जोधपुर _सिर्फ_हमारा_डायमंड_है
वो "गर्मीयो" की शाम,
वो " नई सड़क " रो जाम,
वो "किला रोड" री हवा,
वो "गांधी हॉस्पिटल" की दवा,
वो "त्रिपोलिया" की शाँपींग,
वो "पपु चाट" रो " चाट,
वो " चटर पटर" री पानी पूड़ी,
वो " श्रीनाथ" री "पावभाजी,
वो " रमेश मद्रासी" रो डोसा,
वो " ज़िपसी" री थाली,
वो " किम बेकरी "रो केक,
वो " भामाशाह" रो " पान,
वो "रातानाडा संगम टी री चाय,
वो "सूर्या नमकीन"रो शाही समोसो,
वो "चौधरी नमकीन"रो मिर्चीबडो,
वो "रावत" री कचोरी,
वो "चतुर्भुज" रो गुलाब जामुन,
वो "मोहन जी" रो मालपुओ,
वो "शिव गौरी" रो शेक,
वो "मिश्री लाल होटल" री लस्सी,
वो "एस एम् एस स्कूल" के नजारे,
वो "शास्त्री सर्कल के ठंडे" फवारे,
वो "सरदारपूरा" की सडके,
जहा कितने "दिल" धडके,
वो मस्ती की बाते,
एडि ही आपणै "जोधाणे" की "यादे
गुरुवार, 9 जुलाई 2015
जोधपुर _सिर्फ_हमारा_डायमंड
शनिवार, 9 मई 2015
राजस्थान का गौरव महाराणा प्रताप
मुण्ड कटै और रुण्ड लड़े इतिहास हमे बताता है
अरे खुद्दारी से जीना केवल राजस्थान सिखाता है
यहाँ राणा सा देशभक्त और चेतक की स्वामिभक्ति है
अरे घास की रोटी खाकर भी लड़ने की शक्ति है
है राष्ट्र सुरक्षित जो भालो की नोको पर कहते है
इस माटी के कण कण मे राणा प्रताप रहते है
जय प्रताप
जय राजस्थान
राजस्थान का गौरव महाराणा प्रताप की475 वी जयन्ती पर प्रदेशवासियो को हार्दिक शुभकामनाएँ
मंगलवार, 24 मार्च 2015
जोधपुर सिर्फ हमारा जोधाणा
जोधपुर सिर्फ हमारा
जोधाणा
वो गर्मीयो की शाम,
वो 'नई सड़क' रो जाम,
वो "जैसलमेर रोड"री हवा,
वो "उम्मेद हॉस्पिटल" की दवा,
वो नेशनल हेडलूम की "शाँपींग",
वो शहर रे मोय री"हिटिंग"
वो " श्रीनाथ " री "पावभाजी,
वो अरोड़ा चाट री " आलू टिक्की"
" वो " पार्श्वनाथ " रो "शेक",
और "फ्रेश & ग्रीन "रो "केक",
वो " अरोड़ा री छोटी कचोरी ",
वो " घंटाघर" रो "शाही समोसा",
वो "भाटी" री *Real-Gold* "चाय",
वो "चौधरी रो मिर्चबडो"
वो जोधपुर रो ब्रेड पकोडा
और चतुर्भुज रो गुलाब जामुन
वो गर्ल स्कूल के नजारे,
वो माहविर पार्क के ठंडे "फवारे",
वो के एन काँलेज" की "सडके",
जहा कितने "दिल" धडके,
वो मस्ती की बाते,
एडि ही कई हमारे "जोधपुर"के की "यादे"
मंगलवार, 3 मार्च 2015
रियासत- ए - मारवाड़ :-
( राठौड़ क्षत्रिय होंगे वे तो एकबार जरूर शेयर करेंगे)
मारवाड़ रियासत हो, राठौड़ो का राज हो !
रणवीरो में रोश हो, जौधा जैसा जोश हो !!
पिथल सा पानी हो, कुम्पा कि कहानी हो !
मीरा सि मेड़तानी हो, साथ माँ भटयाणि हो !!
रक्त में रवानी हो, रण-भूमि इसकी निशानी हो !
शेखा इसके शानी हो, सच्ची ये कहानी हो !!
जौहर की ज्वाला हो, जैता सा जूनून हो !
सिंहाजी सि समझ हो, चुंडाजी जी रि छतर हो !!
चन्द्र सेन चौतरफा हो, माँ नाग्नेच्या रि कृपा !!
