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शनिवार, 30 जुलाई 2016

अब्दुल कलाम रा मरसिया ....

अब्दुल कलाम रा मरसिया ....

अब्दुल तोड़ी आज दीवारां इण देह री
पूरी कर परवाज. पद परमहंस पावियो

अब्दुल पूगौ आप  अमरापुर रे आँगणे
शोक घणौ संताप नयण नीर मावै नहीं

अब्दुल पूरी आस कथनी करणी एक कर
खुदाबन्द वो खास भगत बड़ौ भगवान रो

अब्दुल तूं आधार भांण भळकतौ भारती
अगनी रौ अवतार साधक सांचो सूरमो

अब्दुल नहीं अनाम. इतिहासां रहसी अमर
कीरत वाळा काम कायम करगौ कोड सूं

अब्दुल वाळी आंण अवरां ने आंणी नहीं
जीवत जुगां प्रमाण भूलै किण विध भारती

रतनसिहं चाँपावत कृत

रविवार, 17 जुलाई 2016

ऐड़ी एक किंवदंती है ऊमरकोट रै सोढै कल्याणसिंह री।

सोढै ऊमरकोट रै,सिर पड़ियां बाहीह!गिरधरदान रतनू दासोड़ी
किणी राजस्थानी कवि रो ओ दूहो कितरो सतोलो है कै-
हीरा नह निपजै अठै,नह मोती निपजंत।
सिर पड़ियां खग सामणा,इण धरती उपजंत।।
इणी गत री बात एकर मध्यकाल़ में मुगल दरबार में ई चाली कै रजवट रा रुखाल़ा राजपूत रणांगण में सिर कटियां ई तरवार बावता रैवै ।आ बात सुणण वाल़ै नै अवस अपरोगी लागै पण इतियास अर किंवदंतियां में ऐड़ा आख्यान भरिया पड़िया है।ऐड़ी एक किंवदंती है ऊमरकोट रै सोढै कल्याणसिंह री।
कल्याणसिंह, ऊमरकोट रै राणै ऱो छोटो भाई। अमल रो मोटो बंधाणी।
काम फगत ओ कै आमद रो हिंसाब राखणो अर पूछणो।नित रो सेर मावो।कई दिन तो धाको धिकियो पण एक दिन खंचाची राणैजी नैं कैयो कै आपरो भाई राज नैं मोटो घाटो है।कमावै कीं नीं अर खावै नितरो सेर अमल!राणै,आपरै भाई नैं हाथ जोड़ दिया।कल्याणसिंह, ऊमरकोट छोड दियो।कई रजवाड़ां में घूमियो पण घणा दिन कठै ई पार नीं पड़ी।घूमतो- घूमतो दिल्ली पूगियो।दिल्ली में उण दिनां पचास वाघेलै राजपूतां रा घर।इणां रो सिरदार वाघो वाघेलो।उणनैं ठाह पड़ियो कै एक ऊमरकोट रो सोढो कल्याणसिंह अमल रै घाटै मारियो ठेठ धाट सूं दिल्ली आयग्यो,पण इतै मोटै बंधाणी नैं आपरै गल़ै कुण घातै!उण आपरै भाईयां नैं भेल़ा किया अर पूछियो कै
" आप हां भरो तो एक जोगै राजपूत नैं राखूं?पण बो अमल रो मोटो बंधाणी!थित रो सेर मावो!आप बारी-बारी सूं एक दिन रो खर्च पूरण री हां भरो तो हूं इणनैं राखूं?"भाईयां कैयो राखो !आपांनैं ऐड़ो अजरेल आदमी चाहीजै जिको अबखी पड़ियां आपांरी आण राखै।कल्याणसिंह ,वाघेलां रै रैयो।जोग सूं एक दिन मुगल दरबार में आ बात चाली कै मुसलमानां सूं हिंदू सिरै!ऐ माथो कटियां ई हेठा नीं पड़ै अपितु खाग बजावता रैवै अर उण जोधै री जोड़ायत उणरी वीरगति पछै उणरै साथै काठ चढै।