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रविवार, 17 जुलाई 2016

ऐड़ी एक किंवदंती है ऊमरकोट रै सोढै कल्याणसिंह री।

सोढै ऊमरकोट रै,सिर पड़ियां बाहीह!गिरधरदान रतनू दासोड़ी
किणी राजस्थानी कवि रो ओ दूहो कितरो सतोलो है कै-
हीरा नह निपजै अठै,नह मोती निपजंत।
सिर पड़ियां खग सामणा,इण धरती उपजंत।।
इणी गत री बात एकर मध्यकाल़ में मुगल दरबार में ई चाली कै रजवट रा रुखाल़ा राजपूत रणांगण में सिर कटियां ई तरवार बावता रैवै ।आ बात सुणण वाल़ै नै अवस अपरोगी लागै पण इतियास अर किंवदंतियां में ऐड़ा आख्यान भरिया पड़िया है।ऐड़ी एक किंवदंती है ऊमरकोट रै सोढै कल्याणसिंह री।
कल्याणसिंह, ऊमरकोट रै राणै ऱो छोटो भाई। अमल रो मोटो बंधाणी।
काम फगत ओ कै आमद रो हिंसाब राखणो अर पूछणो।नित रो सेर मावो।कई दिन तो धाको धिकियो पण एक दिन खंचाची राणैजी नैं कैयो कै आपरो भाई राज नैं मोटो घाटो है।कमावै कीं नीं अर खावै नितरो सेर अमल!राणै,आपरै भाई नैं हाथ जोड़ दिया।कल्याणसिंह, ऊमरकोट छोड दियो।कई रजवाड़ां में घूमियो पण घणा दिन कठै ई पार नीं पड़ी।घूमतो- घूमतो दिल्ली पूगियो।दिल्ली में उण दिनां पचास वाघेलै राजपूतां रा घर।इणां रो सिरदार वाघो वाघेलो।उणनैं ठाह पड़ियो कै एक ऊमरकोट रो सोढो कल्याणसिंह अमल रै घाटै मारियो ठेठ धाट सूं दिल्ली आयग्यो,पण इतै मोटै बंधाणी नैं आपरै गल़ै कुण घातै!उण आपरै भाईयां नैं भेल़ा किया अर पूछियो कै
" आप हां भरो तो एक जोगै राजपूत नैं राखूं?पण बो अमल रो मोटो बंधाणी!थित रो सेर मावो!आप बारी-बारी सूं एक दिन रो खर्च पूरण री हां भरो तो हूं इणनैं राखूं?"भाईयां कैयो राखो !आपांनैं ऐड़ो अजरेल आदमी चाहीजै जिको अबखी पड़ियां आपांरी आण राखै।कल्याणसिंह ,वाघेलां रै रैयो।जोग सूं एक दिन मुगल दरबार में आ बात चाली कै मुसलमानां सूं हिंदू सिरै!ऐ माथो कटियां ई हेठा नीं पड़ै अपितु खाग बजावता रैवै अर उण जोधै री जोड़ायत उणरी वीरगति पछै उणरै साथै काठ चढै।बात बंतल़ सूं वाद में पड़गी।आखिर तय होयो कै बीड़ो फेरियो जावै कै आज ई ऐड़ो कोई हिंदू है कांई जिको सिर पड़ियां जूझै अर जोड़ायत सत करै।बीड़ो किणी नीं झालियो ।फिरतो -फिरतो वाघेलां रै वास आयो पण वाघेलां सूं ई हिम्मत नीं होई ।उणां ई हाथ पाधरा कर दिया ।वाघै वाघेलै कैयो कै म्हां सूं पार नीं पड़ै ।उठै बैठै कल्याणसिंह हाथ मसल़ निसासो भरियो।कल्याणसिंह नै निसासो भरतां देख ,वाघै पूछियो कै      " सोढा राण कांई दुख सूं निसासो भरो!" "सोढै कैयो ठाकरां बीड़ो राजपूतां रै अठै सूं पाछो जावै !अर सेर सूत बांधणिया आपां अजै जीवतां हां आ देखर निसासो भरियो है हुकम।" "भुजां माथै इतो भरोसो है तो झालो क्यूं नीं बीड़ो!"वाघै कैयो।सोढै कैयो कै बीड़ो झालणो तो म्हारै आंख वाल़ो फूस.है हुकम पण कंवारो हूं सो लारै सत कुण करै?"ऐ बातां वाघै री बेटी, जिणरी ऊमर फगत 13-14 वर्ष ही सुणै ही उण आपरी डावड़ी नैं मेल बाप नै कैवायो कै म्हारो हाथ सोढै रै हाथ में दिरावो जे सोढो बीड़ो झालै तो हूं लारै काठ चढूंली।वाघै आपरी बेटी साठ साल रै सोढै नैं परणाय दी।एक दिन सोढो रंग रल़ी में रीझियो रैयो पण दूजै दिन वाघेली कैयो "हुकम बीड़ो झालियो उणरी त्यारी करावो। सास रो कोई विश्वास नीं ।सास वटाऊ पावणो,आवण होय न होय।"सोढो मुगल दरबार में पूगियो।सोढो रो मुकाबलो एकै साथै पचास इक्कां सूं होयो।तरवारां री चौकड़ी पड़ी।घणां रा घणां वार।जोग सूं सोढै रो सिर कटियो।सिर कटतां ई देह चौगणै बेग सूं अरियां रो घाण करण लागी।च्यारां कानी हैकंप मचग्यो।छेवट किणीगत देह शांत होई।लारै राजपूताणी आपरो वचन पूरो कियो।सोढै कल्याणसिंह री अदम्य वीरता रो ओ दूहो आज ई साखीधर है-
सोढै ऊमरकोट रै,सिर कटियां बाहीह।
जांणै आध वंटावियो, भिड़ दोनूं भाईह।।(ऊमरकोट रै सोढै सिर कटियां पछै इणगत तरवार बाही जिणसूं अरियां री देहां बीचै सूं इणगत कटी जाणै दो भाईयां आपरो आधो -आधो बंट कियो होवै।)
इण किंवदंती रै आधार माथै आधुनिक डिंगल़ कवि सुखदानजी मूल़ा ई कीं दूहा लिखिया।सोढै री वरेण्य वीरता विषयक ऐ लिखै-
देखै देवी देवता,सिव सनकादिक सत्थ।
सोढै रो झगड़ो सुण्यो,रवि ठांभियो रत्थ।।
वाघैली रै साहस ,सत अर कर्तव्यबोध नैं इंगित करतां ऐ लिखै -
परसंग रु बातां पड़ी,कड़ी वाघैली कान।
सोढै संग चंवरी चड़ी,अड़ी,घड़ी,खड़ी आन।।
सोढै रै संग में खड़ी,जुद्ध घड़ी जड़ी जान।
प्रीतम रै पासै लड़ी,मरण घड़ी बडी मान।।
(ऐतिहासिक ग्रंथां में तो आ बात पढण में नीं आई पण मौखिक बात परंपरा में आ बात घणी चावी है)

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