जसवंत सिंह सि झुंझलाहट, राठौड़ो कि हर तरफ आहट हो !
गज सिंह कि गर्जना हो, हणुवन्त सिंह कि हुँकार हो !
मारवाड़ का गुणगान हो, हाथा में तलवार हो !!
रण-बंको को रहम हो, पर रण -भूमि सबसे अहम हो !
रिडमल सि राजनीती हो, आ बात अठे बीती हो !!
चांदा रि चतुराई हो, मेडतिया रि बडाई हो !
बिका सि बहादुरी हो, चाहे सामने शेरशाह सुरी हो !!
चाम्पा सा चरित्र हो, मुकन्दास सा मित्र हो !
मेडतिया रि वो मार हो, अमर सिंह सि कटार हो !!
कांधल रि किर्ति हो, माँ करणी रि कृपा हो !
मालदेव सि मात हो, राठौड़ जग - विख्यात हो !!
जैमल रि जयकार हो, राजपुताना रि पुकार हो ,
फत्ता सा फौलाद हो, शेखा सी औलाद हो !!
जौधा जैसा जंगी हो, तो भाग ज्यावे फिरंगी हो !
पाबु रा प्रवाडा जो याद करया आवे आडा !!
दारू हो दाखिरा रि, धरती हो आ वीरा रि !
शूरा हो शिकार हो, हाथा में तलवार हो !!
रघुकुल रा वटकाला हो, जौहर रि ज्वाला हो !
गौरबन्द रा गीत हो, राठौड़ा रि जीत हो !!
दुदाजी रा दिदार हो, हाथा में तलवार हो !
आसोप से आश हो, उदा से उम्मीद हो !!
दुर्गा जैसा दम हो, साथ आप और हम हो
मारवाड़ लुन्ठो होवे, रण-वीरा रो खूंटो होवे !!
गिरी -सुमेल पर गर्व हो, राजपूत एकता सर्वे हो !
तलवारा रा वार हो, राठौड़ी रि जयकार हो !!
वही आन बान शान हो, राजपुताना अपनी जान हो !
जय राजपुताना
शनिवार, 14 फ़रवरी 2015
“जहाँ बबूल वहाँ मारवाड और जहाँ आम वह मेवाड़”
मेवाड़ और मारवाड के बीच स्थायी सीमा निर्धारण महाराणा कुम्भा और जोधा के वक़्त हुआ. पर इसके पीछे की कहानी बहुत रोचक है. सीमा तय करने के लिए जोधा और कुम्भा के मध्य संधि हुई. “जहाँ बबूल वहाँ मारवाड और जहाँ आम-आंवला वह मेवाड़” की तर्ज पर सीमा निर्धारण था. क्या था बबूल और आम का अर्थ. इसे समझने के लिए संक्षिप्तता में रहते हुए इतिहास में चलते है.
सन 1290 में दिल्ली में जलालुद्धीन ने खिलजी वंश की स्थापना की. उस वक्त मध्य भारत पर कब्ज़ा करने के लिए उसने अपने भतीजे और दामाद अलाउद्दीन खिलजी को मालवा पर आक्रमण के लिए भेजा. बाद में विंध्यांचल पार कर उसने देवगिरी (वर्तमान औरंगाबाद) के राजा रामचंद्र को हराया. तत्काल बाद उसने अपने श्वसुर जलालुद्दीन की हत्या कर खुद को दिल्ली का शासक घोषित कर दिया. 1310 में उसने चित्तोड़ पर आक्रमण किया. उस वक़्त चित्तोड़ पर रावल रतनसिंह (पहले मेवाड़ के शासक रावल उपाधि धारण करते थे) का शासन था. सुल्तान लड़कर नहीं किन्तु छल कर सफल हुआ. यहाँ पहले पद्मिनी की शीशे में शक्ल देखने और बाद में जौहर का वृतांत है. चित्तोड़ किले की तलहटी में स्थित एक मकबरे में 11 मई 1310 में चित्तोड़ फतह का जिक्र है. अलाउद्दीन ने चित्तोड़ अपने बेटे खिजर को दिया और चित्तोड़ को नया नाम मिला: खिजराबाद. यह वर्णन गौरीशंकर ओझा की “उदयपुर राज्य का इतिहास” में मिलता है. बाद में खिजर दिल्ली चला गया और पीछे रतनसिंह के भांजे मालदेव सोनगरा को करदाता के रूप में चित्तोड़ सौंप दिया. बाद में हम्मीर ने चित्तोड़ पर गुहिल वंश का राज पुनः कायम किया. हम्मीर सिसोद जागीर से था सो यह वंश सिसोदिया कहलाया.