बात बंतल़ सूं वाद में पड़गी।आखिर तय होयो कै बीड़ो फेरियो जावै कै आज ई ऐड़ो कोई हिंदू है कांई जिको सिर पड़ियां जूझै अर जोड़ायत सत करै।बीड़ो किणी नीं झालियो ।फिरतो -फिरतो वाघेलां रै वास आयो पण वाघेलां सूं ई हिम्मत नीं होई ।उणां ई हाथ पाधरा कर दिया ।वाघै वाघेलै कैयो कै म्हां सूं पार नीं पड़ै ।उठै बैठै कल्याणसिंह हाथ मसल़ निसासो भरियो।कल्याणसिंह नै निसासो भरतां देख ,वाघै पूछियो कै      " सोढा राण कांई दुख सूं निसासो भरो!" "सोढै कैयो ठाकरां बीड़ो राजपूतां रै अठै सूं पाछो जावै !अर सेर सूत बांधणिया आपां अजै जीवतां हां आ देखर निसासो भरियो है हुकम।" "भुजां माथै इतो भरोसो है तो झालो क्यूं नीं बीड़ो!"वाघै कैयो।सोढै कैयो कै बीड़ो झालणो तो म्हारै आंख वाल़ो फूस.है हुकम पण कंवारो हूं सो लारै सत कुण करै?"ऐ बातां वाघै री बेटी, जिणरी ऊमर फगत 13-14 वर्ष ही सुणै ही उण आपरी डावड़ी नैं मेल बाप नै कैवायो कै म्हारो हाथ सोढै रै हाथ में दिरावो जे सोढो बीड़ो झालै तो हूं लारै काठ चढूंली।वाघै आपरी बेटी साठ साल रै सोढै नैं परणाय दी।एक दिन सोढो रंग रल़ी में रीझियो रैयो पण दूजै दिन वाघेली कैयो "हुकम बीड़ो झालियो उणरी त्यारी करावो। सास रो कोई विश्वास नीं ।सास वटाऊ पावणो,आवण होय न होय।"सोढो मुगल दरबार में पूगियो।सोढो रो मुकाबलो एकै साथै पचास इक्कां सूं होयो।तरवारां री चौकड़ी पड़ी।घणां रा घणां वार।जोग सूं सोढै रो सिर कटियो।सिर कटतां ई देह चौगणै बेग सूं अरियां रो घाण करण लागी।च्यारां कानी हैकंप मचग्यो।छेवट किणीगत देह शांत होई।लारै राजपूताणी आपरो वचन पूरो कियो।सोढै कल्याणसिंह री अदम्य वीरता रो ओ दूहो आज ई साखीधर है-
सोढै ऊमरकोट रै,सिर कटियां बाहीह।
जांणै आध वंटावियो, भिड़ दोनूं भाईह।।(ऊमरकोट रै सोढै सिर कटियां पछै इणगत तरवार बाही जिणसूं अरियां री देहां बीचै सूं इणगत कटी जाणै दो भाईयां आपरो आधो -आधो बंट कियो होवै।)
इण किंवदंती रै आधार माथै आधुनिक डिंगल़ कवि सुखदानजी मूल़ा ई कीं दूहा लिखिया।सोढै री वरेण्य वीरता विषयक ऐ लिखै-
देखै देवी देवता,सिव सनकादिक सत्थ।
सोढै रो झगड़ो सुण्यो,रवि ठांभियो रत्थ।।
वाघैली रै साहस ,सत अर कर्तव्यबोध नैं इंगित करतां ऐ लिखै -
परसंग रु बातां पड़ी,कड़ी वाघैली कान।
सोढै संग चंवरी चड़ी,अड़ी,घड़ी,खड़ी आन।।
सोढै रै संग में खड़ी,जुद्ध घड़ी जड़ी जान।
प्रीतम रै पासै लड़ी,मरण घड़ी बडी मान।।
(ऐतिहासिक ग्रंथां में तो आ बात पढण में नीं आई पण मौखिक बात परंपरा में आ बात घणी चावी है)

