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शुक्रवार, 2 सितंबर 2016

राजस्थानियों की एक आदत

राजस्थानियों की एक आदत है..











कोई अच्छा भला सो रहा हो तो भी,
उसको जगाकर पूछेंगे,
"कई रे, हुतो है कई..!!!''

और वो नींद से उठेगा तो भी कहेगा ...                        

यूं ही आडो वियो थको हूं ... नींद कठै आवै बलै ..

गुरुवार, 1 सितंबर 2016

राजपुताना के रीति  रिवाज

राजपुताना के रीति  रिवाज जिनकी जानकारी हमारे लिए  आवश्यक है।       
         
1.) अगर आप के पिता जी /दादोसा बिराज रहे है तो कोई भी शादी ,फंक्शन, मंदिर आदि में आप के कभी भी लम्बा तिलक और चावल नहीं लगेगा, सिर्फ एक छोटी टीकी लगेगी !!

2.) जब सिर पर साफा बंधा होता है तो तिलक करते समय पीछे हाथ नही रखा जाता,सर के पीछे हाथ रखने से ऐश्वर्य का प्रतिक( साफे) का पर्याय कभी हाथ नहीं हो सकता है, यदि सिर पर साफा नहीं हो, तो बिना सिर पर हाथ रखे ही तिलक करवाए ।

3.) पिता का पहना हुआ साफा , आप नहीं पहन सकते

4.) मटिया, गहरा हरा, नीला, सफेद ये शोक के साफे है

5.) खम्मा घणी  का असली मतलब है "माफ़ करना में आप के सामने बोलने की जुरत कर रहा हूं,  जिस का आज के युग में कोई मायने नहीं रहा गया है !!

6.) असल में खम्माघणी , चारण, भाट, ढोली - ढुम ठिकानेदार / राजा /महाराजा के सामने कुछ बोलने की आज्ञा मांगने के लिए use करते थे.

7.) ये सरासर गलत बात है की घणी खम्मा, खम्मा-घणी का उत्तर है, असल में दोनों का मतलब एक ही है !!

8.) हर राज के, ठिकाने के, यहाँ clan/subclan के इस्थ देवता होते थे, जो की जायदातर कृष्ण या विष्णु के अनेक रूपों में से होते थे, और उनके नाम से ही गाँववाले या नाते-रिश्तेदार आप का greet करते थे, जैसे की जय रघुनाथ जी की , जय चारभुजाजी की...जय गोपीनाथ जी की ।

9.) पैर में कड़ा-लंगर, हाथी पर तोरण, नंगारा, निशान, ठिकाने का मोनो ये सब जागीरी का हिस्सा थे, हर कोई जागीरदार नहीं कर सकता था, स्टेट की तरफ से इनायत होते थे..!!

10.) मनवार का अनादर नहीं करना चाहिए, अगर आप नहीं भी पीते है तो भी  शिष्टाचार पूर्वक उनका अभिवादन करें ।

11.) अमल घोलना, चिलम, हुक्का या दारू की मनवार यह सामाजिक दुराचार हैं ना कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर ।

12.)ढोली के ढोल को "अब बंद करो या ले जायो" नहीं कहा जाता है "पधराओ " कहते हैं।

13.) आज भी कई घरों में तलवार को म्यान से निकालने नहीं देते, क्योंकि तलवार की एक परंपरा है - अगर वो म्यान से बाहर आई तो या तो उनके खून लगेगा, या लोहे पर बजेगी, इसलिए आज भी कभी अगर तलवार म्यान से निकलते भी है तो उसको लोहे पर बजा कर ही फिर से म्यान में डालते है !!

14.) तोरण मारना इसलिए कहते है क्योकि तोरण एक राक्षस था, जिसने शिवजी के विवाह में बाधा डालने की कोशिश की थी और उसका शिवजी ने वध किया था

15.) ये कहना गलत है की माताजी के बलि चढाई जाती हैं , माताजी तो पूरे जगत की (जननी) माँ है वो भला कैसे किसी प्राणी की बलि ले सकती है? विचार करें कि क्या वह प्राणी इस जगत में नहीं आता हैं?
माता बलि लेती हैं हमारे दुर्गुणों(काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार आदि) की।
पशु बलि इन पण्ड़ावादी पाखंड पुराणो में तांत्रिक उपासकोंकी देन है, नाकि क्षत्रियों द्वारा लिखित सात्विक क्षत्रिय ग्रथों(वेद, उपनिषद, वाल्मीकि रामायण, महाभारत व गीता) की देन है ।