हम्मीर के समय से मेवाड़ के शासकों ने “राणा” उपाधि को धारण किया. हम्मीर ने मेवाड़ का पुनः उद्धार किया. इडर, बूंदी आदि को पुनः जीता. हम्मीर के बाद क्रमशः उसका पुत्र क्षैत्र सिंह और पौत्र लक्षसिंह राणा बना. लक्षसिंह राना लाखा के नाम से प्रसिद्द हुआ. लाखा के वक़्त जावर गांव में चांदी की खाने निकल आई और मेवाड़ समृद्ध राज्य बना.
इसके बाद की घटना बहुत अद्वितीय घटी. मंडोर के राठोड़ चूंडा ने अपने छोटे बेटे कान्हा को युवराज बनाना चाहा, जो उस वक़्त की शासन परंपरा के खिलाफ था. चूंडा का ज्येष्ठ पुत्र रणमल नाराज होकर राना लाखा की शरण में मेवाड़ आ गया. रणमल के साथ उसकी बहन हंसाबाई भी मंडोर से मेवाड़ आ गयी. रणमल ने बहन हंसाबाई की शादी लाखा के बड़े बेटे “चूंडा” से करवाने की चाह में राणा के पास शकुन का नारियल भेजा. राणा उस वक्त दरबार में थे और उन्होंने ठिठोली में कह दिया कि उन्हें नहीं लगता कि उन जैसे बूढ़े के लिए ये नारियल आया है सो चूंडा आकर ये नारियल लेगा. मजाक में कही गयी बात से लाखा के बेटे को लगा कि राणा की अनुरक्ति हंसाबाई की ओर है. उन्होंने आजीवन कुंवारा रहने और हंसाबाई का विवाह अपने पिता से करवाने की भीष्म प्रतिज्ञा की. यह भी प्रण किया कि राणा और हंसाबाई की औलाद ही मेवाड़ की शासक बनेगी.
राणा लाखा और हंसाबाई के पुत्र मोकल को मेवाड़ की गद्दी मिली. मरते वक़्त लाखा ने ये व्यवस्था की कि मेवाड़ के महाराणाओ की ओर से जो भी नियम पट्टे जारी किये जायेंगे उन पर भाले का राज्य-चिन्ह चूंडा और उसके वंशधर करेंगे, जो बाद में सलूम्बर के रावत कहलाये.
चूंडा ने मोकल के साथ मिलकर मेवाड़ को मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी किन्तु मामा रणमल को यह डर था कि चूंडा मौका मिलने पर मोकल को मरवा देगा. उसने बहन हंसाबाई के कान भरे. हंसाबाई ने चूंडा को विश्वासघाती बताकर मेवाड़ से चले जाने का आदेश दे दिया. व्यथित चूंडा ने मेवाड़ छोड़ने का निश्चय किया किन्तु इतिहासकार लिखते है कि उसने राजमाता से कहा था कि अगर मेवाड़ में कुछ भी बर्बादी हुई तो वह पुनः लौटेगा. चूंडा अपने भाई राघवदेव को मोकल की रक्षार्थ मेवाड़ में छोड़ दिया.चूंडा के जाते ही रणमल अपने भांजे मोकल का संरक्षक बन गया. वह कई बार मोकल के साथ राजगद्दी पर बैठ जाता, जो मेवाड़ के सामंतो को बुरा लगता. रणमल स्वयं मेवाड़ का सामंत तो हो गया पर उसका पूरा ध्यान अपने मूल राज्य मंडोर की तरफ था. उसने मंडोर से राठोडों को बुलाकर मेवाड़ के मुख्य पद उन्हें दिए. राजा श्यामलदास “वीर विनोद” में लिखते है कि मेवाडी सामंतों को यह नागवार गुज़रा. उन्हें लगता था कि मेवाड़ अब मारवाड का हिस्सा हो जायेगा ! इसी दौरान जब मारवाड में उत्तराधिकार का संकट आया तो रणमल ने मेवाड़ की सेना के सहारे मंडोर पर कब्ज़ा कर लिया. एक बार मौका पाकर रणमल ने भरे दरबार में चूंडा के भाई राघवदेव की हत्या कर दी. इस दौरान गुजरात के सुल्तान अहमदशाह से युद्ध के दौरान मोकल के साथ स्व. राणा लाखा की पासबान (रखैल ) के दो बेटे चाचा और मेरा, भी मोकल के साथ हुए. युद्ध जीत लिया गया किन्तु चाचा और मेरा को यथोचित सम्मान नहीं मिला. कारण था रखैल के पुत्र होना. बाद में इन दोनों ने मोकल को धोखे से मार डाला. विविध घटनाक्रम के बाद मोकल का बेटा कुम्भकर्ण (कुम्भा) राणा बना.