शनिवार, 9 जुलाई 2016

माण मिटाणा मीत-गिरधरदान रतनू दासोड़ी

माण मिटाणा मीत-गिरधरदान रतनू दासोड़ी
बाजै देखो वायरो,
लाज उडावण लीक।
रलकीज्या ऐ रेत में,
ठाठ वडां रा ठीक।।1
मरट वडां रो मेटियो,
समै किया इकसार।
भरम अबै तो भायलां,
लेस न रैयो लिगार।।2
कठै गयो वो कायदो,
कठै गई वा काण।
फट्ट मिल़ै कीं फायदो,
वीरां!पड़गी बाण।।3
पैठ मेट परिवार री,
मोद करै मन मूढ।
डरता देखो डांगबल़
गैला बणग्या गूढ।।4
वडा -वडा के विटल़गा,
छती लाज जग छोड।
अधुनातन री आड़ में,
हिंया फूट सूं होड।।5
पह दिया मर पूरजां,
राखण कुल़वट रीत।
गेह जनमिया गादड़ा,
मांण मिटाणा मीत।।6
घर रो कुरब घटावियो,
वडकां जस नैं बोड़।
मगर-अगर में मोथिया,
डगर उंधोड़ी दौड़।।7
लेस लगै न लाभरी,
वडकां वाल़ी वाट।
बैठै जिथ करणा विटल़,
कुटल़ा वद वद काट।।8
विलल़ां सदन विगाड़ियो,
कर कर कोजा काम।
निरभै राम निकाल़ियो,
हित चित दियो हराम।।9
प्रीत नहीं मन पांगरै,
रखै नहीं घर रीत।
अंजसजोग अतीत रै,
चूंची दे बुरचीत।।10
स्वाभिमान नैं सिटल़ ऐ,
गिणै न आज गहीर।
लाज छोड लिपल़ापणै,
बोतां कियो वहीर।11
शंको रैयो न शर्म तिल,
रही न रीत रिवाज।
जात रसातल़ जाय री,
नेही किण पर नाज।।12
किसो 'चार' चालै कहो,
किसी घमँड री कत्थ।
गल सब छोड गुमेज री,
परी गमाई पत्त।।13
वाटां ऊंधी बह रह्या,
अधुनातन री ओट।
पटकै चवड़ै पापिया ,
खरी कमाई खोट।।14
सिटल़ै कामां सज्जना!
पिटै जात में प्रीत।
घटै काण घरवट तणी,
फल़ नित मिल़ै फजीत।।15
सधरो नहीं समाज नैं,
रेटो नितप्रत रीत।
पह मिल़सी सत पीढियां,
फोड़ा अनै फजीत।।16
सग्गा मन सोझो नहीं,
धन सग्गा सब धार।
जोवो इणविध जातरो,
सो किम होय सुधार।।17
रुपियां सूं रीझ्या रहै,
भूल न देखै भाव।
मन मोल़ै रा मानवी,
तन नैं मानै ताव।।18
कहो आज सँगठण किसो,
सबल़ कूणसो संघ।
कूण सधर अगवाण में,
भिल़ी कुवै में भंग।।19
गिनर गैलै री गांम नीं,
गिणै न गैलो गांम।
वडपण धार बतावजो,
कीकर सुधरै कांम।।20
चढ आसण झाड़ै चतुर,
भासण सखरा भास।
जदै मिल़ां घर जायनैं,
नेही करै निरास।।21
सूधी गाय समाज ओ,
गिण नेता लगडेल।
बातां सूं बुचकारनै,
झाड़ दूयलै झेल।।22
कितरी बधी कुरीतियां,
लिखण न आवै लेख।
कूण गमावै सच कहो?,
पांय कुत्ते री पेख!।।23
डोल़ा काढै देखलो,
रिदै बसै नीं राम।
बुरीगार बदनीत सूं,
कुटल़ विगाड़ै काम।।24
गल़ै मांय गेडी फसा,
बूझै सुखरी बात।
ज्यांनैं दुनिया जोयलो,
हरदम जोड़ै हाथ।।25
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

शुक्रवार, 8 जुलाई 2016

सीए

लड़के के पिता लड़की
देखने गए
लडकी के पिता से कहा
लड़की क्या करती है ?
पिता ने कहा : सीए है ।
भाई क्या करते हैं ?
सीए है ।
मम्मी क्या करती है ?
सीए है ।
आप भी ???
हाँ साब ।।।
पिता बहुत खुश
आपका आफिस कहां है?
सब काम घर पर ही होवे...
मैं कटिंग करू ने ई सब
घाघरा ब्लाउज सीए है ।
।।।।

