहेगा ...
यूं ही आडो वियो थको हूं ... नींद कठै आवै बलै ..
गुरुवार, 1 सितंबर 2016
राजपुताना के रीति रिवाज
राजपुताना के रीति रिवाज जिनकी जानकारी हमारे लिए आवश्यक है।
1.) अगर आप के पिता जी /दादोसा बिराज रहे है तो कोई भी शादी ,फंक्शन, मंदिर आदि में आप के कभी भी लम्बा तिलक और चावल नहीं लगेगा, सिर्फ एक छोटी टीकी लगेगी !!
2.) जब सिर पर साफा बंधा होता है तो तिलक करते समय पीछे हाथ नही रखा जाता,सर के पीछे हाथ रखने से ऐश्वर्य का प्रतिक( साफे) का पर्याय कभी हाथ नहीं हो सकता है, यदि सिर पर साफा नहीं हो, तो बिना सिर पर हाथ रखे ही तिलक करवाए ।
3.) पिता का पहना हुआ साफा , आप नहीं पहन सकते
4.) मटिया, गहरा हरा, नीला, सफेद ये शोक के साफे है
5.) खम्मा घणी का असली मतलब है "माफ़ करना में आप के सामने बोलने की जुरत कर रहा हूं, जिस का आज के युग में कोई मायने नहीं रहा गया है !!
6.) असल में खम्माघणी , चारण, भाट, ढोली - ढुम ठिकानेदार / राजा /महाराजा के सामने कुछ बोलने की आज्ञा मांगने के लिए use करते थे.
7.) ये सरासर गलत बात है की घणी खम्मा, खम्मा-घणी का उत्तर है, असल में दोनों का मतलब एक ही है !!
8.) हर राज के, ठिकाने के, यहाँ clan/subclan के इस्थ देवता होते थे, जो की जायदातर कृष्ण या विष्णु के अनेक रूपों में से होते थे, और उनके नाम से ही गाँववाले या नाते-रिश्तेदार आप का greet करते थे, जैसे की जय रघुनाथ जी की , जय चारभुजाजी की...जय गोपीनाथ जी की ।
9.) पैर में कड़ा-लंगर, हाथी पर तोरण, नंगारा, निशान, ठिकाने का मोनो ये सब जागीरी का हिस्सा थे, हर कोई जागीरदार नहीं कर सकता था, स्टेट की तरफ से इनायत होते थे..!!
10.) मनवार का अनादर नहीं करना चाहिए, अगर आप नहीं भी पीते है तो भी शिष्टाचार पूर्वक उनका अभिवादन करें ।
11.) अमल घोलना, चिलम, हुक्का या दारू की मनवार यह सामाजिक दुराचार हैं ना कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर ।
12.)ढोली के ढोल को "अब बंद करो या ले जायो" नहीं कहा जाता है "पधराओ " कहते हैं।
13.) आज भी कई घरों में तलवार को म्यान से निकालने नहीं देते, क्योंकि तलवार की एक परंपरा है - अगर वो म्यान से बाहर आई तो या तो उनके खून लगेगा, या लोहे पर बजेगी, इसलिए आज भी कभी अगर तलवार म्यान से निकलते भी है तो उसको लोहे पर बजा कर ही फिर से म्यान में डालते है !!
14.) तोरण मारना इसलिए कहते है क्योकि तोरण एक राक्षस था, जिसने शिवजी के विवाह में बाधा डालने की कोशिश की थी और उसका शिवजी ने वध किया था
15.) ये कहना गलत है की माताजी के बलि चढाई जाती हैं , माताजी तो पूरे जगत की (जननी) माँ है वो भला कैसे किसी प्राणी की बलि ले सकती है? विचार करें कि क्या वह प्राणी इस जगत में नहीं आता हैं?
माता बलि लेती हैं हमारे दुर्गुणों(काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार आदि) की।
पशु बलि इन पण्ड़ावादी पाखंड पुराणो में तांत्रिक उपासकोंकी देन है, नाकि क्षत्रियों द्वारा लिखित सात्विक क्षत्रिय ग्रथों(वेद, उपनिषद, वाल्मीकि रामायण, महाभारत व गीता) की देन है ।
बुधवार, 31 अगस्त 2016
तूं ई है भरम में
तूं ई है भरम में म्है ई हूं भरम में!
नहीं तूं धरम में नहीं मैं धरम में!!