कुम्भा को भी रणमल का साथ मिला. किन्तु एक बार रणमल ने नशे में किसी पासबान दासी को कह दिया कि वह कुम्भा को मार कर मेवाड़ और मारवाड का शासक बनेगा. बात जब कुम्भा तक पहुंची तो उन्हें यह नागवार गुज़रा. रणमल स्थिति भांपकर चित्तोड़ दुर्ग छोडकर तलहटी में आकर रहने लगा. इसी दौरान रणमल की हत्या कर दी गई. उसका बेटा जोधा मेवाड़ से भाग निकला.
बाद में मंडोर, लूनकरनसर, पाली, सोजत, मेड़ता आदि राज्य भी मेवाड़ के अंतर्गत हो गए. ऐसे में जोधा छिपते छिपाते बीकानेर के पास जाकर छिप गया. कालांतर में राजमाता हंसाबाई ने अपने पौत्र कुम्भा से भतीजे जोधा के लिए अभयदान माँगा. महाराणा कुम्भा ने वचन दिया. उसी से अभय होकर जोधा ने मडोर पुनः अपने कब्ज़े में किया. किन्तु अभयदान के चलते वह धीरे धीरे सोजत, पाली तक बढ़ आया. किन्तु जब वह मेवाड़ के परगनो पर आक्रमण करने लगा तो बात ज्यादा बढ़ गयी. कुम्भा वचन में बंधा था. यहाँ गौरीशंकर ओझा लिखते है कि एक बार जोश में आकर जोधा ने चित्तोड़ तक पर आक्रमण का फैसला लिया. वह अपने पिता की हत्या का बदला लेना चाहता था. जोधपुर के चारण साहित्य में तो यहाँ तक कहा गया है कि जोधा ने चित्तोड़ पर आक्रमण कर उसके दरवाज़े जला दिए. किन्तु इतिहासकार इसे सच नहीं मानते. क्योंकि उस दौर में कुम्भा ने गुजरात, मंदसौर, सिरोही, बूंदी, डूंगरपुर आदि शासकों को हराया था. उस वक़्त मेवाड़ की सीमा सीहोर (म.प्र.) से हिसार (हरियाणा) तक थी. केवल हाडोती के रावल (हाडा) और मेरवाडा (अजयमेरू अथवा अजमेर) अपनी स्वतंत्रता अक्षुण बनाये हुए थे.
जोधा द्वारा बार बार मेवाड़ के परगनो पर आक्रमण और कुम्भा द्वारा उसे कुछ नहीं कहे जाने को लेकर दोनों पक्षों के बीच संधि हुई. इतिहासकार लिखते है कि इस वक़्त जोधा ने अपनी बेटी “श्रृंगार देवी” का विवाह कुम्भा के बेटे रायमल से किया. अनुमान होता है कि जोधा ने मेवाड़ से अपना बैर बेटी देकर मिटाने की कोशिश की हो. किन्तु मारवाड के इतिहास में इस घटना का उल्लेख नहीं मिलता. मेवाड़ के इतिहास (वीर विनोद एवं कर्नल जेम्स टोड) में इस विवाह के बारे में लिखा गया है. बाद में इसी श्रृंगार देवी ने चित्तोड़ से बारह मील दूर गौसुंडी गांव में बावडी बनवाई,जिसके शिलालेख अब तक विद्यमान है.