गुरुवार, 7 जुलाई 2016

सुरराज करी गजराज सवारिय-गिरधरदान रतनू दासोड़ी


   दूहो
आज करी थल़ ऊपरै,
गज चढ गाज गहीर।
राज सुरांपत रीझियो,
भुई सज आयो भीर।।
    छंद -रोमकंद
उमड़ी उतराद अटारिय ऊपड़,
कांठल़ सांम वणाव कियो।
चित प्रीत पियारिय धारिय चातर,
आतर जोबन भाव अयो।
वसुधा धिनकारिय आघ बधारिय,
वा बल़िहारिय बात बही।
सुरराज करी गजराज सवारिय,
मौज वरीसण आज मही।।
जियै ,मौज समापण राज मही।।1
धड़ड़ै धड़ड़ै धर ऊपर धाहुड़,
गाढ करै गड़ड़ै गड़ड़ै।
अड़ड़ै अड़ड़ै द्रब नीर सु आपण,
हेर हँसी इल़ यूं हड़ड़ै।
कड़ड़ै कड़ड़ै चमकी चपल़ा कर,
साच विजोगण दाह सही।
सुरराज करी गजराज सवारिय,
मौज वरीसण आज मही।
जियै,मौज समापण राज मही।।2
मन चाव अहो मघवान मरूधर,
कोड उपाव उछाव कियो।
पड़ बीज पल़ाव पल़ापल़ पाधर,
देव उमाव सुदाव दियो।
सुध नीर भराव तल़ाव- सरोवर
थाट वल़ोवल़ हाट थही।
सुरराज करी गजराज सवारिय,
मौज वरीसण आज मही।
जियै, मौज समापण राज मही।।3
हल़ जोतण  खेत सुहेत हल़ध्धर,
बीजरु जूंगरु लेय बुवा।
मनभावण सूण मनाविय मोदर,
हाम सपूरण त्यार हुवा।
भतवारण प्रीत धरी उर भारिय,
लोभ सु खारिय सीस लही।
सुरराज करी गजराज सवारिय,
मौज वरीसण आज मही।
जियै,मौज समापण राज मही।।4
धव आवण सूं धरिया धरती धिन,
हेर सुअंबर ऐ हरिया।
करिया मन कोड कितायक कामण,
पेख सँताप हुवा परिया।
सरिया सब काज सताबिय सामण,
भामण भोम निहाल भही।
सुरराज करी गजराज सवारिय,
मौज वरीसण आज मही।
जियै,मौज समापण राज मही।।5
खल़कै जल़ खाल़ सुगाढ खतावल़,
अंग नदी हद ऊफणियै।
तणियै दरियाव दिसी कर ताकड़,
वाम सुहागण यूं बणियै।
भणियै भरतार तणो सुख भावण,
लोयण जोबन लोम लही।
सुरराज करी गजराज सवारिय,
मौज वरीसण आज मही।
जियै,मौज समापण राज मही।।6
पह धूड़ रुकी उडती थल़ पाधर,
पात तरव्वर पांगरिया।
पद मोर नचै सुण घोर पुरंदर,
सांम सबै सुख सांभरिया।
किरपाल़ दटावण काल़ कराल़ नुं,
मेटण ग्रीखम ताप मही।
सुरराज करी गजराज सवारिय,
मौज वरीसण आज मही।
जियै,मौज समापण राज मही।।7
मधरी मधरी सुण टेर सुमोहक,
बाल़ ग्वाल़ रि बांसुरिया।
सुरभी दल़ टोकर साद सुहावण,
ऐवड़ जंगल़ ऊछरिया।
चरिया वन लील सबै जद चौपग,
रीझ अबै वनराय रही।
सुरराज करी गजराज सवारिय,
मौज वरीसण आज मही।
जियै,मौज समापण राज मही।।8
सज रूप ललाम सलाम सहेलिय,
ताम सजी तन तीजणियां।
मनरंजण बाग बही मतवाल़िय,
राग सुरीलिय रीझणियां।
हर पूरण भाम जची हद हींडण,
गात रसीलिय सार गही।
सुरराज करी गजराज सवारिय,
मौज वरीसण आज मही।
जियै,मौज समापण राज मही।।9
हरियाल़िय खेत हुई मनहारण,
बेख खुसी धर बादरियां।
बग जाय अकास करेवाय बंतल़,
वाद चढी धिन बाजरियां।
लहराय रही फसलां चित लोभत,
सोभत सुंदर नाज सही।
सुरराज करी गजराज सवारिय,
मौज वरीसण आज मही।
जियै,मौज समापण राज मही।।10
चित चैन हुवो सबरै मन चायक
बात सुलायक ऐम बणी।
सुखदायक होय सहायक सांप्रत,
धाम सुधायक भोम धणी।
गुण 'गीध' गहीर प्रफुल्लत गायक,
कत्थ कवेसर मांड कही।
सुरराज करी गजराज सवारिय,
मौज वरीसण आज मही।
जियै,मौज समापण राज मही।।11
गिरधरदान रतनू दासोड़ी।