बुधवार, 31 अगस्त 2016

तूं ई है भरम में

तूं ई है भरम में म्है ई हूं भरम में!
नहीं तूं धरम में नहीं मैं धरम में!!
मिनखपण बेचियो रात रै अंधारै!
विहसियो भलांई उजाल़ै बेशरम मे!
चोर तो धणी रो तुंही है म्है ई हूं!
सोचियां दोनूं ई मरांला शरम में !!
चोट रो दरद तो दुखै सब दिलां में!
लगां तो निकल़सी रगत हर चरम में!!
तुंही सिरमोड़ नैं म्है ई सिरमोड़ कह!
धकेलै झोड़ नैं नाखियो परम में!!
बाद बकवाद मे त्याग मरजाद नै!
खावां नित जूतियां आंपणै करम में!!

गिरधरदान रतनू दासोड़ी

जुद्ध

जुद्ध-

गिरधरदान रतनू दासोड़ी
इतरा आकरा मत पड़ो
जुद्ध रै सारु
बेटी रै बापां!
क्यूं कसो हो जीण
किणी नै तीण -तीण करण नै
क्यूं बजावो हो बीण
छेड़ण नैं नाग नुगरां नैं
डसण सारु
मत बतावो मारग
आपां नीं जाणां हां मंत्र
उणरो
जहर कब्जै में करण रो।
क्यूं मारो हो
किणी नैं बेमोत
जुद्ध रै भय सूं
क्यूं रचो हो?
जुद्ध रा जंजाल़ -जाल़
पंपाल़ मत करो
मत तोड़ो पांपल़ा
वश में करण रा
किणी नै मारण सूं पैला
मरणो पड़ै है
जुद्ध रै कई मोरचां माथै!
सोचो तो खरी
बेलियां !
एकर जुद्ध रा चितराम म़ाड र
देखो तो खरी
धरा रा चितराम
टाबरियां रै बिखरियै घरकोलियां नै
रमतियां नै
किसड़ाक दीखै है?
जुद्ध रै आंगण सूं
कोरो तो खरी
एक र जुद्ध नीवड़ियां
पछै रा मांडणा
इण रूपाल़ी धरती रो रूप
किसड़ोक लागै है
मनभावणो !!
करज्यो मती
धरा नै इतरी विडरूप
आपरै हाथां सूं।
जिणनै देखतां
आपरी आंख्यां
लाजां मरै जावै
अर
डर जावै
आपांरी आत्मा
जुद्ध रै रचाव सूं
राखज्यो इतरो खटाव
कै
छेहली सांस तक
मत छेड़ज्यो
राग जुद्ध री निरभागणी!
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

मंगलवार, 30 अगस्त 2016

सूधा ......सट्ट

स्कूल का निरीक्षण चल रहा था।
निरीक्षक लड़कों से-
'सावधान'।
कोई हिला तक नहीं।
निरीक्षक-
'विश्राम'।
सब वैसे ही खड़े रहे।
निरीक्षक-(हेड मास्टर से)
क्या है ये.. इनको इतना
भी नहीं आता।
हेडमास्टर-ऐसा नहीं है सर, मैं करवाता हूँ।
हेड मास्टर- 'सूधा ......सट्ट ।
सब सावधान हो गए।
हेड मास्टर : 'ढिलो .....धस्स ।
सब विश्राम हो गए।
हेड मास्टर( निरीक्षक से) -
ओ राजस्थान है,भाया।। थारी दिल्ली कोणी लाडी

निरीक्षक बेहोश।

सोमवार, 29 अगस्त 2016

देख सके तो आज देख ले

देख सके तो आज देख ले !!!!!

आ आजादी आज देख ले ! तकदीरां का ताज देख ले !!

करमां आडी लीकां काडी, आरक्षण आगाज देख ले !
रुजगारां रो रोळो मचियौ ,
रोळ दपट्ट ऐ राज देख ले !!

ठावा ठरका ठसक ठाकरी, अफसरिया अंदाज देखलेे !
लहरां बिच में लाय लागगी ,
जळ बिन डूू़बी जाज देख ले!!

