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रविवार, 17 सितंबर 2017

राजपूती दोहे ( - ठा फ़तह सिंह जसौल)

राजपूती दोहे

( - ठा फ़तह सिंह जसौल)

•» ” दो दो मेला नित भरे, पूजे दो दो थोर॥
सर कटियो जिण थोर पर, धड जुझ्यो जिण थोर॥ ”

मतलब :-

•» एक राजपूत की समाधी पे दो दो जगह मेले लगते है,
पहला जहाँ उसका सर कटा था और दूसरा जहाँ उसका धड लड़ते हुए गिरा था….

वसुन्धरा वीरा रि वधु , वीर तीको ही बिन्द |
रण खेती राजपूत रि , वीर न भूले बाल ||

अथार्थ
धरती वीरों की वधु होती है और युद्ध क्षत्रिय का व्यवसाय |

राजा वह था नहीं , एक साधारण सा राजपूत था !
राजाओं के मस्तक झुक जाते थे , ऐसा वो सपूत था !

दारु मीठी दाख री, सूरां मीठी शिकार।
सेजां मीठी कामिणी, तो रण मीठी तलवार।।

बिण ढाला बांको लड़े,
सुणी ज घर-घर वाह |
सिर भेज्यौ धण साथ में,
निरखण हाथां नांह ||९७||

युद्ध में वीर बिना ढाल के ही लड़ रहा है | जिसकी घर-घर में प्रशंसा हो रही है | वीर की पत्नी ने युद्ध…
में अपने पति के हाथ (पराक्रम) देखने के लिए अपना सिर साथ भेज दिया है |(उदहारण-हाड़ी रानी )|

मूंजी इण धर मोकला,
दानी अण घण तोल |
अरियां धर देवै नहीं,
सिर देवै बिन मोल ||९८||

इस धरा में ऐसे कंजूस बहुत है जो दुश्मन को अपनी धरती किसी कीमत पर नहीं देते व ऐसे दानी भी अनगिनत है जो बिना किसी प्रतिकार के अपना मस्तक युद्ध-क्षेत्र में दान दे देते है |

तलवार से कडके बिजली,
लहु से लाल हो धरती,
प्रभु ऐसा वर दो मोहि,
विजय मिले या वीरगति ॥

मंजूर घास की रोटी है घर चाहे नदी पहाड़ रहे…अंतिम साँस तक चाहूँगा स्वाधीन मेरा मेवाड़ रहे.
.महाराणा प्रताप

“हम मृतयु वरन करने वाले जबजब हथियार उठाते हैं
तब पानी से नहीं शोनीत से अपनी प्यास बुझाते हैं
हम राजपूत वीरो का जब सोया अभिमान जIगता हैं
तब महाकाल भी चरणों पे प्राणों की भीख मांगता ह..

वो कौमे खुशनसीब होती है; जिनका इतिहास होता है!
वो कौमे बदनसीब होती है; जिनका इतिहास नहीं होता है!
और वो कौमे सबसे ज्यादा बदनसीब होती है; जिनका इतिहास भी होता है लेकिन वो इतिहास से सबक नहीं लेती”

जो क्षति से समाज की रक्षा करे वो ही सच्चा क्षत्रिय है ।  राजपूतों को बार-बार इतिहास की याद दिलाते रहना चाहिए जिससे देश धर्म एवं स्वाभिमान बचा रहे

शनिवार, 16 सितंबर 2017

भूलग्या

भूलग्या
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कंप्यूटर रो आयो जमानो कलम चलाणीं भूलग्या।
मोबाईल में नंबर रेग्या लोग ठिकाणां भूलग्या।

धोती पगडी पाग भूलग्या मूंछ्यां ऊपर ताव भूलग्या।
शहर आयकर गांव भूलग्या बडेरां रा नांव भूलग्या ।

हेलो केवे हाथ मिलावे रामासामा भूलग्या।
गधा राग में गावणं लाग्या सा रे गा मा भूलग्या ।

बोतल ल्याणीं याद रेयगी दाणां ल्याणां भूलग्या ।
होटलां रो चस्को लाग्यो घर रा खाणां भूलग्या ।

*बे टिचकारा भूलगी ऐ खंखारा भूलग्या ।*
*लुगायां पर रोब जमाणां मरद बिचारा भूलग्या ।*

जवानी रा जोश मांयनें बुढापा नें भूलग्या ।
*हम दो हमारे दो मा बापां ने भूलग्या ।*

संस्क्रति नें भूलग्या खुद री भाषा भूलग्या ।
लोकगीतां री रागां भूल्या खेल तमाशा भूलग्या ।

घर आयां ने करे वेलकम खम्मा खम्मा भूलग्या ।
भजन मंडल्यां भाडा की जागण जम्मा भूलग्या ।

बिना मतलब बात करे नीं रिश्ता नाता भूलग्या ।
गाय बेचकर गंडक ल्यावे खुद री जातां भूलग्या ।

कांण कायदा भूलग्या लाज शरम नें भूलग्या ।
खाणं पांण पेराणं भूलग्या नेम धरम नें भूलग्या ।

घर री खेती भूलग्या घर रा धीणां भूलग्या ।
नुवां नुंवां शौक पालकर सुख सुं जीणां भूलग्या ।

मंगलवार, 12 सितंबर 2017

Confidence of a Rajasthani

Confidence of a Rajasthani.