मंगलवार, 5 जुलाई 2016

हर काम उन्दो वेईरो

हर काम उन्दो वेईरो

पेली माँ बाप आँख्या काढ़ता,
अबे छोरा छोरी आँख्या काडिरा ।

पेली मास्टर स्कूला में दरपावता,
अबे छोरा वणाने दरपाईरा ।

पेली ईमानदारा री चालती,
अबे बेईमाना री चालिरी ।

पेली छोर्या पूरा गाबा पेरती,
अबे ओगड़ बाबा वणीन फरिरी ।

पेली भणाई बोझ ढोवती,
अबे छोरा भणाई रो बोझ ढोईरा ।

पेली नोर्मल डिलेवरी वेवती,
अबे पेट फाड़िन काड़िरा ।

पेली टाबरा ने हाथ पकड़िन चलावता,
अबे बुजुर्ग खुद गडोळ्या चालिरा ।

पेली लोग अन्न खावता,
अबे अन्न वणाने खाईरो ।

पेली लुगाया पाछे चालती,
अबे सबऊ आगे चालिरी ।

पेली लगाया मुन्डो ढाकती,
अबे मनक मुन्डो ढाकिरा ।

पेली राजन सरस्वती आगे चालती,
अबे लछमी आगे चालिरी ।

पेली भगत भगवान ने होदता,
अबे भगवान भगत ने होदिरा ।

पेली हर काम हुदो वेवतो,
अबे हर काम उन्दो वेईरो

हर काम उन्दो वेईरो

रविवार, 3 जुलाई 2016

म्हारो चतर हार गयो।

राज री गोळयाँ बण निशाणो,
                   म्हारो चतर हार गयो।
मायड़ हिवड़े हुक छोड़ क
                   बेटो स्वर्ग सिधार गयो।।

कद तांई इस्यो ही राज चाल सी
               कद तांई चिता में आग लाग सी।
बेटा री अर्थी न कद तक
                  बूढ़ा बाप रा कन्धा लाग सी।।
माँ बापां री पोळ्यां कर सूनी
                  घर रो तो हकदार गयो।
राज री गोळयाँ बण निशाणो,
                   म्हारो चतर हार गयो।।

किण कसूरां छाती धसिया
                तीर दंश रा राजां रा।      
बिना कसुरां मिल्या मौत सूं
                  पूत पळेड़ा नाजां रा।।
बिन बीजायो तो खेत छोड़ क
               खेत रो सांझेदार गयो।
राज री गोळयाँ बण निशाणो,
                   म्हारो चतर हार गयो।।

भरी जवानी देख्यो क्यों ना
                ना देखी दुनियांदारी न
घरां रोवंती मायड़ छोड़ी
               छोड़ी बहन बिचारी न।
कुळ रो कुळ दीपक बुझगयो।
                    बाप रो लठ्ठेदार गयो।
राज री गोळयाँ बण निशाणो,
                   म्हारो चतर हार गयो।।

भायाँ रो तो भाई बिछड़ग्यो
              बहण धीरजड़ो खोवाण लागी।
आकाशं सूं आसूँ टपक्या
             धरा थार री रोवण लागी।।
छाती लाग्यो शेल राज रो
            खाली नी कोई वार गयो।
राज री गोळयाँ बण निशाणो,
                   म्हारो चतर हार गयो।।

न्याय करणीया अन्यायी बणग्या
                       खून सूं रंगली वर्दी न।
झुक्यो तराजू इंसाफी
                 ख़ारिज करदी अर्जी न।।
चाली वाड़ो आयो राज रो
                 जनता रो स्वीकार गयो।
राज री गोळयाँ बण निशाणो,
                   म्हारो चतर हार गयो।।

HISTORY OF JODHPUR : मारवाड़ का संक्षिप्त इतिहास

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