मिनखपण बेचियो रात रै अंधारै!
विहसियो भलांई उजाल़ै बेशरम मे!
चोर तो धणी रो तुंही है म्है ई हूं!
सोचियां दोनूं ई मरांला शरम में !!
चोट रो दरद तो दुखै सब दिलां में!
लगां तो निकल़सी रगत हर चरम में!!
तुंही सिरमोड़ नैं म्है ई सिरमोड़ कह!
धकेलै झोड़ नैं नाखियो परम में!!
बाद बकवाद मे त्याग मरजाद नै!
खावां नित जूतियां आंपणै करम में!!
गिरधरदान रतनू दासोड़ी
जुद्ध
जुद्ध-
गिरधरदान रतनू दासोड़ी
इतरा आकरा मत पड़ो
जुद्ध रै सारु
बेटी रै बापां!
क्यूं कसो हो जीण
किणी नै तीण -तीण करण नै
क्यूं बजावो हो बीण
छेड़ण नैं नाग नुगरां नैं
डसण सारु
मत बतावो मारग
आपां नीं जाणां हां मंत्र
उणरो
जहर कब्जै में करण रो।
क्यूं मारो हो
किणी नैं बेमोत
जुद्ध रै भय सूं
क्यूं रचो हो?
जुद्ध रा जंजाल़ -जाल़
पंपाल़ मत करो
मत तोड़ो पांपल़ा
वश में करण रा
किणी नै मारण सूं पैला
मरणो पड़ै है
जुद्ध रै कई मोरचां माथै!
सोचो तो खरी
बेलियां !
एकर जुद्ध रा चितराम म़ाड र
देखो तो खरी
धरा रा चितराम
टाबरियां रै बिखरियै घरकोलियां नै
रमतियां नै
किसड़ाक दीखै है?
जुद्ध रै आंगण सूं
कोरो तो खरी
एक र जुद्ध नीवड़ियां
पछै रा मांडणा
इण रूपाल़ी धरती रो रूप
किसड़ोक लागै है
मनभावणो !!
करज्यो मती
धरा नै इतरी विडरूप
आपरै हाथां सूं।
जिणनै देखतां
आपरी आंख्यां
लाजां मरै जावै
अर
डर जावै
आपांरी आत्मा
जुद्ध रै रचाव सूं
राखज्यो इतरो खटाव
कै
छेहली सांस तक
मत छेड़ज्यो
राग जुद्ध री निरभागणी!
गिरधरदान रतनू दासोड़ी
मंगलवार, 30 अगस्त 2016
सूधा ......सट्ट
स्कूल का निरीक्षण चल रहा था।
निरीक्षक लड़कों से-
'सावधान'।
कोई हिला तक नहीं।
निरीक्षक-
'विश्राम'।
सब वैसे ही खड़े रहे।
निरीक्षक-(हेड मास्टर से)
क्या है ये.. इनको इतना
भी नहीं आता।
हेडमास्टर-ऐसा नहीं है सर, मैं करवाता हूँ।
हेड मास्टर- 'सूधा ......सट्ट ।
सब सावधान हो गए।
हेड मास्टर : 'ढिलो .....धस्स ।
सब विश्राम हो गए।
हेड मास्टर( निरीक्षक से) -
ओ राजस्थान है,भाया।। थारी दिल्ली कोणी लाडी
निरीक्षक बेहोश।
HISTORY OF JODHPUR : मारवाड़ का संक्षिप्त इतिहास
Introduction- The history of Jodhpur, a city in the Indian state of Rajasthan, is rich and vibrant, spanning several centuries. From its o...
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राजस्थानी भाषा में एक व्यंगात्मक हास्य कविता कलयुग में भगवान एक, ''खिलौनों बणायो। दुनियावाला ई को नाम मोबाइल ...
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राजस्थान की कुछ पुरानी कहावतें राजस्थानी में वर्षा अनुमान: ☃☔ आगम सूझे सांढणी, दौड़े थला अपार ! पग पटकै बैसे नहीं, जद मेह आवणहार !! ..सा...
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राजपूती दोहे ( - ठा फ़तह सिंह जसौल) •» ” दो दो मेला नित भरे, पूजे दो दो थोर॥ सर कटियो जिण थोर पर, धड जुझ्यो जिण थोर॥ ” मतलब :- •» एक रा...