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गुरुवार, 7 जुलाई 2016

सुरराज करी गजराज सवारिय-गिरधरदान रतनू दासोड़ी


   दूहो
आज करी थल़ ऊपरै,
गज चढ गाज गहीर।
राज सुरांपत रीझियो,
भुई सज आयो भीर।।
    छंद -रोमकंद
उमड़ी उतराद अटारिय ऊपड़,
कांठल़ सांम वणाव कियो।
चित प्रीत पियारिय धारिय चातर,
आतर जोबन भाव अयो।
वसुधा धिनकारिय आघ बधारिय,
वा बल़िहारिय बात बही।
सुरराज करी गजराज सवारिय,
मौज वरीसण आज मही।।
जियै ,मौज समापण राज मही।।1
धड़ड़ै धड़ड़ै धर ऊपर धाहुड़,
गाढ करै गड़ड़ै गड़ड़ै।
अड़ड़ै अड़ड़ै द्रब नीर सु आपण,
हेर हँसी इल़ यूं हड़ड़ै।
कड़ड़ै कड़ड़ै चमकी चपल़ा कर,
साच विजोगण दाह सही।
सुरराज करी गजराज सवारिय,
मौज वरीसण आज मही।
जियै,मौज समापण राज मही।।2
मन चाव अहो मघवान मरूधर,
कोड उपाव उछाव कियो।
पड़ बीज पल़ाव पल़ापल़ पाधर,
देव उमाव सुदाव दियो।
सुध नीर भराव तल़ाव- सरोवर
थाट वल़ोवल़ हाट थही।
सुरराज करी गजराज सवारिय,
मौज वरीसण आज मही।
जियै, मौज समापण राज मही।।3
हल़ जोतण  खेत सुहेत हल़ध्धर,
बीजरु जूंगरु लेय बुवा।
मनभावण सूण मनाविय मोदर,
हाम सपूरण त्यार हुवा।
भतवारण प्रीत धरी उर भारिय,
लोभ सु खारिय सीस लही।
सुरराज करी गजराज सवारिय,
मौज वरीसण आज मही।
जियै,मौज समापण राज मही।।4
धव आवण सूं धरिया धरती धिन,
हेर सुअंबर ऐ हरिया।
करिया मन कोड कितायक कामण,
पेख सँताप हुवा परिया।
सरिया सब काज सताबिय सामण,
भामण भोम निहाल भही।
सुरराज करी गजराज सवारिय,
मौज वरीसण आज मही।
जियै,मौज समापण राज मही।।5
खल़कै जल़ खाल़ सुगाढ खतावल़,
अंग नदी हद ऊफणियै।
तणियै दरियाव दिसी कर ताकड़,
वाम सुहागण यूं बणियै।
भणियै भरतार तणो सुख भावण,
लोयण जोबन लोम लही।
सुरराज करी गजराज सवारिय,
मौज वरीसण आज मही।
जियै,मौज समापण राज मही।।6
पह धूड़ रुकी उडती थल़ पाधर,
पात तरव्वर पांगरिया।
पद मोर नचै सुण घोर पुरंदर,
सांम सबै सुख सांभरिया।
किरपाल़ दटावण काल़ कराल़ नुं,
मेटण ग्रीखम ताप मही।
सुरराज करी गजराज सवारिय,
मौज वरीसण आज मही।
जियै,मौज समापण राज मही।।7
मधरी मधरी सुण टेर सुमोहक,
बाल़ ग्वाल़ रि बांसुरिया।
सुरभी दल़ टोकर साद सुहावण,
ऐवड़ जंगल़ ऊछरिया।
चरिया वन लील सबै जद चौपग,
रीझ अबै वनराय रही।
सुरराज करी गजराज सवारिय,
मौज वरीसण आज मही।
जियै,मौज समापण राज मही।।8
सज रूप ललाम सलाम सहेलिय,
ताम सजी तन तीजणियां।
मनरंजण बाग बही मतवाल़िय,
राग सुरीलिय रीझणियां।
हर पूरण भाम जची हद हींडण,
गात रसीलिय सार गही।
सुरराज करी गजराज सवारिय,
मौज वरीसण आज मही।
जियै,मौज समापण राज मही।।9
हरियाल़िय खेत हुई मनहारण,
बेख खुसी धर बादरियां।
बग जाय अकास करेवाय बंतल़,
वाद चढी धिन बाजरियां।
लहराय रही फसलां चित लोभत,
सोभत सुंदर नाज सही।
सुरराज करी गजराज सवारिय,
मौज वरीसण आज मही।
जियै,मौज समापण राज मही।।10
चित चैन हुवो सबरै मन चायक
बात सुलायक ऐम बणी।
सुखदायक होय सहायक सांप्रत,
धाम सुधायक भोम धणी।
गुण 'गीध' गहीर प्रफुल्लत गायक,
कत्थ कवेसर मांड कही।
सुरराज करी गजराज सवारिय,
मौज वरीसण आज मही।
जियै,मौज समापण राज मही।।11
गिरधरदान रतनू दासोड़ी।

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