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शुक्रवार, 26 अगस्त 2016

नीं मिल़िया चार मिनख!!

नीं मिल़िया चार मिनख!!

गिरधरदान रतनू दासोड़ी
इतरै लंबै -चौड़ै
भारत में
किलबिलता
घणा ई दीसै
फगत कैवण रा मिनख!!
जिणां रै नीं नैण!
नीं कोई सैण!
नीं दिल नीं दरद!
फगत माटी रा पुतला है!
जिणां रै किसो धरम?
किसो करम?
पछै कठै मरम
अर कैड़ी शरम?
ऐ तो खुद ई वेदना है!
पछै संवेदना कठै सूं उपजेला?
कांई आप मानो हो!
कै कदै ई भाठां रै ई
होवै काल़जा!
जिकै पिघलता होवैला
पारखी पीड़ माथै!
म्है नीं सुणिया
नीं दीठा
कदै ई भाठां नै पसीजता!
किणी री कल़़पती काया
अर झरती आंख्यां माथै!!
कांई आप अजै ई मानो !
कै  मिनख जीवता है
अर उणां में कठै ई
कुणै में लुकियोड़ी
बैठी होसी मानवता!!
नीं आवै पतियारो!
आपरै मूंडै अबार ई
सुणी इण खबर पछै
कै एक भारत रो आद-अनादिवासी
आपरी जोड़ायत री मृत देह
घाल कांधै बुवो एकलो
कोसां दर कोसा!
फगत इणी आस में
कै कठै ई तो मिलेला चार मिनख!
जिणां में बसतो होवैला राम!
वै तो हालेला
म्हारै साथै मरघट तक
म्हारी सायधण नैं
मजलां पुगावण!
पण अड़थड़थै
किलबिलतै
इण रॉबेटां में
नीं मिलियो कोई मिनख
जिको एक मृत देह नै उखण
मुट्ठी लकड़ी
देवण नै हालतो समसाण तक।
कांई आप अजै ई मानो?
कै भारत मिनखां सूं
रातो -मातो देश है!!
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

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