जंगी गढ जोधांण-- मोहनसिंह रतनू
जयपुर कदेन जावणो,
अंबु हवा असुद्व।
प्राय वाहन गिरपडै,
राह करे अवरूद्व।।1
बारीश में कोटा बुरो,
दिन रूकणो नह दोय।
माखी माछर मांदगी,
हर च्यारुं दिस होय।।२
सरदी में आबू शिखर,
भूल कदे मत भेट।
काया धूजै कांपती,
लेवे ठंड लपेट।।३
मझ गरमी रै मांयनै, चुरू उपाडे चांम।
चिलबलती लूंवां चले,
हुवे नींद हराम।।४
क्यूं काला दर दर भमे,
फिर मत व्यग्र फजूल।
जगां सुहाणी जोधपुर,
आब हवा अनुकूल।।५
आडो रह्यो अजीत रै,
दिलसुध दुरगा दास।
जीवण भर रण जूंझियो,
अमर हुओ इतिहास।।६
विटप रूखाल़ण वासतै,
पिण्ड दिया तज प्राण।
अगवाणी री अमरता,
जाहर हुइ जोधांण।।७
मधुर संभासण,
मोटमन,
अंतस घण अपणास।
जी कारो हर जीब पे,
खूबी जोधपुर खास।।८
बंध कोट ओपे बदन,
कमर बद्व करपाण।
पाग अनुपम्म जोधपुर,
पूरे जग पहचांण।।९
जौध बसायो जोधपुर,
नवखंड करियो नाम।
दी कुरबाणी देह री,
रंग हो राजा राम।।१०
जग में चावो जोधपुर,
भल चमकंतो भाण।
अड़ियो जाय अकास सूं,
जंगी गढ जोधांण।।११
इमली,लूंग,इलाइची,
अठे न निपजै आम।
सिर देवण रण सूरमां,
बैठा गामो गाम।।१२
बोर मतीरा बाजरी,
कूमटिया अरु कैर।
राजी व्हे सुर राज तो,
लागे लावा लैर।।१३
वसुधा देश विदेश मे,
करे शाह सब काम।
आज इल़ा पर अग्र है,
नग्र जोधपुर नाम।।१४
जोधपुर रै नांम चंद ओल़ियां
रचयिता-मोहन सिंह रतनू
आदरणीय मोहनसा रै दूहां री सम्मति में चंद दूहा-
बंको बीकानेर-गिरधरदान रतनू दासोड़ी
मुरधर रो जस मंडियो,
चारण मोहन चाव।
अलंकार उकती अनुप,
भर उर आदर भाव।।1
जाहर गढ जोधाण री,
पंगी समँदां पार।
आज सुरंगी की अवस,
विध विध कर विस्तार।।2
सहर बीजा तो सांप्रत,
है नीं समवड़ हेर।
जग समवड़ जोधाण रै,
(ओ तो) बंको बीकानेर।।4
धर धिन धोरा धोल़िया,
समवड़ जिकै सुमेर।
संत सती वड सूरमा,
बो'ल़ा बीकानेर।।5
जग जणणी राजै जठै,
किनियांणी करनल्ल।
उत रिड़मल जोधो अवस,
हिव पूगा धर हल्ल।।6
महि कानै नै मारियो,
मुदै तजत मरजाद।
जो करनी राजै जठै,
सुणण सेवगां साद।।7
बदरी अन केदार वड,
जाण पुरी जगन्नाथ।
इल़ देसाणै आय इम,
पेख दास फल़ पात।।8
ओरण हरियाल़ी अवन,
जग बदरी सम जाण।
जगत सगत री जातरा,
देख करै देसाण।।9
कमरै रा कंध भँगिया,
जैतराव धर जेथ।
मुगल़ बीह उण मुलक में,
अवर न पूगा ऐथ।।10
राती-घाटी राठवड़
भिड़ियो जैतो भट्ट।
हल्दीघाटी री हिव जनक,
रही जँगल़ रजवट्ट।।11
धर राखी राख्यो धरम,
विमल़ हिंदवां वेस।
जा'झ कँवाड़ां झूड़िए,
कमध जेथ करनेस।।12
जंभेसर जोगी जठै,
महि धिन तप्यो मुकांम।
जाहर जिणरो जोयलो,
धर समराथल़ धांम।।13
जस जोवो जसनाथ रो,
भुइ सारी इण भेर।
अगन-निरत चावो अवस,
बसुधा बीकानेर।।14
जाहर गढ जोधांण रो,
हाड अकूणी हेर।
सदा निशंको सांप्रत,
बंको बीकानेर।।