धरम धजा धारै धणियापौ ,
दुष्टि  दंगाबाज  देख  ले !
नेताजी रा नखरा न्यारा ,
खिणे कोढ में खाज देख ले !!

लाडेसर लखणां रा लाडा ,
लुटतां लिछमी लाज देख ले! भ्रष्टाचारी गुणिया भणिया ,
करोड़ां का काज देख ले !!

चोरी  ज़ारी  बारी  बारी ,
रोज करे रियाज देख ले !
लुकती लुळती लाचारी रा ,
सूना पड़िया साज देख ले!!

निबंळां ऊपर निरभै नाचै ,
सबळां रो समाज देख ले !
अंत हो जासी आंख अंधेरों ,
देख सके तो आज देख ले !!

*रतन सिंह चंपावत रणसी गांव* ©©©©©©

बरसाल़ै रो गीत चित इलोल

बरसाल़ै रो गीत चित इलोल़-गिरधरदान रतनू दासोड़ी
अहर निस असमान आयो,
महर कर मघवान।
लहर कर हद ल़ोर लूंब्या,
ठहर थल़वाट थान।
तो थिरथानजी थिरथान,
थपियो इँद थल़वट थान।।1
गहर नभ गड़डाट गाजै,
धरर कर धड़ड़ाट।
अड़ड़ाट ओसर आवियो इल़,
डकर भर दड़ड़ाट।
तो कड़ड़ाटजी कड़ड़ाट
कड़कै बीजल़ी कड़ड़ाट।।2
छता सरवर तोय छौल़ां,
भरै तण-तण भाव।
खल़किया नद नीर खाल़ा
डगर दिस दरियाव।
तो मनभाव रै मनभाव ,
मुरधर रूप ओ मनभाव।।3
सुरपत्त भरिया खाडिया सह,
नाडिया नीवाण।
काढिया दिन कूट दुरभक्ख,
आप मनसुध आण।
तो महराण रै महराण,मन रो इँदवो महराण।।4
हरस अवनी वसन हरिया,
पहरिया कर प्रीत।
जोप जोबन कोड करणी,
रीझ तरुणी रीत।
तो मनमीतजी मनमीत,
मिल़ियो आय वासव मीत।।5
सरस सावण रैयो सुरँगो,
झड़ी मंडियो जोर।
तीज रै मिस वरस तूठो,
रसा तोड़ण रोर।
तो घणघोर रै घणघोर
घुरियो रीझ नै घणघोर।।6
भादवा तूं भलो भाई!
बूठियो वरियाम।
बूठियां तुझ मिटी विपती,
केक सरिया काम।
तो इमकामजी इमकाम
करिया भादवै भल काम।।7
रम किसन वाल़ा धोया रलक्या
निमल पालर नीर।
पमँग निजपण आप पाया,
पेख गोगै पीर।
तो निजनीरजी निजनीर
नामी भादवै निजनीर।।8
जँगल़ धरती मँगल़ जोवो,
हरदिसा हरियाल़।
मुरधरा ठाकर आय मोटै,
काटियो सिर काल़।
तो हरियाल़जी हरियाल़
हरदिस थल़ी में हरियाल़।।9
धरा भुरटी मोथ धामण,
सरस सेवण साव।
मछर सुरभी महक मसती
चरै गंठियो चाव।
तो कर चावजी कर चाव,
चरणी चरै डांगर चाव।।10
डेयरियां में बधी डीगी,
बाजरी बूंठाल़।
मूंग मगरै तिल्ल तालर,
फूल मोठां फाल़।
तो मतवाल़जी मतवाल़
मुरधर रीझियो मतवाल़।।11
धापिया पालर देख धोरा,
भर्या तालर भाल़।
दहै टहुका मोर दादर,
ताण ऊंची टाल़।
तो नितपाल़जी नितपाल़,
परगल़ नेह सुरियँद पाल़।।12
मही माटां मांय मत्थणो,
देय झाटां दोय।
दही माखण देय दड़का,
लहै लावा लोय।
तो सब लोयजी सब लोय,
सब दिस हरसिया सह लोय।।13
रल़ियावणी धर करो रल़ियां,
थया थल़ियां थाट।
खरी इणविध लगी खेतां,
हेतवाल़ी हाट।
तो हिव हाटजी हिव हाट,
हर दिस हेत री थल़ हाट।।14
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

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