राजस्थान के कुछ लोगों   की मीटिंग हुई।
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मुद्दा था स्वतंत्रता संग्राम !!
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समस्या ये थी कि राजस्थान  को भारत से आज़ाद कैसे कराया जाए ।
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1 राजस्थानी  : आज़ाद कराणा कुणसा,
  मुसकिल काम हैं ?

पर हम राजस्थान  का विकास कियां कराला?
सोचबां आली बात आ हैं?
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2राजस्थानी: एक काम करां आपां तो,आपां सगळां जणा  मिलर अमरीका पर हमला कर देवांला!!
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3 राजस्थानी: हां रे भाया ?

अमरीका पर हमलो
करबां सूं काईं होवेलो ??
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: रै भाई  !! जियाँ ही आपां  हमलो कराला,
अमरिका आपां ने  हरा दे लो।
और आपणा राज्य पर कब्ज़ा कर ले लो?

फ़ेर कायदा सूं आपां लोग अमरिका का ही नागरिक बण जावेला।
बो   खुदको विकास तो  करतो ही रहवे है.. !!
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.आपणो भी सागे-सागे हो जावेलो?

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4 राजस्थानी :वाह भाया
फ़ेर तो न  वीजा न पासपोर्ट !

आपणा सब रुपैया डालर बण जावेला।
छोरा अंग्रेजी बोलेला।

खुणा में बेठो नाथयो  चुपचाप हो? "

हां रे!!--- नाथया तु काईं नी बोले रे?"
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नाथयो : "रै! भाया  मै यूं सोचू  सू कि,

हमला में जो गलती सूं आपां  जीतग्या तो अमरिका को काईं होवेलो?"

जोधपुर माते भरोसो

*सोनू सोनू थने जोधपुर माते भरोसो कुनि कई ?*

*मिश्रीमल री लस्सी है माखनिया, मिल ने पिवे सखी - साथणीया ।*
*लषन रो कोफ़्तों है गोल गो ल, जालोरी गेट तू मारे सुं मिठो बोल ।।*

*सूर्या रो मिर्चीबड़ो है तीखो, चतुर्भुज रो मावो है फीको ।*
*राम रो डोसो है गोल गोल, नावचोकीये री हथाई में तू* *मीठो बोल ।।*

*त्रिपोलिया री भीड़ है तगड़ी, जोधपुर री शान है पगड़ी*
*चतुर्भुज रो गुलाब जामुन है गोल गोल, टुरिया तू मारे सुं* *मीठो बोल ।।*

*शास्त्री नगर रा घर है मोटा , जोधपुर रा ट्राफिक है खोटा*
*भवानी रा दाल बाटा है गोल गोल , आशाराम बापू तू मारे* *सुं मीठो बोल*

*जोधपुर रो किलो है उँचों, रजवाड़ों री तगड़ी है मूंछों*
*नैवेद्यम रो चक्कर बड़ो है गोल गोल, शानदार तू मारे सुं* *मीठो बोल*

*सोनू थने जोधपुर माते भरोसो कुनि कई **

गल़ी -गल़ी गल़गल़ी क्यूं छै!-

गल़ी -गल़ी गल़गल़ी क्यूं छै!-

गिरधरदान रतनू दासोड़ी

आ गल़ी -गल़ी गल़गल़ी क्यूं छै!
तीसरी पीढी खल़ी क्यूं छै!!

ऊपर  सूं शालीन  उणियारो!
लागर्यो हर मिनख छल़ी क्यूं छै!!

काल तक गल़बाथियां बैती।
वे टोलियां आज टल़ी क्यूं छै!!
रीस ही आ रूंखड़ां माथै!
तो मसल़ीजगी जद कल़ी क्यूं छै!!

नीं देवणो सहारो तो छौ!
पण तोड़दी आ नल़ी क्यूं छै!!

काम  काढणो तो निजोरो छै!
कढ्यां उर आपरै  आ सिल़ी क्यूं छै!!

धरम री ओट में  आ खोट पसरी!
धूरतां री जमातां इम पल़ी क्यूं छै!!

बाढणा पींपल़ अर नींबड़ां नै!
तो बांबल़ां री झंगी आ फल़ी क्यूं छै!!

कदै आ आप सोचोला !कै
भांग यूं कुए में भिल़ी क्यूं छै!!

मंगलवार, 5 सितंबर 2017

प्रीतम घरां पधार ....

प्रीतम घरां पधार ....

Ratan singh champawat:

चटक चंचला चाँदनी  धवल रूप रस धार
कंत उडीकै कामणी   प्रीतम घरां पधार

कंचन वरणी कामिनी   रो़य रोय रतनार
विरह रोग विपदा विविध  प्रीतम घरां पधार

सेजां नीं है सायबो   सूनो सब सँसार
आप बिना हूँ अेकली  प्रीतम घरां पधार

जड़ चेतन जंगम जबर.  जीवा जूण जुग सार
सायब बिन सूना सकल   प्रीतम घरां पधार

आप तणों अवलम्ब है   आतम रूप आधार
निज रूप निराकार व्है   प्रीतम घरां  पधार

प्रीतम प्रीत प्रभाव प्रण   प्रीत प्रबल प्रहार
प्रीत रीत पहचान पुनि   प्रीतम घरां  पधार

दैवरूप दुनियांण दर   दरस देय दातार
प्रीत पुरातन पाळ पण.  प्रीतम घरां पधार

अवल अलख आराधना  अमित अनंत अपार
आखर आखर अवतरों   प्रीतम आप पधार

©®@ रतन सिंह चाँपावत रणसी गांव कृत

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