मेवाड़ और मारवाड में हुई संधि में सीमा निर्धारण की आवश्यकता हुई. तय किया गया कि जहाँ जहाँ तक बबूल के पेड है, वह इलाका मारवाड में और जहाँ जहाँ आम-आंवला के पेड हो, वह स्थान हमेशा के लिए मेवाड़ का रहेगा. यह सीमांकन प्रायः स्थायी हो गया. इस सीमांकन के बाद सोजत (मेरवाडा-अजमेर के ब्यावर की सीमा तक) से थार (वर्तमान पाकिस्तान के सिंध की सीमा तक) तक और बीकानेर राज्य से बाड़मेर तक का भाग मारवाड के पास तथा बूंदी से लेकर वागड़ (डूंगरपुर) तथा इडर से मंदसौर तक का भाग मेवाड़ कहलाया. यद्यपि मेवाड़ इस से भी बड़ा था किन्तु आम्बेर (जयपुर), झुंझुनू, मत्स्य नगर, भरतपुर आदि मेवाड़ के करदाता के रूप में जाने जाते थे. उस वक़्त मेवाड़ मुस्लिम त्रिकोण (नागौर- गुजरात-मालवा) के बीच फंसा राजपूती राज्य था. एक समय में जब कुम्भा ने मालवा की राजधानी मांडू और गुजरात की राजधानी “अहमद नगर’ पर हमला किया तो दोनों मुस्लिम शासकों ने कुम्भा को “हिंदू-सुरत्राण” की उपाधि से नवाजा. इसके शिला लेख कुम्भलगढ़ और राणकपुर के मंदिरों में मिलते है.
बाद में कुम्भा के बेटे महाराणा सांगा ने जब खानवा में बाबर से युद्ध किया तो मारवाड ने मेवाड़ का बराबर साथ दिया. इस से पता चलता है कि बैर सदा नहीं रहता. जोधा ने भी मेवाड़ की ओर से आक्रमण के आशंकाएं खत्म होते ही जोधपुर नगर बसाया....!
गुरुवार, 9 जनवरी 2014
MARWARI JOKES ( CHUTKULE)
और बैँक मेनेजर से रु.50,000 का लोन मांगा.
बैँक मेनेजर ने गेरेँटर मांगा.
राजस्थानी ने अपनी BMW कार 🚔जो बैँक के सामने पार्क की हुई थी उसको गेरेँटी के तरीके से जमा करवा दी.
मेनेजर ने गाडी के कागज चैक किए,
और लोन देकर गाडी को कस्टडी मेँ खडी करने के लिए कर्मचारी को सुचना दी.
राजस्थानी 50,000 रुपये लेकर चला गया.
बैँक मेनेजर और कर्मचारी उस राजस्थानी पर हँसने लगे और बात करने लगे कि यह करोडपति होते हुए भी अपनी गाडी सिर्फ 50,000 मेँ गिरवी रख कर चला गया.
कितना बेवकुफ आदमी है.😗😗
उसके बाद 2 महीने बाद राजस्थानी वापस बैँक मे गया और लोन की सभी रकम देकर अपनी गाडी वापस लेने की इच्छा दर्शायी.
बैँक मेनेजर ने हिसाब-किताब किया और बोला : 50,000 मुल रकम के साथ 1250 रुपये ब्याज.
राजस्थानी ने पुरे पैसे दे दिए.
बैँक मेनेजर से रहा नही गया और उसने पुछा : कि आप इतने करोडपति होते भी आपको 50,000 रुपयो कि जरुरत कैसे पडी.?
राजस्थानी ने जवाब दिया : मैँ राजस्थान से आया था.
मैँ अमेरिका जा रहा था.
मुबंई से मेरी फ्लाइट थी.
मुबंई मेँ मेरी गाडी कहा पार्क करनी है यह मेरी सबसे बडी प्रोबलम थी.
लेकिन इस प्रोबलम को आपने हल कर दिया.
मेरी गाडी 🚔भी सेफ कस्टडी मेँ दो महीने तक संभाल के रखा और 50,000 रुपये
खर्च करने के लिए भी दिए दोनो काम करने का चार्ज लगा सिर्फ 1250 रुपये.
आपका बहुत बहुत धन्यवाद.!
इसिलिए कहते दोस्तो कि
"जहा ना पहुचे कोई गाडी वहा पहुच जाता है मारवाडी....
________________________________________________
अगर मोबाइल rajasthan में बनता होता तो मोबाइल में ये
मेसेज टेम्प्लेट्स होते -
1.पाछो फ़ोन कर,
2.कचोरी लेतो आ
3.फ़ोन में पैसा घला दे .
4.सुबह -सुबह माथो मत खा
5.अबार कॉल मत कर , लुगाई कने ही सूती है
6.बाद में बात करू , मुंडा में गुटको है
7.थारी सोगन पैसा कोनी....
और जोरदार चुटकुला www.rajrangilo.blogspot.com पर
रविवार, 22 दिसंबर 2013
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