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शुक्रवार, 4 अगस्त 2017

अरजी

अरजी

आमर उलट्यो आज बादला बरसे है बेथाग धरा पे पाणी नई मावे
देखो बरस्यो ओ दिन रात बिगड़ी सारी बात राज काई कर पावे

चढ़ी घटा चहुँ और सिरोही अर जालोर डुबिया पानी रे माहि
मरे है डांगर ढोर जिनावर तड़फ च्यारूं और जोर चालतो नाही

बूढ़ा टाबर अर जवान किया बचावे जान सोच यो मन में है भारी
बैरन बणगी काली रात कद होसी प्रभात आगता होगा नर नारी

परले होवे जाणक आज सांवरा तू ही राखे लाज बचायो ब्रज ने गिरधारी
अब तो तू ही कर साय दुसरो दिखे म्हाने नाय आज आजा बनवारी

देखो पथमेड़ा रे माय डूबन लागी गाय हाल बेहाल हुयो भारी
टुट्या सरवर अर तलाब बचादे म्हारी तू आब बिनती आ ही है म्हारी

विनती करूँ छू कर जोड़ आजा बेगो मोहन दौड़ नहीं भगता रे ताणी
एकर बरखा ने तू ढाब क्यूँ करे फसल ख़राब होवे घण हाणी
राजावत श्रवण सी कृत

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